आत्म पुराण

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

शंका — जब इंद्र ने गुरु के साथ द्रोह किया तो उन्होंने उसे श्राप क्यों नहीं दिया?

समाधान — दघ्यङ ऋषि ने विचार किया कि श्वान, सर्प आदि जो तामसी जीव हैं। वे अपने अपकारी पर क्रोध करके हानि पहुंचाते हैं। यदि विद्वान पुरुष भी अपकारी जन पर उसी प्रकार क्रोध करें, तो उन तामसी जीवों और विद्वान मनुष्य में क्या अंतर रहा। विद्वान पुरुष तो वे ही हैं, जो अपकारी का भी हित ही करते हैं। आत्माज्ञानी न किसी बात से दुःख मानते हैं और न बदला लेने का का विचार करते हैं।

शंका — यद्यपि शरीर जड़ है, पर वही आत्मा के सुख का साधन है। इसलिए शरीर का उपकार होने पर विद्वान को भी क्रोध हो सकता है?

समाधान — जैसे कोई पुरुष अपने हाथ से दूसरे हाथ, पैर या मस्तक को ठोके, पर इससे क्रोध नहीं होता, उसी प्रकार विद्वान को एक शरीर से दूसरे शरीर की ताड़ना किए जाने से भी क्रोध नहीं आता, क्योंकि वे सब शरीरों में एक ही आत्मा का अधिष्ठान समझते हैं। जो पुरुष शास्त्र को जानता हुआ भी अपकारी पर क्रोध करता है, उसे आत्यवेत्ता नहीं कहा जा सकता। दध्यङ ऋषि के ऐसे भावों को देखकर इंद्र अपने लोक को चला गया। इसके कुछ काल पश्चात गुरु के कथानानुसार तुम दोनों वैराग्यादि साधनों को साध कर ब्रह्म विद्या का उपदेश लेने को उनके पास पहुंचे। तो इंद्र को आज्ञा स्मरण करके वे अपने कर्त्तव्य के विषय में विचार करने लगे। अंत में उन्होंने यही निश्चय किया कि जब मैंने इनको वैराग्य का संपादन करने के पश्चात ब्रह्म विद्या के उपदेश का वचन दिया था, तो अब उसे देना ही चाहिए। अन्यथा मुझको मिथ्या भाषण का दोष लगेगा। यह विचार कर दध्यङ ऋषि ने इंद्र की समस्त घटना तुमको बतला दी और कहा कि मैं अपनी प्रतिज्ञा पालन के लिए तुमको ब्रह्मविद्या का उपदेश अवश्य दूंगा। इसके फलस्वरूप इंद्र के हाथ से मेरी मृत्यु हो जाए, इसकी कोई चिंता नहीं है। क्योंकि यह शरीर तो जड़ पदार्थ और नष्ट होने वाला ही है, किंतु मिथ्या भाषण का पाप तो मुझे नरक में ले जाएगा। यह विचार करके तुम्हारे गुरु ने कहा, ‘हे अश्विनी कुमारो! बाल्यावस्था से अब तक मैंने कभी मिथ्या वचन नहीं कहा, तो अब इस वृद्ध अवस्था में ऐसा वचन कैसे कह सकता हूं। इसलिए जैसे मैनें कहा था कि वैराग्य संपादन कर लेने पर मैं तुमको ब्रह्म विद्या का उपदेश दूंगा, उसे मैं अब भी अवश्य पालन करूंगा। इसके पहले इंद्र मेरे पास आया था और मैंने उसकी प्रार्थना स्वीकार करके ब्रह्म विद्या का उपेदश दिया था। पर उसे सुनकर प्रसन्न होने के स्थान में उल्टा क्रोधित हुआ और हमको यह आदेश दिया कि यदि तुम अब से आगे इस विद्या का उपदेश किसी अन्य को करोगे, तो मैं तुम्हारा मस्तक वज्र से काट डालूंगा।’

शंका — हे भगवन! यदि देवराज इंद्र ने आपको ब्रह्म विद्या का उपेदश करने का निषेध किया है, तो आप हमको किस प्रकार उसका उपदेश करेंगे। क्योंकि आप जब इंद्र को ब्रह्म विद्या का उपदेश किसी को न करने का वचन दे चुके हैं, अब हमको उसका उपदेश देंगे तो आपको मिथ्या भाषण का दोष लगेगा?

समाधान — हे अश्विनी कुमारो! हमने तुमको ब्रह्म विद्या के उपेदश का वचन इंद्र के आने के पहले दिया था और अब इंद्र को इतना ही वचन दिया है कि यदि हम इसके आगे किसी को ब्रह्म विद्या का उपदेश करें तो हमारा मस्तक काट डालना, मुझे इंद्र के हाथ से मरने का भय नहीं है, क्योंकि मरना तो एक दिन है ही। इस प्रकार सत्य की रक्षा के लिए इंद्र द्वारा मारे जाने से तो संसार में हमारी कीर्ति ही बढ़ेगी। फिर तुम दोनों बुद्धिमान हो, अगर कोई अन्य उपाय इसके सिवाय उचित हो तो बचाओ।

अश्विनी कुमार- आप इंद्र के वज्र का कुछ भय मत कीजिए। हम अपनी विद्या द्वारा उसका प्रतिकार करने में समर्थ हैं।


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