आम रोगों की रंग चिकित्सा

By: Mar 4th, 2017 12:05 am

पेट में, आंतों में रक्त या शरीर के अन्य किसी भाग में दूषित मल इकट्ठे  हो जाते हैं, तब उनको दूर करने के लिए प्रकृति संघर्ष करती है, यही ज्वर का मूल कारण और स्पष्ट लक्षण शरीर में गर्मी बढ़ जाना है। गर्मी का रंग लाल है। हर प्रकार के ज्वरों में गर्मी बढ़ी हुई होती है। गर्मी को शांत करने के लिए शीतलता का देना आवश्यक है। जब किसी गर्म चीज को स्वाभाविक स्थिति में लाना होता है तो ठंडक देते हैं। यही प्राकृतिक नियम सूर्य चिकित्सा पर भी लागू होता है…

ज्वर अनेक प्रकार के होते हैं। आयुर्वेदिक, यूनानी और डाक्टरी में उनके बहुत भेद बताए हैं, परंतु इन सबका वास्तविक कारण एक ही है। अर्थात शरीर में अनावश्यक गर्मी का बढ़ जाना, कारणों की भिन्नता से यह अलग-अलग प्रकार का दिखाई देता है। जब ज्वर का प्रकोप दिमाग पर अधिक होता है तो जुकाम कहा जाता है। सर्दी-गर्मी मिलकर जो बुखार आता है,वह मलेरिया है। जिन ज्वरों में कफ सूख जाता है, उन्हें इन्फ्लूएंजा कहते हैं। जुकाम बिगड़ जाने पर अकसर खांसी हो जाती है। पाठकों को यह स्मरण रखना चाहिए कि पेट में, आंतों में रक्त या शरीर के अन्य किसी भाग में दूषित मल इकट्ठे  हो जाते हैं, तब उनको दूर करने के लिए प्रकृति संघर्ष करती है, यही ज्वर का मूल कारण और स्पष्ट लक्षण शरीर में गर्मी बढ़ जाना है। गर्मी का रंग लाल है। हर प्रकार के ज्वरों में गर्मी बढ़ी हुई होती है। गर्मी को शांत करने के लिए शीतलता का देना आवश्यक है। जब किसी गर्म चीज को स्वाभाविक स्थिति में लाना होता है, तो ठंडक देते हैं। यही प्राकृतिक नियम सूर्य- चिकित्सा पर भी लागू होता है। नीला रंग ठंडा है, इसलिए ज्वर की दवा नीला रंग है। हल्के रंग की बोतल में तैयार किया हुआ पानी देना चाहिए। सिर में दर्द अधिक हो तो मस्तक पर नीले कांच की रोशनी डालना उचित है। अधिक पीडि़त अंग को भी नीले रंग के शीशे की धूप देनी चाहिए। वात ज्वर में गहरा नीला रंग, पित्त ज्वर में आसमानी और कफ ज्वर में नारंगी रंग देना ठीक है। बड़े आदमी को अढ़ाई तोले पानी की मात्रा में दिन में चार बार और बच्चों को एक तोले की मात्रा दो से तीन बार देनी चाहिए। बुखार के साथ में यदि पेट में कब्ज भी हो तो पीले रंग का पानी देना उपयोगी होता है। कुछ लक्षणों में विशेष सावधानी की जरूरत है। चेचक निकल रही हो तो नीला रंग देना चाहिए अन्यथा चेचक निकलना रुक जाएगा जो बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकता है। यदि सन्निपात या निमोनिया आदि में एकदम शीतलता आ जाए तो भी नीला रंग ठीक न होगा, उस दशा में लाल रंग देना उचित है। बुखार की हालत में जुकाम बिगड़ा हुआ हो, कफ चिपट गया हो, कुकर खांसी हो तो हरा रंग फायदेमंद है।

अतिसार

दस्तों की बीमारी की भी बुखार की तरह शाखाएं हैं। आमातिसार, रक्तातिसार, पेचिश, मरोड़, संग्रहणी आदि कारण एक ही है। आसमानी रंग सब प्रकार के दस्तों में फायदा करता है। पुराने दस्त जो बड़े-बड़े डाक्टरों के इलाज से अच्छे नहीं हो सकते थे, वे नीले पानी के उपयोग से ठीक होते देख गए हैं। नए और मामूली दस्तों में हल्के हरे रंग से फायदा हो जाता है।

कब्ज-

सूर्य चिकित्सा से सिद्धांतानुसार दो प्रकार के कब्ज होते हैं। एक लाल रंग के बढ़ने से, दूसरा पीले रंग के बढ़ने से, या यों कहिए कि गर्मी की अधिकता से, दूसरा सर्दी की अधिकता से। लू लग जाने से, गर्मी के चले आने, तेज मिर्च-मसाले, सिरका, मांस आदि खाने, अति मैथुन करने, ज्यादा परिश्रम करने, दुख-क्रोध-शोक करने से जो कब्ज होती है, वह गर्मी का है। इसमें प्यास अधिक लगती है, चक्कर आते हैं, मितली-सी होती हैं, पेट ज्यादा भारी नहीं होता, पर भोजन को देखते ही अरुचि होती है, दस्त पतला होता है, पेशाब पीला उतरता है, शरीर दुबला हो जाता है, पित्त बढ़ जाने के कारण मुंह का जायका कड़वा रहता है, खट्टी डकारें आती हैं। नीले रंग की अधिकता अर्थात सर्दी के कारण कब्ज उनको अधिक होता है, जो दिनभर घर पर बैठे रहते हैं, शारीरिक श्रम न करने के कारण आंतें सुस्त पड़ जाती हैं, जिससे रोगी का शरीर फूलने लगता है। कुछ दिन में तोंद निकल आती है और चलना-फिरना तक कठिन हो जाता है। अधिक  घी पड़े हुए मिष्ठान या अधिक केला, मेवा आदि गरिष्ठ पदार्थ खाने से भी कब्ज होती है। निराशा, सुस्ती, जुकाम से भी कब्ज होती है। पेट भारी रहता है, मेदे में सूजन मालूम होती है, दस्त कम तादाद में फटा हुआ और आंव लिए हुए आता है, पेट और आंतें जकड़ी हुई सी मालूम देती हैं और भीतर सूइयां चुभने जैसा हल्का दर्द होता रहता है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App