कृषि विश्वविद्यालय के नौ पेटेंट कतार में

By: Mar 17th, 2017 12:05 am

पालमपुर —  प्रदेष कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पेटेंटों के पंजीकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों के तहत भारतीय पेटेंट कार्यालय में नौ पेटेंट प्रार्थना पत्र दाखिल किए गए हैं।  इससे पूर्व विश्वविद्यालय के ‘हिम पालम’ ट्रेड मार्क का पंजीकरण हो चुका है। इस बात का खुलासा अध्यापकों व स्नातकोतर विद्यार्थियों के लिए ‘बौद्धिक संपदा अधिकार में संबंधित प्रावधान व चुनौतियां’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में किया गया है। कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने बताया कि विश्वविद्यालय किसानों के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के लिए हर संभव सहायता करेगा, क्योंकि वे पारंपरिक फसलों की प्रजातियों के संरक्षण व फसलों की नई-नई प्रजातियों के विकास में बहुत पहले से वैज्ञानिकों की सहायता कर रहे हैं। ‘पौध-प्रजाति संरक्षण व किसान अधिकार अधिनियम 2001’ एकमात्र अधिनियम है जिसने किसानों के योगदान व उनके अधिकारों को स्वीकृति दिलाने का कार्य किया है। कुलपति ने पौध-प्रजाति संरक्षण व किसान अधिकार अधिनियम के अंतर्गत विश्वविद्यालय के बहुमूल्य आनुवांशिकी संसाधनों के संरक्षण के जिए पेटेंट आवेदन व पंजीकरण की आवश्यकता पर बल दिया। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के एनएआईपी प्रकोष्ठ के भूतवूर्व समन्वयक डा. सुधीर कोछड़ ने बौद्धिक संपदा अधिकार में राष्ट्रीय नीति तथा व्यवस्थापन संबंधी मार्गदर्शी दिशा-निर्देशों पर विस्तार से चर्चा की तथा बताया कि केंद्र सरकार द्वारा शुरू जन-धन, फसल बीमा योजना, डिजिटल मनी इत्यादि योजनाओं से भी बौद्धिक सम्पदा अधिकार के क्षेत्र में वैश्विक बाजारीकरण की प्रतिस्पर्धा में शामिल होने का अवसर मिलेगा। शोध निदेशक डा. आरएस जमवाल ने विभिन्न पारंपरिक फसलों की प्रजातियों तथा उनके मूल क्षेत्रों के बारे में जानकारी दी तथा उनके पंजीकरण करवाने की जरूरत पर बल दिया। इस मौके पर विश्वविद्यालय के बौद्धिक संपदा अधिकार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष डा. एचके चौधरी, पौध-प्रजाति संरक्षण व किसान अधिकार अधिनियम के नोडल अधिकारी डा. जेके शर्मा, सचिव डा. केडी शर्मा तथा हिमाचल प्रदेश राज्य विज्ञान प्रौद्योगिकी व पर्यावरण परिषद के वैज्ञानिक डा. रीतिका कंवर ने भी बौद्धिक संपदा अधिकार में संबंधित प्रावधानों व चुनौतियों पर विचार रखे। विश्वविद्यालय तथा हिमाचल प्रदेश राज्य विज्ञान प्रौद्योगिकी व पर्यावरण परिष् द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में लगभग 125 वैज्ञानिकों व स्नातकोतर विद्यार्थियों ने भाग लिया।


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