सेरी झांडियां का शिवलिंग बना आस्था का केंद्र

By: Feb 23rd, 2017 12:05 am

नालागढ़— एक ओर जहां महाशिवरात्रि पर्व को लेकर नालागढ़ के शिवालय सज गए है, वहीं दूसरी ओर शिव भक्तों की आस्था का केंद्र उपमंडल के सेरी झांडियां स्थित प्राचीन शिव मंदिर है, जहां श्रद्धालु भारी तादात में शीश नवाने आते हैं। वर्षों पूर्व स्वयं निकले शिवलिंग के बाद वर्ष 1951 में यहां मंदिर की स्थापना करवाई गई और लभूराम ने यहां संत सम्मेलन का भी आयोजन किया। शिवलिंग कितना पुराना है, इस बारे में लोगों को ठीक से पता नहीं है, लेकिन जिस समय यहां शिवलिंग की उत्पति हुई थी तो यहां पर कंटीलें झाड़ थे और केंदू के पेड़ के नीचे यह शिवलिंग था। ग्रामीणों ने यहां रोट, अनाज व अन्य प्रसाद सामग्री चढ़ाने सहित पूजा-अर्चना करनी शुरू कर दी। तब से लेकर नालागढ़ उपमंडल में यह शिव मंदिर आज शिव भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। जानकारी के अनुसार नालागढ़ क्षेत्र की क्योड़ी पंचायत के अंतर्गत आने वाले झाडिंया में स्थित महादेव मंदिर हैं, जहां सैकड़ों वर्ष पूर्व स्वयं प्रकट शिवलिंग निकलने के बाद यहां मंदिर स्थापित किया गया है, जो आज लोगों की आस्था का प्रतीक बना हुआ है। स्वयं प्रस्फुटित हुए इस शिवलिंग के बाद क्षेत्र के लोग यहां पर शीश नवाने आते थे। मई 1954 में यहां मंदिर की स्थापना करवाई गई और लभूराम ने यहां संत सम्मेलन का भी आयोजन किया। तब से लेकर यहां पर मंदिर स्थापना के अवसर पर यहां शिव पुराण की कथा का आयोजन करने के साथ भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस मंदिर तक पहंुचने के दो मार्ग है, जिनमें से एक मार्ग नालागढ़—रामशहर मार्ग पर करीब चार किलोमीटर की दूरी के बाद सेरी—कल्याणपुर मार्ग है और अब इस मार्ग पर पुल का निर्माण भी हो चुका है। दूसरा मार्ग फ्रेंड्ज कालोनी से होते हुए चुहूवाल जोहडि़यां से होकर जाता है। क्षेत्र के बुजुर्गों के मुताबिक उन्हें यह तो मालूम नहीं है कि यह शिवलिंग कितना पुराना है, लेकिन उन्हें इस बात का अपने पूर्वजों से पता चला कि जिस समय यहां शिवलिंग की उत्पति हुई थी तो यहां पर कंटीलें झाड़ थे और केंदू के पेड़ के नीचे स्वयं निकला हुआ शिवलिंग था। क्षेत्र के बुजुर्गांे का कहना है कि शिवलिंग के प्रस्फुटित होने के बाद गांववासी यहां पर रोट, अनाज व अन्य प्रसाद सामग्री चढ़ाने के साथ पूजा-अर्चना करने लगे। ग्रामीणों के मुताबिक भल्लेश्वर मंदिर के पुजारी स्वर्गीय भगवती दास के पिता स्वर्गीय लभू राम ने यहां आकर देखा तो उन्होंने इसकी खुदाई करवाने के लिए ग्रामीणों को कहा। ग्रामीणों ने इसे निकालने के लिए एक बहुत बड़ा करीब दस फुट गहरा गड्ढा खोदा और इसे निकालने की भरसक कोशिश की। जब प्रयास असफल रहें और शिवलिंग टस से मस न हुआ तो उन्होंने रस्से डालकर इसे निकालने का भी प्रयास किया और इसका मुंह विपरीत दिशा में मोड़ना चाहा। लेकिन शिवलिंग को वह हिला न सकें। इसके बाद लभू राम ने ग्रामीणों को यहां मंदिर की स्थापना करने के लिए कहा। ग्रामीणों का कहना है कि जब यहां शिवलिंग निकला और मंदिर बनाने की योजना पर कार्य चल रहा था तो लभू राम ने गांव के एक व्यक्ति को शिवलिंग स्थल पर पूजा-अर्चना करने के लिए तैनात किया, जिसका जिम्मा स्व. अच्छू राम को सौंपा गया। ग्रामीणों के पास साधन संपन्न न होने के कारण यहां पूजा सामग्री के लिए पैसे नहीं थे, जिस पर नंबरदार रामदितू ने मंदिर के साथ लगती करीब दो बीघा भूमि मंदिर के नाम दान दी और इसमें उगने वाली फसलों से प्राप्त आय को मंदिर में पूजा अर्चना व अन्य कामों में प्रयोग में लाया जाता है। ग्रामीणों का मत है कि जब से यहां शिवलिंग की उत्पति हुई है और मंदिर स्थापना हुई है, सेरी व झांडिया गांव के लोगों का कोई नुकसान नहीं हुआ है।


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