प्रगति एवं पारदर्शिता को समर्पित बजट

By: Feb 10th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

( प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं )

मोदी के विरोध में सक्रिय विदेशी मीडिया ने भी केंद्र सरकार के बजट का समर्थन किया है। वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बजट को ‘बहुत बढि़या’ बताया है, वहीं वाशिंगटन पोस्ट ने भी बजट पर सकारात्मक टिप्पणी की है। राजस्व घाटे के 3.5 से 3.2 फीसदी रह जाने से रेटिंग एजेंसियां भारत की स्थिति को बेहतर आंक सकती हैं। इसमें संदेह ही नहीं कि बजट को इससे भी बढि़या बनाया जा सकता था, लेकिन हमें राजनीतिक हकीकत को भी समझना होगा। पांच राज्यों में विधानसभा के लिए चुनाव जारी हैं, लिहाजा बजट में मतदाताओं को लुभाने का कोई भी प्रयास सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता था…

संसद में इस वर्ष जो बजट पेश किया गया, उसे वर्ष 2011 के बाद के बजटों में सबसे श्रेष्ठ बजट माना जा सकता है। हालांकि निकट भविष्य में ही किसी नए युग की शुरुआत हो जाएगी या राष्ट्रीय तस्वीर एकदम से उज्ज्वल हो जाएगी, ऐसे संकेत तो बजट में देखने को नहीं मिलते, लेकिन यकीनी तौर पर इसमें राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के ज्यादा पारदर्शी बनने और वृद्धि दर में बढ़ोतरी की झलक साफ देखी जा सकती है। सुधार समर्थक लॉबी की आलोचना का मुख्य आधार यह हताशा रही कि बजट में किसी तरह के विस्तृत सुधार नहीं किए गए हैं। यह बात सही है कि ऐसे व्यापक सुधारों को इस बजट में जगह नहीं मिल पाई, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इस बजट में जो जमीन तैयार की गई है, उसके आधार पर आने वाले वर्षों में कई सुधारवादी कदम उठा पाना संभव होगा। बहुत से टिप्पणीकार बजट के लिए इस फैशनेबल मुहावरे का प्रयोग कर रहे हैं कि बजट सब कुछ करने पर जोर नहीं देता। यह एक नकारात्मक लक्षण है, इसके बजाय यह बजट सकारात्मक पहलुओं पर ही जोर देता हुआ नजर आता है। मैं इस आलेख में पांच ऐसे प्रमुख बिंदुओं पर प्रकाश डालूंगा, जिससे यह बात साबित हो जाएगी कि बजट संवृद्धि समर्थक है। पहला तो यही कि विमुद्रीकरण के बाद देश की अर्थव्यवस्था में मंदी का जो दौर उभरा था, बजट के जरिए उस पर काबू पाने का एक सार्थक प्रयास किया गया है।

उल्लेखनीय है कि सरकार ने स्वयं कबूल किया था कि विकास दर गिरकर 6.7 फीसदी के स्तर पर आ सकती है। सरकार ने विभिन्न पहलुओं का गहराई से आकलन करके यह अनुमान लगाया था, जबकि कुछ अर्थशास्त्रियों ने विकास दर के सात फीसदी के स्तर पर रहने के आसार जताए थे। इसी बीच जो विद्वतजन विकास दर में दो फीसदी तक की गिरावट का रोना रो रहे थे, निश्चय ही उनकी भविष्यवाणी मिथ्या साबित हुई है। किसानों के कल्याण पर भी बजट में विशेष जोर दिया गया है। गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र में प्रतिकूल परिणामों की आशंकाओं के चलते विकास दर के बुरी तरह से प्रभावित होने की तमाम अटकलों को झुठलाते हुए इस क्षेत्र में विकास दर 4.5 फीसदी रही है। बजट की दूसरी बड़ी खासियत इसका पारदर्शिता पर केंद्रित होना माना जा सकता है, जिसके तहत अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्रों को भी औपचारिक दायरे में लाने का भरसक प्रयास किया गया है। कहना न होगा कि डिजिटल अर्थव्यवस्था से विभिन्न व्यावसायिक लेन-देनों में पारदर्शिता बढ़ेगी। राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा कालेधन को बढ़ावा देने का एक मुख्य जरिया रहा है और अब इस पर भी नकेल कसने की दिशा में कदम बढ़ाए गए हैं। अब राजनीतिक दलों को मिलने वाले नकद चंदे की सीमा को 20000 से घटाकर 2000 रुपए किया गया है यानी दो हजार से ज्यादा का चंदा बैंक के माध्यम से ही लिया जा सकता है। देश में राजनीतिक स्वच्छता के संदर्भ में यह एक साहसिक कदम माना जाएगा। बजट की तीसरी बड़ी विशेषता अर्थव्यवस्था में पूंजीगत खर्च को बढ़ाने के प्रति सरकार के बढ़े रुझान को माना जाएगा। सरकार की देश में पूंजीगत व्यय की सीमा को बढ़ाकर 20 फीसदी तक बढ़ाने की मंशा है, जिससे रेल, सड़कों या हाउसिंग क्षेत्रों में विकास के लिए अतिरिक्त फंड जारी किए जा सकेंगे। इससे रोजगार के अवसरों और विकास दर में वृद्धि होना लगभग तय है।

