श्री विश्वकर्मा पुराण

By: Feb 11th, 2017 12:05 am

बलि राजा के सौ यज्ञ पूरे करने के पश्चात, उनके पुरोहित शुक्राचार्य ने बलि राजा  को सारे विश्व का अधिपति बनाने के लिए विश्वजीत नामक यज्ञ कराने के लिए उसे यज्ञ की दीक्षा दी। बलि राजा ने भी यज्ञ की दीक्षा लेकर, उत्तम प्रकार से उन्होंने अपने यज्ञ के सारे कार्य करने के लिए,  अनेक उत्तम ऋत्विजों को आमंत्रण देकर बुलाया था…

इसके बाद शुक्राचार्य द्वारा बताए उत्तम मुहूर्त में उन्होंने स्वयं तय किए यज्ञ के कार्य का आरंभ किया। संपूर्ण भावना के साथ बलि ने प्रभु यज्ञ नारायण की प्रसन्नता प्राप्त की। इस तरह से राजा बलि के कार्यों से देवता घबरा गए और बलि राजा के डर से गुफा में छिपकर रहने लगे और प्रभु से विनती की कि हे नाथ हमको इस उपाधि से मुक्त करिए। तब प्रभु ने समय की राह देखने को कहा, देवताओं के माथे पर जानो विपत्ति के बादल घिरे हुए थे। उनको इन दानवों का इतना बड़ा डर लगता था कि वह गुफा के बाहर न आते थे। अपने पुत्रों की ऐसी परिस्थिति देखकर उनकी माता अदिति को बहुत दुख होता था। एक समय कश्यप महर्षि जब तप में से जगे, तब अपनी पत्नी अदिति को सेवा करने में तत्पर हुए देखा और उसके हृदय में बसा हुआ बहुत बड़ा दुख भी देखा। इसके बाद उन्होंने अदिति से दुख का कारण पूछा, अदिति ने अपने पति से कहा, हे देव! दैत्यों  के त्रास से मेरे पुत्रों  पर बहुत बड़ा संकट आया है और मुझसे मेरे पुत्रों का यह दुख नहीं देखा जाता। इसलिए मेरे पुत्रों को इस दुख से मुक्त करें। ऐसे पुत्र की मुझे इच्छा है इसलिए आप इतना वरदान देने की कृपा करें। अदिति के दुख को दूर करने के लिए कश्यपजी ने उसको प्रयोव्रत करने की आज्ञा दी तथा प्रयोव्रत करने की सारी विधि बताकर कहा, हे अदिति प्रयोव्रत से भगवान नारायण प्रसन्न होकर मनुष्य की सब इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। पति के वचन सुनकर अदिति ने मन को शांति मिली और वह उत्तम प्रयोव्रत करने लगी। उसके ऐसे व्रत से प्रसन्न हुए परमात्मा ने प्रत्यक्ष होकर वरदान दिया और स्वयं ही उसके पुत्र की तरह उत्पन्न होने का वचन दिया। इस तरह प्रभु के वचन से प्रसन्न हुई अदिति निरंतर प्रभु परायण रहकर पति की सेवा करने लगी। बलि राजा के सौ यज्ञ पूरे करने के पश्चात, उनके पुरोहित शुक्राचार्य ने बलि राजा  को सारे विश्व का अधिपति बनाने के लिए विश्वजीत नामक यज्ञ कराने के लिए, उसे यज्ञ की दीक्षा दी। बलि राजा ने भी यज्ञ की दीक्षा लेकर उत्तम प्रकार से उन्होंने अपने यज्ञ के सारे कार्य करने के लिए अनेक उत्तम ऋत्विजों को आमंत्रण देकर बुलाया था। बलि राजा के इस यज्ञ की प्रशंसा सुनकर  याचक दूर-दूर से आते थे। बलि राजा  सभी याचकों का भलीभांति सत्कार करते थे।  इधर अदिति ने भी प्रभु की कृपा से उत्तम गर्भ धारण किया था। योग्य समय की अवधि पूरी होने पर उत्तम मुहूर्त में बालक को जन्म दिया। बालक अपना कार्य करने वाला है, यह जानकर ब्रह्मादि सारे देवताओं ने वहां आकर अनेक प्रकार से स्तुति की। इसके पश्चात सबके आश्चर्य के बीच यह बालक बढ़ने लगा और देखते-देखते उसने एक वटु की तरह वामन स्वरूप धारण किया। कश्यप महर्षि ने भी प्रसन्न होकर उस बालक का संस्कार किया और ब्रह्मचर्य व्रत की दीक्षा दी। देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न हुए वामन भगवान ने दीक्षा प्राप्त होते ही देवताओं के कार्य की सिद्धि के लिए बलिराजा के यज्ञ में जाने का निश्चय किया।


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