45 साल बाद भी चामुंडा संस्कृत कालेज को नहीं मिली बिल्डिंग

By: Feb 16th, 2017 12:07 am

news newsनगरोटा बगवां —  देवभूमि का सबसे प्रतिष्ठित तथा देश-विदेश तक कर्मकांड और ज्योतिष विद्या का डंका बजाने वाले पुरोहितों को गढ़ने वाला चामुंडा का संस्कृत कालेज अपनी स्थापना के 45 साल बाद भी अपनी हालत पर आंसू बहा रहा है । वर्ष 1972 में एक प्रबुद्ध जनों की समिति द्वारा शुरू किए गए कालेज को हालांकि मौजूदा समय में साढ़े चार करोड़ रुपए कमाने वाले मंदिर ट्रस्ट द्वारा इसका संचालन किया जा रहा है। 140 से अधिक छात्रों के शिक्षा मंदिर की खस्ती हालत देख किसी के भी रौंगटे खड़े हो सकते हैं ।  स्थापना के समय से ही सराय भवन में चल रहे त्रिगत संस्कृत कालेज की मामूली बारिश में भी टपकती छत,  अंधेर कोठरी नुमा क्लास रूम व टूटी-फूटी  रेलिंग हादसों को न्योता दे रही है। इसी जर्जर भवन में होस्टल की सुविधा पा रहे छात्र कितने सुरक्षित तथा सुविधाजनक माहौल में विद्या ग्रहण कर रहे हैं शायद यह जानना मंदिर प्रशासन ने आज तक जरूरी नहीं समझा । हालांकि मंदिर प्रशासन 2016-17 के बजट के मुताबिक सालाना 42.5 लाख उक्त कालेज के संचालन पर खर्च कर रहा है तथा इसी वर्ष मंदिर की कमाई भी सालाना 4.5 करोड़ के आंकड़े को पार कर चुकी है।

देश-विदेश में चमका रहे नाम

मार्च 1994 में मंदिर अधिग्रहण के बाद कालेज का संचालन मंदिर ट्रस्ट के पास आ गया और वर्ष 2008 में प्रदेश विश्वविद्यालय ने इसे रेगुलर कालेज घोषित कर दिया । सूत्र यह भी बताते हैं कि वर्ष 1991 में एक दौर ऐसा भी आया जब कालेज में छात्र संख्या घट कर मात्र नौ रह गई थी, लेकिन वर्ष 2000 से 2008 तक वह समय आया जब शास्त्री बनने के चाह्वानों की बढ़ती संख्या को देखते हुए कालेज प्रबंधन को सीटें निर्धारित करनी पड़ीं । उक्त कालेज में कर्मकांड का दो साल का कोर्स शुरू होने से यहां आने वाले शिक्षार्थियों में भारी बढ़ोतरी हुई । जानकारी यह भी है कि चामुंडा स्थित कालेज में शास्त्री की डिग्री लेना इसलिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है कि यहां से शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र देश-विदेशों में ज्योतिष कार्य में खासा नाम कमा रहे हैं।

26 छात्रों को ही होस्टल सुविधा

उक्त कालेज में वर्तमान समय में प्रदेश के लगभग हर जिले के 148 छात्र विद्या प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि कालेज प्रबंधन मात्र 26 छात्रों को ही होस्टल सुविधा दे पा रहा है। अधिकांश छात्रों को अपने स्तर पर रहने की व्यवस्था करनी पड़ रही है । इतना ही नहीं, मूलभूत ढांचे के आभाव में एक बंद कमरे में गठरियों में कैद धूल फांक रही प्राचीन दुर्लभ पांडुलिपियों, वेद शास्त्र तथा अन्य ज्ञान वर्धक धार्मिक व आध्यात्मिक पुस्तकें लाइब्रेरी के नाम तक को सार्थक करने में नाकाम साबित हो रही हैं । ‘दिव्य हिमाचल’ ने मंदिर प्रशासन की नब्ज टटोली तो यह सामने आया कि अगले दिनों उक्त कालेज को मंदिर परिसर में ही स्थित एक यात्री सदन में चलाने की योजना पर अम्ल हो सकता है । लेकिन इतने अरसे बाद भी इस महत्त्वपूर्ण संस्थान की ओर प्रशासन की उदासीनता हैरत अंगेज है । सूत्र बताते हैं कि 1972 में मात्र दो-तीन छात्रों से शुरू किए इस संस्थान में केवल एक विशेष जाति के  लोगों को ही शिक्षा दी जाती थी, लेकिन जब दो वर्षीय प्राग शास्त्री तथा तीन वर्षीय शास्त्री की डिग्री यहां मिलने लगी तो इसे विश्व विद्यालय के नियमों के मुताबिक निजी कालेज के रूप में सभी के लिए खोल दिया गया ।


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