प्राथमिकताओं से पीछे विकास

By: Feb 4th, 2017 12:02 am

विकास के प्रति विधायकों का विजन उस प्राथमिकता से निर्धारित होता है, जिसे बजट की रूपरेखा में तय करते हैं। हालांकि शिमला में बैठकों के दौरान विधायकों का मूड राजनीतिक अंकगणित के हिसाब से भी पढ़ा गया, फिर भी इस बहाने विधानसभा क्षेत्रों की जनता अपने प्रतिनिधियों की सोच का मूल्यांकन कर सकती है। विकास अपने ही ढर्रों से बाहर विधायक की अंगुली पकड़कर कितनी गति पकड़ सकता है, यही व्याख्या एक बार फिर हुई। विधायक प्राथमिकताओं के साथ हिमाचल के क्षेत्रीय संतुलन की समीपता और भौगोलिक दुरुहता मिटाने के स्पर्श का एहसास पा सकते हैं। इसलिए जब डोडराक्वार जैसे क्षेत्र की सड़कों पर मंथन होता है, तो इसे राज्य प्राथमिकता के हिसाब से भी समर्थन देना होगा। कुछ इन्हीं परिस्थितियों में दुरुहता को तसदीक करती प्राथमिकताएं अगर आंख खोलकर देखें, तो स्पष्ट होगा कि कबायली इलाकों के अलावा कितने क्षेत्र अपनी भौगोलिक परछाइयों के बीच फंसे हैं। यहां लाहुल-स्पीति के विधायक रवि ठाकुर की इस चिंता को समझना होगा कि जब वहां साल के कार्यदिवस ही सिमट कर केवल चार से पांच महीने तक ही अनुकूल हैं, तो विकास के पहिए और प्राथमिकताओं की रफ्तार बदलनी होगी। कुछ तो ऐसी प्रक्रिया और संवेदना चाहिए, जो अति दुर्गम इलाकों की भौगोलिक परिस्थितियों को राज्य प्राथमिकता के हिसाब से देखे। एक विधायक को अपने प्रदर्शन के लिए संवैधानिक जगह तो मिलती है, लेकिन जनापेक्षाओं को अमलीजामा पहनाने की प्राथमिकता भी चाहिए और यह केवल राज्य की बजटीय पारदर्शिता और ईमानदारी से ही संभव है। राज्य के संपूर्ण विकास की शर्त भी यही है कि प्रत्येक विधायक की अभिलाषा में विकास की गाथा आगे बढ़े और यह विषय स्थायी वजूद की तरह हर हलके का परिचय बन जाए। सतत विकास की परंपरा को गैर राजनीतिक बनाने की अनिवार्यता के बीच अकसर शिकायतों का एक पहाड़ विपक्ष के पास रहता है और इस बार भी कमोबेश इसी अंदाज में हिमाचली प्राथमिकताओं को गुजरना पड़ा। प्राथमिकताओं की डगर पर विकास के कई क्षेत्रीय मुद्दों के अलावा चिंतन का शाश्वत पक्ष भी देखा गया और इस लिहाज से कुछ विधायकों ने अपनी नेक नीयत को सियासत से कहीं ऊपर उठा दिया। जिक्र नादौन से भाजपा विधायक का करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि वह अवैध खनन के खिलाफ राज्य का दस्तूर बदलने की गुजारिश में अपना नैतिक दायित्व ढूंढ रहे हैं। सुलाह के विधायक जब अपने क्षेत्र की विद्युत परियोजना से पारंपरिक कूहल के अस्तित्व पर आए संकट पर प्राथमिक सोच दर्ज करते हैं, तो भविष्य रेखांकित होता है। विकास से भविष्य और विकास के संतुलन की अनिवार्यता को हम विस्मृत करेंगे तो प्रगति का मानचित्र भी अभिशप्त हो सकता है, इसलिए जब चुराह के विधायक पुष्प उत्पादन तथा बागबानी के जरिए क्षेत्र को आगे बढ़ाने का संकल्प लेते हैं, तो प्रकृति और मानवीय प्रवृत्ति के बीच सामंजस्य पैदा होता है। विधायकों के मसलों के बीच यह तथ्य फिर उजागर हुआ कि विकास के आगे वन स्वीकृतियों की जटिलताएं किस हद तक पूरे राज्य की कसौटियों को परेशान कर रही हैं। अमूमन सभी विधायकों की फेहरिस्त में सड़क, पानी, शिक्षण संस्थान, अस्पताल, खेल मैदान, बस स्टैंड जैसे विषयों की मौजूदगी रही, लेकिन जब कोई प्रतिनिधि भूमिगत विद्युत व टेलीफोन तारें बिछाने की दलील या खेल छात्रावास की वकालत करता देखा गया, तो विकास के मायने बदलने की इच्छा प्रकट हुई। छोटी नदियों या नालों के तटीकरण, ब्लड बैंक या मंदिर सर्किट जैसी मांग करते हुए विधायकों को इसलिए साधुवाद, क्योंकि इसी विजन से हिमाचली प्रगति के नए आदर्श स्थापित होंगे। सड़क निर्माण में गुणवत्ता परखती निगाहें अगर और सतर्क होंगी, तो विकास के मानदंडों पर भी खुलकर बहस होगी। बहरहाल विकास प्राथमिकताओं पर बैठकों का दौर, राज्य की अधोसंरचना का विवरण भी पेश करता रहा।


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