भारत के लिए ट्रंप के राष्ट्रवाद का अर्थ

By: Feb 3rd, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

( लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं )

कई समीक्षक सवाल करते हैं कि क्या इस तरह से ट्रंप सफल हो पाएंगे, लेकिन अब वह सत्ता में हैं और वही करेंगे जो उन्होंने कहा था। ट्रंपवाद के उदय से समूचा वैश्विक परिदृश्य बदल रहा है। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि इसके क्या सही परिणाम मिल पाते हैं, लेकिन एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि राष्ट्रवाद अब आगे बढ़ रहा है। भारत, रूस, जापान और ब्रिटेन तो पहले ही इस दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। लेकिन इसी दौरान कोई भी देश वैश्वीकरण को नजरअंदाज करने की भूल नहीं कर सकता…

वैश्विक पटल पर डोनाल्ड ट्रंप के उदय से समूचे विश्व की राजनीति ने एक नया मोड़ लिया है। ट्रंप के अमरीकी राष्ट्रपति बनने के बाद घरेलू प्रभाव के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर असर पड़ना भी लगभग तय है। कहना न होगा कि इन सब प्रभावों की आंच से भारत भी अछूता नहीं रहेगा। उनके शपथ ग्रहण समारोह में ऐसे कई संकेत मिले, जो आने वाले वक्त में विश्व के कई हिस्सों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इन संभावनाओं के इतर निश्चित तौर पर विश्व, विशेष कर भारत के लिए कुछ सुखद बदलाव देखने को मिल सकते हैं। आने वाले वक्त में स्थितियां कौन सी करवट लेंगी, इस पर कोई अंतिम राय बना लेना फिलवक्त जल्दबाजी होगी, लेकिन चुनावी  अभियान या शपथ ग्रहण कार्यक्रम में वह जिस अंदाज में दिखे, उससे एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि वह जरूर ऐसे कठोर निर्णय लेंगे जो कि भविष्य की दशा व दिशा के निर्धारण में अहम होंगे। ट्रंप ने यह बात भी बिलकुल स्पष्ट कर दी है कि वह प्रचंड राष्ट्रवाद की राह पर आगे बढ़ते हुए अमरीका के हितों को साधने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे, जिससे अमरीका का खोया हुआ रुतबा फिर से हासिल किया जा सके। इसके लिए वह संरक्षणवाद का सहारा ले सकते हैं और इसके परिणामस्वरूप कई वस्तुओं पर आयात शुल्कों को बढ़ाया जा सकता है। ट्रंप ने चीन के सस्ते माल और उसकी उत्पादन संबंधी इस नीति को खास तवज्जो न देते हुए चीन की प्रसारवादी नीति को हदों में बांधने का एक सही प्रयास किया है। ट्रंप के शुरुआती कदमों ने चीनियों के दिल-ओ-दिमाग में बेचैनी पैदा कर दी है और यहां से यदि दोनों में प्रत्यक्ष युद्ध नहीं भी होता है, तो शीत यद्ध छिड़ना लगभग तय है।

इन हालात में अपनी स्थिति को और मजबूत बनाने के लिए उसने रूस की ओर मित्रता के हाथ बढ़ा दिए हैं। सोवियत संघ और अमरीकी संघ में परंपरागत रूप से चला आ रहा युद्ध समाप्ति की ओर बढ़कर एक नई वैश्विक व्यवस्था तैयार कर रहा है। वैश्विक स्तर पर जो नए समीकरण बनते हुए दिख रहे हैं, उनके तहत अमरीका की रूस, ब्रिटेन, जापान और भारत के साथ नजदीकियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस्लामिक आतंकवाद को खत्म करने का उद्घोष तो डोनाल्ड ट्रंप पहले से ही लगा चुके हैं। पाकिस्तान या आतंक को एक नीति के तौर पर इस्तेमाल करने वाले दूसरे देशों को अब अपनी पुरानी नीति को बदलना होगा या फिर अमरीका की तरफ से होने वाली कड़ी कार्रवाई का सामना करने को तैयार रहना चाहिए। विश्व व्यवस्था की जो नई धुरी तैयार हो रही है, उसे भारत के पक्ष में ही माना जाएगा, क्योंकि भारत भी आज इसी तरह के राष्ट्रवाद के मार्ग पर अग्रसर है। इसी क्रम में भारत अमरीका, जापान और रूस के नजदीक आ रहा है। इन बदलते हालात में कुछ चीजें ऐसी भी हैं, जो भारत की चिंताओं को बढ़ा रही हैं। इन्हीं में से एक है ट्रंप की अप्रवासी नीति और उनकी अमरीकी उद्योगों व रोजगार को बचाने की घोषणा। इन बदलावों के मार्फत वह आउटसोर्सिंग व भारत की आईटी कंपनियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। हालांकि उनके इस कदम का गहराई से विश्लेषण करें, तो दीर्घकाल में अमरीका को इसका नुकसान ही होगा, क्योंकि उत्पादन की लागत बढ़ने के कारण विश्व व्यवसाय में कुशल मूल्यों पर अमरीकी उत्पाद उपलब्ध करवाने के लक्ष्य से उन्हें समझौता करना पड़ेगा। जहां चीन ने व्यवसाय क्षेत्र में सस्ते उत्पादन की एक नई परंपरा शुरू कर दी है, वहां विशेष रूप से अपेक्षा रहेगी कि अमरीका अपने उत्पादन की लागत में कुशलता बनाए रखने हेतु हर कदम समझदारी से उठाए। दूसरी ओर आतंकवाद के मोर्चे पर उनका स्टैंड लगभग वैसा ही है, जो कि नरेंद्र मोदी ने सत्ता में आने के बाद लिया था। लिहाजा विश्व में आतंकवाद को खदेड़ने में दोनों एक-दूसरे के अच्छे सहयोगी साबित हो सकते हैं।

