राजनेता देश को कहां धकेल रहे ?

By: Feb 27th, 2017 12:02 am

( स्वामी रामस्वरूप लेखक, योल, कांगड़ा से हैं )

आज के युग में भौतिकवाद की ओर आकर्षित होने के कारण सृष्टि रचना एवं मानवदेह के प्रयोजन से प्रायः सभी नर-नारी अनभिज्ञ हो चुके हैं। फलस्वरूप मनुष्य अविद्याग्रस्त होकर संसार के जड़ पदार्थों और इस जड़ शरीर को ही सुख का साधन मान बैठता है, जबकि सब नाशवान और दुखदायक है। शास्त्र कहता है कि जो एक बार इंद्रीय सुख भोगा तब उस सुख के प्रति आसक्ति अर्थात लगाव उत्पन्न होता है और उस सुख को बार-बार भोगने की इच्छा होती है। पिछले युगों के राजा, राजनेता वेदशास्त्रों के ज्ञाता होते थे। इसलिए वे राग-द्वेषादि क्लेशों से दूर हटकर अमूल्य मानव शरीर से वेदानुसार शुभ कर्म, धर्माचरण, परोपकार, प्रजा का पुत्रवत पालन और ईश्वर प्राप्ति आदि ध्येय की ओर अग्रसर रहते थे। यदि उन्हें मनुष्य कल्याणार्थ राजपाट, परिवार भी त्यागना पड़ता था, तो वे भी त्याग देते थे, क्योंकि वे राग, द्वेष से अलग थे। ऋषि-मुनियों और असंख्य राजर्षियों की पवित्र भूमि भारतवर्ष अब काफी हद तक वैदिक संस्कृति से विहीन हो चुकी है। फलस्वरूप वर्षों से राजनीतिक पार्टियां राग-द्वेष, लोभ, मोह, अहंकार जैसे अनेक विकारों में फंसकर केवल कुर्सी हथियाने के लोभ में फंसकर विपक्ष के नेताओं से द्वेष करके कुछ भी अनैतिक कार्य करने में नहीं हिचकिचातीं। इस बार की चुनावी रैलियों में तो आरोप-प्रत्यारोप एवं अभद्र भाषा का जो प्रयोग हो रहा है, उसे देख-सुन कर जनता शर्म से सिर झुका लेती है। यह देश का दुर्भाग्य है कि वर्तमान की चुनाव रैलियों में पार्टियां एक-दूसरे पर झूठे-सच्चे, गंभीर, पारिवारिक एवं अभद्र आरोप-प्रत्यारोप तक लगाने से गुरेज नहीं कर रहीं। इस दागयुक्त राजनीति के साए में देश की गरीबी, भुखमरी, किसानों की समस्याएं, आत्महत्याएं, गुंडागर्दी, नारी अपमान आदि समस्याओं से जनता दुखी है, लेकिन राजनीति को उस पर तनिक भी तरस नहीं आता।

