मार्शल आर्ट की ज्योति ज्योत्सना
चीनी लोगों के खेल मार्शल आर्ट में हिमाचली बाला ने महारत हासिल कर अपनी झोली मेडल से भर ली है। कुल्लू के ढालपुर में माता नीलम और पिता वेद प्रकाश के घर जन्मी ज्योत्सना अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी है। बहुत ही मुश्किल और कठिन खेल माने जाने वाले मार्शल आर्ट में कुल्लू की ज्योत्सना ने देश भर में विजयी पताका लहराई है। यह ज्योत्सना का जोश और जीवट ही है कि सामान्यतः लड़कों का खेल माने जाने वाले मार्शल आर्ट में उसने अपनी साधना और संघर्ष के बल पर देशभर में हिमाचल का नाम रोशन किया है। कुल्लू की ज्योत्सना अब तक मार्शल आर्ट में 33 मेडल जीत चुकी हैं। हर पल जान जोखिम में डालकर विरोधी को चित करने के गुरों में निपुण और पारंगत ज्योत्सना को हालांकि शुरू-शुरू में मार्शल आर्ट सीखने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पर जीतने की भूख और गुरु सेनसेई निहाल की कठोर ट्रेनिंग ने ब्रह्मस्त्र बनकर हर मुकाबले में ज्योत्सना की जीत प्रशस्त कर दी। ज्योत्सना खुद भी सुबह पांच बजे उठकर दो घंटे अभ्यास करती हैं। आज भले ही ज्योत्सना ने देशभर की प्रतिभागियों में कला दिखाई हो और राष्ट्रीय स्तर पर मेडल झटके हों, पर एक दौर वह भी था जब वह इस खेल से किनारा करने लगी थी। सुबह-सवेरे उठकर ट्र्रेनिंग के लिए जाना, लड़कों के साथ मार्शल आर्ट के गुर सीखना और फिर अभ्यास करना, उसके लिए मुश्किल दौर रहा। प्रैक्टिस में गुरु सेनसेई निहाल के साथ घंटों पसीना बहाया और यही पसीना आगे चलकर इस कुल्लवी बाला के लिए वरदान साबित हो गया। इस हिमाचली बाला ने साबित कर दिया कि जीतने की चाह हो तो संघर्ष के दौरान पैरों में आए फफोले नहीं देखे जाते। आठ साल की आयु में कराटे की दुनिया में कदम रखने वाली ज्योत्सना कराटे में महारत हासिल करके राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर अनेकों मेडल हासिल कर चुकी है। ज्योत्सना कहती है कि सबसे रोमाचिंत भरा मैच उनका तब रहा था, जब वह महज 13 साल की थी। पंजाब में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उनकी पांच बार पंजाब की युवतियों से फाइट हुई। पंजाब की लड़कियां भी इस खेल में काफी तेज हैं, लेकिन पंजाब की लड़कियों के आगे हिमाचल की बेटी ने हिम्मत नहीं हारी। ज्योत्सना कहती है कि उन्होंने अंतिम राउंड में जीत हासिल की और गोल्ड मेडल हासिल किया, लेकिन उनका पंजाब की लड़कियों के साथ का मुकाबला वह आज तक भूल नहीं पाई। हालांकि यह फील्ड लड़कों की है लेकिन बेटी होने पर गर्व करने वाली ज्योत्सना कहती हैं कि वह भी किसी लड़के से कम नहीं है। कराटे सीखने से कुल्लू की इस बेटी का आत्मबल और आत्मविश्वास आसमान पर है। वह रात के अंधेरे में निडर कहीं पर भी लड़कों की तरह आ जा सकती है। आठ बार नेशनल खेल चुकी ज्योत्सना कहती है कि लड़की हर वह खेल सीख सकती है जो भले ही लड़कों के लिए बना हो। आज लड़कियां लड़कों के मुकाबले में उन खेलों में भी आगे बढ़ रही हैं। किसी भी लड़की को लड़के से कम स्वयं को नहीं आंकना चाहिए। फिर कराटे एक ऐसा खेल है। जिसे सीखने से हर लड़की का आत्मविश्वास बढ़ता है।
अब तक जीते मेडल
ज्योत्सना ने 2012 में 2 गोल्ड मेडल, 1 सिल्वर, 1 ब्रांज, अंडर-15 राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांज, 27 वीं नेशनल ताईक्वांडो अंडर 19 में गोल्ड मेडल, कराटे में 27 व ताईक्वांडो में 6 मेडल हासिल कर चुकी है। 33 मेडल हासिल कर चुकी ज्योत्सना 32 मेडल राज्य स्तरीय भी ले चुकी है। राज्य स्तर भी कई बार ज्योत्सना ने गोल्ड मेडल हासिल किया है।
मार्शल आर्र्ट में ये खेलें हैं
मार्शल आर्ट में कुंग्फू, कराटे, ताइक्वांडो, जूडो, मुआए, थाए, रेस्लिंग, बॉक्सिंग और किक बॉक्सिंग आदि खेलें आती हैं।
— शालिनी रॉय भारद्वाज, कुल्लू
मुलाकात
मेरे लिए हर जीत के बाद चुनौती और हार के बाद मंथन है…
इतने मेडल रखती कहां हो?
