रंगों और रोगों का संबंध

By: Feb 4th, 2017 12:05 am

सूर्य चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थी को विभिन्न प्रकार के रोगों के नाम याद करने की जरूरत नहीं है, उसे तो यह देखना चाहिए कि रोग क्यों हुआ है। आमतौर से बीमारियों के तीन मुख्य कारण हैं- (1) गर्मी का बढ़ जाना, (2) सर्दी का बढ़ जाना, (3) पाचन क्रिया में कमी आ जाना। गर्मी बढ़ जाने से रोगी को जलन, बेचैनी, प्यास, खुशी, घबराहट आदि बातें होती हैं।  बीमार को ठंड प्राप्त करने की विशेष इच्छा होती है। ऐसे में रोगों को लाल रंग की अधिकता से उत्पन्न हुआ समझना चाहिए। सर्दी बढ़ जाने से रोगी की नसें सिकुड़ जाती हैं। पेशाब अधिक होता है, दस्त पतला होता है, शरीर में पीलापन छाया रहता है। बीमार गर्मी में सुख अनुभव करता है। ऐसे रोगों को नीले रंग की अधिकता से उत्पन्न हुआ समझना चाहिए। शरीर के रसों का ठीक तरह से परिपाक न होने का कारण पीले रंग की कमी है। पीले रंग का काम है कि वह शरीर की समस्त धातुओं को पचाए। भोजन से रस, रस से रक्त, रक्त से मांग इसी प्रकार क्रमशः अस्थि, मज्जा, मेद, शुक्र का ठीक प्रकार से बनाना, शरीर स्थित पीले रंग का काम है। यदि धातुएं ठीक प्रकार न बन रही हों और वे कच्ची रह जाती हों तो पीले रंग की न्यूनता समझते हुए उसी रंग को शरीर में पहुंचाने का प्रबंध करना चाहिए। आयुर्वेद प्रणाली में वात, पित्त, कफ का सिद्धांत है। वह भी इन रंगों से मिलता जुलता है। पीला रंग वात, लाल पित्त और नीला कफ से बहुत कुछ समानता रखता है। आयुर्वेदिक वैद्य जिस बीमारी को पित्त से उत्पन्न बताएगा, सूर्य चिकित्सक उसे प्रायः लाल रंग से उत्पन्न निर्णय करेगा। वैद्य जैसे दो या तीनों दोषों के मिलने से कई बीमारियों की उत्पत्ति बताते हैं, वैसे दो-दो या तीन-तीन रंगों की कमी से कई बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं। सूर्य-चिकित्सक को रोग का निदान करने के लिए किसी पुस्तक पर पूरी तरह अवलंबित न रहकर अपनी बुद्धि से अधिक काम लेना पड़ता है। उसकी बुद्धि ऐसी तीक्ष्ण होनी चाहिए कि सूक्ष्म दृष्टि से इस बात की परीक्षा भलीभांति कर ले कि किस रंग की किस रोग में कमी या अधिकता रंगों का निदान कर लेना  इलाज है। रंगों की कमी के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं-

नीले रंग की कमी से – आंखों में जलन तथा सुर्खी, नाखूनों पर अधिक सुर्खी, पेशाब में ललाई या पीलापन, दस्त ढीला और पतला, चमड़ी पर पीलापन या शरीर में उष्णता बढ़ना, चंचलता, क्रोध की अधिकता, अतिसार, पांडु रोग।

पीले रंग की कमी से –  खुश्की, मंदाग्नि, भूख न लगना, नींद कम आना, शरीर में दर्द, जंभाई आदि। लाल रंग की कमी से – नींद की अधिकता, सुस्ती, आलस्य, कब्ज, आंख, नख, मल-मूत्र आदि में सफेदी के साथ नीली झलक। दो रंगों की कमी होने पर दोनों के लक्षण मिलते हैं। तीनों रंग कम हो जाने पर तीनों के लक्षण पाए जाएंगे। रोग की परीक्षा करते समय सूर्य चिकित्सक रोगी के सारे कष्टों को मालूम करता है तथा समस्त शरीर के रंगों को बड़े ध्यानपूर्वक देखता है। तदुपरांत अपनी सूक्ष्म बुद्धि के अनुसार निर्णय करता है। मान लीजिए गर्मी और अपरिपाक का मिश्रित रोग है, तो नीला और पीला मिला हुआ रंग देता है। यदि गर्मी बहुत अधिक और अपरिपाक साधारण है तो पीला रंग कम और नीला रंग अधिक मिलाना पड़ेगा, किंतु यदि गर्मी साधारण हो और अपच बढ़ा हुआ हो तो पीला अधिक और नीला कम मिलाना पड़ेगा। अलग-अलग अंगों में अलग-अलग दोष हैं तो उनका बाहरी उपचार भी अलग-अलग होगा। एक  अंग पर एक प्रकार की तो दूसरे पर दूसरे रंग की रोशनी डालने या लगाने का उपचार हो सकता है, किंतु पीने का जो जल होगा,वह समस्त शरीर में बढ़े हुए कारणों की मात्रा का ध्यान रखते हुए कोई मिश्रित रंग निर्णय करना पड़ेगा और उसी का जल औषधि की तरह देना पड़ेगा।


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