ये स्वयं तो जैड श्रेणी की सुरक्षा में निश्चिंत रहते हैं और जनता पर कब कोई गोली बरसा जाए या लूटमार करके भाग जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। वस्तुतः वैदिक संस्कृति में उपदेश है कि राजनेता जनता के घर-घर में वैदिक धर्म के प्रचार की व्यवस्था करके जनता को इस काबिल बना देता है कि वह चुनावों में अपना वोट धर्मानुसार प्रयोग करके धर्माचरण युक्त नेताओं को चुन ले। इस अवस्था में आरोप-प्रत्यारोप, झूठे वादे इत्यादि किसी भी समस्या का कोई भी स्थान नहीं रह जाता। पिछले 70 सालों से ही नहीं, अपितु लगभग पांच हजार वर्षों से हमारे देश में नेताओं ने भौतिकवाद को बढ़ावा और धर्म, आध्यात्मिकवाद, धर्माचरण, परोपकार आदि संस्कारों को मिट्टी में मिला दिया है। जिस देश की वैदिक संस्कृति समाप्त हो गई हो, वह देश तो स्वतः नष्ट हो चुका होता है। इस संस्कृति के अभाव में ही तो नेतागण भ्रष्ट राजनीति अपनाए हुए हैं। हमें सत्ता हथियाने के लिए घिनौनी राजनीति का खेल खेलना बंद करना होगा, तभी मातृभूमि की रक्षा करने में सक्षम होंगे। ऋग्वेद में कहा है कि जैसे सूर्य सब जगत का उपकार करता है, उसी प्रकार देश का राजा, राजनेता सबका उपकार करने वाला हो। यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि न मैं किसी राजनीतिक पार्टी से संबंध रखता हूं। मेरा मार्ग वेद का मार्ग है। मैं वैदिक संस्कृति और उसके अनुसार न्याय आदि परंपरा के अनुसार ही निष्पक्ष व्याख्यान करता हूं, क्योंकि ईश्वर से उत्पन्न वेद का ज्ञान निष्पक्ष है, जबकि मजहब और देश की राजनीतिक पार्टियां निष्पक्ष नजर नहीं आतीं। मैंने  संपूर्ण आयु वेदों के अध्ययन एवं अष्टांग योग के अभ्यास में गुजारी। इसके साथ ही 26 वर्ष मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस में रहकर देश की सेवा की है। अब वृद्धावस्था में दूरदर्शन और अखबारों द्वारा जो देखने-सुनने, पढ़ने को मिल रहा है, वह किसी राजनीतिक पार्टी में ज्यादा, किसी में कम रूप में क्रोध, राग, द्वेष, नफरत और सत्ता हथियाने के लिए किसी भी हद को पार करने वाला षड्यंत्र सा नजर आता है। इसमें हमारी मातृभूमि की रक्षा का तो लेशमात्र भी ध्यान नहीं है। कश्मीर जल रहा है।

सीमा पर दुश्मन की बंदूकें आग उगल रही हैं, सीमा पर आम जनता गोलियों की चपेट में आ जाती है, अलगाववाद जैसी समस्या का अब तक कोई हल नहीं निकला और इसके विपरीत हमारे नेता कुर्सी हथियाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं। देश की रक्षा में हमारे वीर सैनिक, जो प्राण की बाजी लगाते हैं, वैसी प्राण की बाजी बहुत कम नेताओं ने लगाई है और प्रायः उन्हीं की निंदा हो रही है। महाभारत में कहा गया है-‘एको लोभो महाग्राहो लोभात् पाप प्रवर्तते’ अर्थात केवल एकमात्र लोभ ही पाप करने का कारण है। वह मनुष्य को निगल जाने के लिए एक बड़ा ग्रह है। लोभ से ही पाप की प्रवृत्ति होती है। अतः यह कैसे हो सकता है कि लोभवश आरोप-प्रत्यारोप और झूठ आदि बोलकर हथियाई हुई सत्ता पाकर कोई नेता पाप में लिप्त न हो। पिछले 70 वर्षों से आज तक देश में जितने भी घोटाले हुए हैं, ये लोभ का ही तो परिणाम हैं। भाव यह है कि धृतराष्ट्र ने पांडवों से एक अकेला राज्य हड़पने का लोभ किया था और उसका समस्त परिवार एवं सगे-संबंधी तथा योद्धा, सभी युद्ध में मारे गए, तो झूठ-सच बोलकर कोई पार्टी डरा-धमका कर कुर्सी हथियाने के लोभ में वोट बटोरती है तो यह उस पार्टी के लिए भी दुर्भाग्य ही होगा। कोई भी मनुष्य वेद विद्या और सतकर्म के बिना राज्य प्राप्त करने के योग्य नहीं होता। अतः राजा वेद विद्या का ज्ञाता हो, ऐसा वेद कहते हैं। ऋग्वेद में कहा गया है कि राजा विनम्र हो, राजपुरुषों सहित वह राज्य में सुखों की वृद्धि करे। मंत्री प्रजा को सुखी रखे। विपरीत में आज के नेता मुख से जो क्रोधाग्नि उगलते हैं, उसकी उपमा भी नहीं दी जा सकती। फिर सुख कहां? यजुर्वेद मंत्र में कहा कि राजा पक्षपात रहित हो और ऐसे राजा जो पिता के समान प्रजा की रक्षा करने वाला हो, वह राजा, राजनेता होने के योग्य है। हम कामना करते हैं कि पक्ष में बैठी हुई सरकार पिछले युगों की भांति देश में वैदिक संस्कृति का प्रचार करके देश की सभी समस्याओं का अंत कर लेगी।


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