सभी मेडल घर पर अपने कमरे में रखती हूं और सुबह उठ कर उन्हें देखती हूं क्योंकि अब एक ही सपना है कि अगला जो मेडल मैं सुबह उठ कर देखूं, वह भारत के लिए खेला हुआ मैच हो। मेडलों को देख कर भी प्ररेणा लेती रहती हूं।
सबसे कीमती मेडल किसे मानती हो और जीत?
सबसे कीमती मेडल जो पहले बार 13 वर्ष की आयु में मिला।
मार्शल आर्ट में आने की वजह और आपका आदर्श कौन रहा?
मार्शल आर्ट को सीखने का शौक शुरू से रहा। किसी वजह से नहीं बल्कि शौक के चलते इस फील्ड में आई हूं। मेरे आदर्श मेरे गुरु सेनसेई निहाल रहे हैं और मेरे माता-पिता।
जैकी चेन की कितनी फिल्में देखी और क्या दंगल जैसी फिल्म में अपना चरित्र देखा?
जैकी चेन की अधिकतर फिल्में देखी हैं और अगर कभी भी टीबी के सामने बैठूं तो जैकी चेन की कोई भी देखी फिल्म फिर लगी हो तो दोबारा जरूर देख लेती हूं। ‘दंगल’ फिल्म ने तो देशभर के अभिभावकों को लड़कियों को इस क्षेत्र में भी आगे बढ़ाने को लेकर प्ररेणा दे डाली है। जब फिल्म देखी तो कल्पना कर रही थी कि एक दिन मैं भी इसी तरह से भारत के लिए खेलूंगी और देश व अपने माता-पिता का नाम देशभर में रोशन करूंगी। जिन्होंने मुझे बेटों की तरह इस खेल में आगे बढ़ने में हर कदम में सहयोग दिया है।
सुना है खिलाड़ी सपने नहीं देखते, वैसा आपका क्या है?
सही बात, लेकिन यह सपना जरूर खिलाड़ी देखते हैं और सपने को सपना ही रहने नहीं देते बल्कि उसे साकार कर लेते हैं। मेरा सपना और लक्ष्य एक ही है ‘भारत के लिए खेलना’।
ज्योत्सना जब घर से निकलती है तो लोग किस तरह पुकारते हैं?
घर से निकलते ही माता- पिता व भाई- बहन की नजर में तो डॉन, हंसते हुए । मुझे देख कर सभी अपने बच्चों को प्रेरित करते हैं। अच्छा लगता है ऐसे कोई कुछ नहीं कहता जब भी कोई मिलता है वह पीठ जरूर थपथपाता है। यानी वे भी चाहते हैं कि मैं इस खेल में आगे यूं ही बढ़ती रहूं।
कभी मार्शल आर्ट एक्सपर्ट होने की वजह से आप जीवन से बड़ी भूमिका निभा पाई। किसी की सहायता में या आत्मरक्षा में?
बिलकुल, जब भी कोई दोस्त मुसीबत में होती है तो उसकी मदद के लिए हमेशा आगे रहती हूं। वहीं, नेत्रहीन बच्चों को निशुल्क कैंप लगाकर उन्हें भी आत्मरक्षा के गुर सिखाए।
जब सामने विरोधी होता है, तो आप अपनी ताकत को किस मूल मंत्र से बांधती हैं?
दुश्मन कितना भी ताकतवर क्यों न हो, लेकिन दुश्मन को कभी अपने से तेज नहीं समझना चाहिए। बल्कि उसका मुकाबला स्वयं को तेज समझ कर करना चाहिए।
आपके लिए जीत और हार?
मेरे लिए हर एक जीत के बाद एक नई चुनौती शुरू हो जाती है। हार के बाद अपनी कमजोरी का मंथन करना।
अपनी खेल यात्रा के कोई तीन सिद्धांत जिन्हें हमेशा गांठ बांध कर रखती हैं?
प्रतिद्वंद्वी को कभी कमजोर न समझना, अपने क्रोध पर काबू पाना, जीत के बाद पांव जमीन पर टिका कर रखना।
कभी गुस्सा आए तो क्या करती हैं?
अपने कमरे में जाकर चंद मिनट के लिए शांत होकर बैठ जाती हूं और किसी से बात नहीं करती हूं।
आप कितनी कोमल हैं?
कोमल तो नहीं हूं, हां संवेदनशील जरूर हूं।
मार्शल आर्ट से हटकर ज्योत्सना क्या हैं?
अपनी मां के साथ समय व्यतीत करती हूं और किताबें पढ़ने का भी शौक रखती हूं।
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