भ्रम की दुनिया
(प्रेम चंद माहिल, बरहाना, हमीरपुर)
भारतवर्ष में आज भी कुछ लोग रुढि़वादिता के शिकार हैं। आधुनिक विजन के युग में भी लोग बीमार होने की अवस्था में अस्पताल जाने के बजाय तंत्र-मंत्र और जादू-टोने से इलाज करवाने में विश्वास रखते हैं। प्राचीनकाल में बीमारी के इलाज के लिए दवाइयों का आविष्कार नहीं हुआ था। अस्पताल भी कुछेक शहरों में ही उपलब्ध थे। गांवों में अधिकतर अनपढ़ लोग रहते थे। जब गांव में कोई बीमार हो जाता था, तो गांव का बुजुर्ग तंत्र-मंत्र से मनोवैज्ञानिक इलाज करता था। मनोवैज्ञानिक बल से कुछ राहत दिखाई देती थी, परंतु वह वास्तविक इलाज नहीं होता था। धीरे-धीरे इसने अपनी मजबूत पकड़ समाज में बना ली। कई तांत्रिक भोली-भाली जनता को लूटते भी रहे, परंतु लोग विवश थे। आज वैज्ञानिक युग है। हर बीमारी के लिए उपयुक्त दवाइयों का आविष्कार हो चुका है। अतः आज के वैज्ञानिक युग में इस तरह के मिथ्या-भ्रम से दूर रहने में ही भला है।
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