सड़क नेटवर्क के साथ-साथ रेलवे सुरक्षा और सेवा में सुधार से निवेश और विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलना लाजिमी है। रोजगार सृजन और आर्थिक संवृद्धि के लिहाज से एफडीआई एक महत्त्वपूर्ण घटक है। विदेशी निवेश संवर्द्धन बोर्ड को खत्म किया जाना विदेशी निवेश की राह में आने वाली अड़चनों को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है। बजट की चौथी विशेषता कर सुधारों से जुड़ी है। 50 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए कर की सीमा 30 फीसदी से घटाकर 25 फीसदी करने से जहां लघु एवं मध्यम उद्योगों को राहत मिलेगी, वहीं इससे रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। इसके अलावा बड़े उद्योगों के कामकाज को सरल बनाने के लिए भी कई तरह की रियायतें बजट में दी गई हैं। आयकर भुगतान प्रणाली के सरलीकरण के साथ-साथ इसमें दी जाने वाली छूट आम आदमी को जरूर राहत देगी। पांचवीं खासियत किसानों और ग्रामीण आर्थिकी को संबल प्रदान करने से जुड़ी है। इसके तहत न केवल मनरेगा के लिए ज्यादा राशि आबंटित की गई है, बल्कि मनरेगा के छिद्रों को भरने के लिए भुगतान प्रणाली को आधार कार्ड के माध्यम से सीधे बैंक खातों से जोड़ा गया है। जब मनरेगा कर्मियों की दिहाड़ी सीधे उनके बैंक खातों में जाएगी, तो इससे भ्रष्टाचार में भी कमी आएगी। सबसे बढ़कर इसमें कुछ भी मुफ्त नहीं होगा। मनरेगा कार्यों को सिंचाई सुविधाओं के विकास की दिशा में मोड़कर इसे विकास प्रक्रिया से जोड़ा गया है और अंततः इससे देश में कृषि उत्पादन में इजाफा होगा। हैरानी नहीं होनी चाहिए कि सामान्यतः मोदी के विरोध में सक्रिय रहने वाले विदेशी मीडिया ने भी केंद्र सरकार के बजट का समर्थन किया है।

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने बजट को ‘बहुत बढि़या’ बताया है, वहीं वाशिंगटन पोस्ट ने भी हमारे केंद्रीय बजट पर सकारात्मक टिप्पणी की है। राजस्व घाटे के 3.5 फीसदी से 3.2 फीसदी रह जाने से रेटिंग एजेंसियां भारत की स्थिति को आने वाले वक्त में बेहतर आंक सकती हैं। इसमें कोई संदेह ही नहीं हो सकता कि बजट को इससे भी बढि़या बनाया जा सकता था, लेकिन हमें यहां से राजनीतिक हकीकत को भी समझना होगा। जैसा कि ध्यान में ही है कि पांच राज्यों में विधानसभा के लिए चुनाव जारी हैं, लिहाजा बजट में मतदाताओं को लुभाने का कोई भी प्रयास सरकार के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता था। हालांकि कुछ छोटे-मोटे उपक्रमों को एक तरफ रख दें, तो सरकार ने बड़े पैमाने पर विनिवेश को अंजाम नहीं दिया है, जबकि इस दिशा में आक्रामकता के साथ बढ़ने की जरूरत थी। सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि करदाताओं के पैसे को यूं ही न लुटने दिया जा सके। कमोबेश एयर इंडिया इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण मानी जा सकती है। इस क्षेत्र में कई एयरलाइंज में पहले से ही गलाकाट स्पर्धा देखने को मिलती रही है। ठीक इसी तरह से औद्योगिक विकास की राह में बाधा बनने वाले श्रम कानूनों को लेकर विधायी स्तर पर सुधार करने की महत्ती जरूरत महसूस हो रही है। अब तक सौ से भी ज्यादा ऐसे कानूनों को चलन से बाहर किया जा चुका है, जो काफी पुराने पड़ चुके थे। संभवतः यह विधिक और सरकारी कार्य प्रणाली में सुधार करने का भी ठीक समय है। कुल मिलाकर इस बजट ने स्थिरता व संतुलन के साथ प्रगति व विकास की नींव रख दी है।

बस स्टैंड

पहला यात्री-हिमाचल की बसों में अधिकांश कंडक्टर यही जवाब क्यों देते हैं कि वे नगरोटा बगवां से हैं?

दूसरा यात्री-क्योंकि वहां पर कंडक्टर यूनिवर्सिटी चलती है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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