मोदी और ट्रंप में समानता केवल राष्ट्रवाद के संदर्भ में ही नहीं है, बल्कि ये दोनों ही अपने-अपने देश में बिगड़े माहौल के पीडि़त रहे हैं। अपने प्रति मीडिया के विरोधी आचरण को लेकर नसीहत देते हुए नए अमरीकी राष्ट्रपति यहां तक कह चुके हैं कि ‘पत्रकार इस धरती के सबसे बेईमान इनसान हैं।’ इसमें कोई संदेह ही नहीं कि अब तक अमरीकी मीडिया ने ट्रंप के खिलाफ कई तरह के झूठी कहानियां लोगों में फैलाईं और एक वक्त तो किसी को इस बात की भी उम्मीद नहीं थी कि चुनाव में उनकी जीत होगी। इस दौरान कई कहानियां बुनी गईं, लेकिन इससे लोगों की मानसिकता पर कोई खोई खास प्रभाव नहीं पड़ा और वाम केंद्रित बौद्धिकों के लेखन की सीमाएं भी सामने आ गईं। गौरतलब है कि अब तक पूरी दुनिया में इसी तरह के लेखन का बोलबाला रहा है। हालांकि मोदी ने अब तक मीडिया को इतने तल्ख अंदाज में जवाब नहीं दिया है, लेकिन एक बात तो बिलकुल सच है कि अधिकांश मीडिया, विशेषकर विदेशी मीडिया का मोदी के प्रति व्यवहार ठीक नहीं रहा है। अभी हाल ही में 27 देशों में हुए सर्वेक्षण में विश्वास के मामले में भारतीय मीडिया का स्थान नीचे से दूसरे नंबर पर था। लंबे वक्त से खिंचे चले आ रहे इस युद्ध में डोनाल्ड ट्रंप और अमरीकी मीडिया में शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुई भीड़ को अलग-अलग नजरिए से दिखाने के लिए फिर से नोकझोंक हुई है। ट्रंप ने राजनीतिक भाषा के इस्तेमाल में एक बड़ा बदलाव लाया है।

वह उन तमाम बातों को भी साफ-साफ कह देते हैं, जो बहुत से लोगों को सही प्रतीत होती हैं और विवाद से बचने के लिए वह कभी चीजों को घुमा-फिराकर भी नहीं कहते। उन्होंने न केवल मीडिया की कड़वी सच्चाई को इसी अंदाज में बयां किया, बल्कि इस्लामिक आतंकवाद के मसले पर भी बेबाक ढंग से बोलने वाले वह विश्व के पहले शीर्ष नेता हैं। यहां तक कि मोदी भी अब तक इस शब्द के इस्तेमाल से कतराते रहे हैं। ठीक इसी तरह उन्होंने चीन द्वारा पकड़े गए ड्रोन को अपने पास रखने की बात कह दी। संभवतयः किसी भी राजनयिक में ऐसा करने की हिम्मत न होती। वह शब्दों को घुमाने-फिराने के बजाय सख्त-सीधे शब्दों में अपनी बात कहना पसंद करते हैं और दुनिया को उनका यह अंदाज खूब रास आ रहा है। कई समीक्षक सवाल करते हैं कि क्या इस तरह से वह सफल हो पाएंगे, लेकिन अब वह सत्ता में हैं और वही करेंगे जो उन्होंने कहा था। ट्रंपवाद के उदय से समूचा वैश्विक परिदृश्य बदल रहा है। यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि इसके क्या सही परिणाम मिल पाते हैं, लेकिन एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि राष्ट्रवाद अब आगे बढ़ रहा है। भारत, रूस, जापान और ब्रिटेन तो पहले ही इस दिशा में कदम बढ़ा चुके हैं। लेकिन इसी दौरान कोई भी देश वैश्वीकरण को नजरअंदाज करने की भूल नहीं कर सकता। ट्रंप को भी यह हकीकत स्वीकार करते हुए अपने व्यवहार में इस अवधारणा को स्थान देना होगा, क्योंकि नई विश्व व्यवस्था की ऊंची उठती लहरें विश्व के हर कोने को गहरे से प्रभावित कर रही हैं।

बस स्टैंड

पहला यात्री-बंदरों के उत्पात से हिमाचल पहले से ही परेशान था और अब 14000 लोेगों को कुत्तों ने अपना शिकार बना लिया है। ऐसे में सरकार क्या कर रही है?

दूसरा यात्री-सीधी सी बात है। सरकार कुत्तों पर नियंत्रण के लिए भी एक समिति गठित कर देगी, जैसा कि बंदरों की समस्या से निपटने के लिए किया गया था।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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