वाद्य यंत्रों से खुश होते हैं हमारे आराध्य देवता

By: Feb 27th, 2017 12:05 am

बिना ढोल-नगाड़ों के कपाट से नहीं निकलते बाहर

सकरेहड़ के बजंतरी  लौहलू राम का कहना है कि देवी-देवता बिना  साज-बाज के कपाट से नहीं निकलते हैं। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, उसी प्रकार समस्त वाद्य यंत्रों से देवी-देवताओं को नतमस्तक किया जाता है। उन्होंने बताया कि वह 70 साल से बाम (ढोल)बजा रहे हैं।

बजंतरी चंदू राम का कहना है कि वर्षों से देवी-देवताओं के साथ विभिन्न आयोजन में जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अलग-अलग धुनों में बाम बजाया जाता है। उक्त कार्य को दो पीढि़यों से किया जा रहा है। वह अपने देवता नारायण के लिए बाम को बजाते हैं।

स्कोर के बजंतरी प्रकाश चंद का कहना है कि वह विभिन्न वाद्य यंत्रों में करनाल को 40 वर्ष से बजा रहे हैं। उन्होंने बताया कि करनाल को बजाना देवी-देवताओं की शोभा होती है। करनाल बजाने का कार्य तीन पीढि़यों से किया जा  रहा है। वह रेड़धार क्षेत्र की सकबरी माता के लिए करनाल बजाते हैं।

बजंतरी जोगिंद्र सिंह का कहना है कि वह 28 साल से नरसींगा बजा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो  बजंतरी गहरी देवता के लिए नरसींगा नहीं बजाता है, तो देवता उसे 500-1000 जुर्माना करता है। देवी-देवताओं के रथ के साथ वाद्य यंत्र बजाना एक शोभा होती है। कोई भी देवी-देवता बिना वाद्य यंत्रों ने नहीं चलता है।

पूर्ण चंद का कहना है कि वह बालीचौकी की गौरी माता के लिए करनाल बजाते हैं। यह कार्य करीब 50 वर्षों से किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि वाद्य यंत्र देवी-देवताओं की शोभा होती है। देव ध्वनि के आयोजन से बजंरियों को काफी लाभ मिला है। उक्त प्रक्रिया के चलते पुरानी संस्कृति को जीवित किया है। कुछ बजंतरियों ने वाद्य यंत्रों का प्रयोग करना छोड़ दिया था, लेकिन प्रशासन द्वारा शुरू की गई देव ध्वनि ने संस्कृति को जीवित किया है।

मुराह के पूनी चंद का कहना है कि वह देवी काशवेरी के डोल बजाते हैं।  डोल की थाप से आस्था का वातावरण बनाया जाता है। देवी-देवताओं के लिए वाद्य यंत्रों का प्रयोग करना आस्था का प्रतीक है।


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