सिनेमा के 100 साल

By: Feb 5th, 2017 12:07 am

‘दिल’ जीत आवाज के जगजीत

सिनेमा के 100 सालजगजीत सिंह का जन्म 8 फरवरी, 1941  राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। उनका  नाम बेहद लोकप्रिय गजल गायकों में शुमार है। उनका संगीत अंत्यंत मधुर है और उनकी आवाज संगीत के साथ खूबसूरती से घुल-मिल जाती है। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब भारत के रोपड़ जिले के दल्ला गांव का रहने वाला है। मां बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए। शुरुआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद में पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कालेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। बहुतों की तरह जगजीत जी का पहला प्यार भी परवान नहीं चढ़ सका। अपने उन दिनों की याद करते हुए वह कहते थे एक लड़की को चाहा था। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चेन टूटने या हवा निकालने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बाद में यही सिलसिला बाइक के साथ जारी रहा। पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। कुछ क्लास में तो दो-दो साल गुजारे। जालंधर में ही डीएवी कालेज के दिनों गर्ल्स कालेज के आसपास बहुत फटकते थे। एक बार अपनी चचेरी बहन की शादी में जमी महिला मंडली की बैठक में जाकर गीत गाने लगे थे। पूछे जाने पर कहते हैं कि सिंगर नहीं होते तो धोबी होते। पिता की इजाजत के बगैर फिल्में देखना और टॉकीज में गेट कीपर को घूंस देकर हॉल में घुसना आदत थी।

संगीत का सफर

बचपन मे अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर में ही पंडित छगन लाल शर्मा के सान्निध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरुआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल खान साहब से ख्याल, ठुमरी और धु्रपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाए, लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वह 1965 में मुंबई आ गए। यहां से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वह पेईंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोजी-रोटी का जुगाड़ करते रहे। 1967 में जगजीत जी की मुलाकात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।

गुजरा जमाना

जगजीत सिंह फिल्मी दुनिया में पार्श्वगायन का सपना लेकर आए थे। तब पेट पालने के लिए कालेज और ऊंचे लोगों की पार्टियों में अपनी पेशकश दिया करते थे। उन दिनों तलत महमूद, मोहम्मद रफी साहब जैसों के गीत लोगों की पसंद हुआ करते थे। रफी-किशोर-मन्नाडे जैसे महारथियों के दौर में पार्श्व गायन का मौका मिलना बहुत दूर था।  जगजीत जी की 10 अक्तूबर, 2011 को इनकी मृत्यु हो गई।


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