आओ खेलें होली

By: Mar 14th, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

रंगों से अंगना सतरंगी, सुंदर सजी रंगोली,

रंगों का है महापर्व यह, आओ खेलें होली।

नजर मिलाती, आंख चुराती, भीगी चुनरी चोली,

झुकी शर्म से पलकें, कनखी से क्या बोली।

मस्त निगाहें घायल करतीं, अनुपम चली ठिठोली,

नयन शराबी गाल गुलाबी, मिसरी जैसी घोली।

मस्त हो रहे हैं मस्ताने, हुड़दंगों की टोली,

हंसते, झूमते, गिरते पड़ते, चढ़ी भाग की गोली।

गाल कर दिए लाल, भांग में भर दी चंदन, रोली,

नजर मिली है, बात बनी है, अब उठने को डोली।

तोता-मैना, बुलबुल, बेशक अपनी बोली,

बंगाली, मद्रासी, उडि़या मिलकर खेलें होली।

हिंदू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, सदा बनें हमजोली, गले मिलें हम, सदा ईद पर, सदा मनाएं होली।

कान्हा की पिचकारी ने, किस्मत शर्मा की खोली, कृष्ण-राधिका प्रेम रंग से, भर दें सबकी झोली।

 


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