‘केसरिया सत्ता’ का जनादेश !

By: Mar 14th, 2017 12:01 am

जनादेश 2017 प्रधानमंत्री मोदी पर जनमत नहीं है, लेकिन यह ‘मोदी नाम केवल’ का ही जनादेश है। बेशक भाजपा के असंख्य नेताओं और कार्यकर्ताओं की भी अनथक मेहनत थी, लेकिन प्रेरणास्रोत सिर्फ मोदी ही थे। उन्होंने ही जनता का मानस बदला, भाजपा की ओर आकर्षित किया और उन्होंने ही भरोसा जगाया। लिहाजा यह जनादेश पौने तीन साल पुरानी मोदी सरकार, उसकी नीतियों और जनवादी कार्यक्रमों पर जनता की ‘बहुमती मुहर’ जरूर है। बेशक अखिलेश यादव, राहुल गांधी, मायावती और केजरीवाल सरीखे नेता लगातार सवाल करते रहे कि मोदी सरकार ने क्या काम किए हैं? बेशक 15 लाख रुपए, सूट-बूट की सरकार और दो करोड़ नौकरियों के मुद्दों पर ही उनकी सूई ठिठकी रही। बेशक प्रधानमंत्री मोदी से विपक्षी नेताओं का एक खास तबका निजी तौर पर नफरत करता रहा या गालियां सरीखे अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करता रहा। बेशक मोदी की केसरिया पार्टी भाजपा पर घोर सांप्रदायिकता की तोहमतें लगती रहीं, लेकिन आज का यथार्थ यही है कि आधे से ज्यादा देश में ‘केसरिया सत्ता’ है और कांग्रेस सिकुड़ती जा रही है। जनादेश 2017 के साथ ही देश के प्रमुख 15 राज्यों और करीब 60 फीसदी आबादी में भाजपा या उसके सहयोगी दल सत्तारूढ़ हैं। जिस कांग्रेस ने करीब 60 सालों तक देश पर राज किया, उसकी सत्ता आधा दर्जन राज्यों तक ही सिमट गई है। भाजपा ने 1991 की ‘राम लहर’ से 91 सीटें ज्यादा जीती हैं। 1980 में ‘इंदिरा गांधी की लहर’ से भी तीन सीटें अधिक हासिल की हैं। करीब चार दशक पहले जनता पार्टी के दौर में 352 सीटें जीती गई थीं। वह ‘क्रांति और बगावत’ का दौर था, लेकिन तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था, लिहाजा पहली बार भाजपा ने ही उत्तर प्रदेश में 312 सीटें जीती हैं, जबकि उसके सहयोगी दलों की जीती सीटें मिलाकर कुल संख्या 325 बनती है। यह अपने आप में रिकार्ड है। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम प्रभाव वाली 124 सीटों में से 99 पर भाजपा के हिंदू उम्मीदवार विजयी रहे हैं। अभी प्रधानमंत्री मोदी के करिश्मे का दौर समाप्त नहीं हुआ है, अभी तो परवान चढ़ा है। इसी साल गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल आदि राज्यों में भी चुनाव हैं। इनमें से कर्नाटक एकमात्र महत्त्वपूर्ण और बड़ा राज्य है, जहां कांग्रेस सरकार है, लेकिन चुनावों के बाद उसके भी छिनने के पूरे आसार हैं। भाजपा ने रणनीति बना ली है। अब भाजपा के कुल विधायकों और सांसदों की संख्या इतनी हो गई है कि वह अपनी पसंद के नेता को देश का अगला राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बना सकती है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेतृत्व का ऐसा मानस नहीं है। ये दोनों शीर्ष संवैधानिक पद आम सहमति के हैं, लिहाजा सर्वानुमति से ही तय किए जाएंगे। देश में ‘केसरिया सत्ता’ होगी, इसके गलत मायने नहीं निकाले जाने चाहिए। ‘केसरिया’ के मायने सांप्रदायिक नहीं हैं। वह ओज, तेजस्विता और साहस, उत्साह का प्रतीक-रंग है और भाजपा इनत माम भावों की वाहिका पार्टी है। यदि फिर भी विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर मोदी और भाजपा विरोधी साझा मोर्चा बनाने की जुगत में है और एक बार फिर सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता को राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहता है, तो निश्चित तौर पर फायदा प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को ही होगा। कारण, आम आदमी ने प्रधानमंत्री मोदी और उनकी जन-धन, मुद्रा, उज्ज्वला गैस, फसल बीमा, घर-घर में शौचालय, गांव-दर-गांव बिजली, 2022 तक प्रत्येक नागरिक के सिर पर अपने पक्के घर की छत का साया आदि 93 योजनाओं पर भरोसा किया है। आम आदमी जानता है कि भ्रष्टाचार, काला धन, आतंकवाद से यही प्रधानमंत्री लड़ सकता है। हालांकि नोटबंदी के दौरान आम आदमी को परेशानियां उठानी पड़ीं, बैंकों के बाहर कतारों में खड़े करीब 150 लोगों की मौत भी हो गई, लेकिन पांच राज्यों के इन चुनावों में नोटबंदी मुद्दा नहीं बन सकी। कारण, प्रधानमंत्री आम नागरिक को भरोसा दिलाने में कामयाब रहे हैं कि वह ही बेईमान और कालाधनी अमीरों के ‘कॉलर’ पकड़ सकते हैं। राहुल गांधी और मायावती सरीखे नेताओं ने संसद के भीतर और बाहर नोटबंदी पर खूब चीखा-चिल्ली की, लेकिन उन्हीं के दलों की शर्मनाक पराजय हुई है। कांग्रेस को तो उत्तर प्रदेश में मात्र सात सीटें ही मिली हैं, जो अभी तक का न्यूनतम आंकड़ा है। बसपा 20 सीटों तक पहुंच नहीं पाई, लिहाजा उसके सामने अपने अस्तित्व का संकट है और भाजपा की शानदार जीत हुई है। गोवा में वह पिछड़ी है, लेकिन त्रिशंकु जनादेश के बाद भाजपा भी गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने की दौड़ में शामिल जरूर है। बहरहाल हम अभी से यह दावा करना शुरू नहीं करेंगे कि इस जनादेश ने 2019 के लोकसभा चुनावों की बुनियाद भी तैयार कर दी है, लेकिन विपक्ष इतना कांप और सहम गया है कि उसने 2019 की उम्मीद छोड़ दी है।


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