गंगा-यमुना के अधिकार

By: Mar 22nd, 2017 12:01 am

( अमित पडियार (ई-मेल के मार्फत) )

गंगा-यमुना दोनों नदियों को जीवित मानते हुए नैनीताल उच्च न्यायालय ने इनसानों की ही तरह इन्हें अधिकार देने के निर्देश दिए हैं। गंगा को देश की अमृतरेखा, तो यमुना को जीवनदायिनी नदी कहा जाता है। इन दोनों नदियों का हिंदू धर्म में ऊंचा स्थान है, लेकिन इन नदियों पर सही ध्यान न देने से ये नदियां बुरी तरह गंदगी की चपेट में आ चुकी हैं। इन्हें स्वच्छ करने के लिए इनमें कारखानों से छोड़े जाने वाले प्रदूषित, रासायनिक जल पर पूरी तरह रोक लगाना जरूरी है और यही आज संभव नहीं है। प्रदूषित जल को शोधन प्रक्रिया के बाद ही किसी नदी में छोड़ा जाना जरूरी होता है, लेकिन इस महत्त्वपूर्ण बात पर कोई ध्यान नहीं देता। हर कंपनी को मुनाफा चाहिए और इसके लिए वह कुछ पैसा जल शोधन संयंत्र पर लगाने को भी राजी नहीं होती। सरकार की तरफ से हजारों करोड़ रुपए दोनों नदियों की स्वच्छता पर खर्च हो चुके हैं, फिर भी उस खर्च के अनुसार कुछ अच्छा काम नजर नहीं आ रहा। आखिर कब तक यूं ही सरकार को पैसा इस कार्य के लिए बहाना पड़ेगा? आज एक इनसान दूसरे इनसान को कुचलने के लिए भी तैयार रहता है। ऐसे में नदी तो उनके लिए बेजान चीज है। उसकी चीख, उसकी समस्या, नजर आने पर भी उन्हें अनदेखा करना उनकी आदत है। ऐसे इनसानों की वजह से ही गंगा-यमुना मैली हो गई हैं। इस बीच उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा दोनों नदियों के पक्ष में दिए गए निर्देश कितने फायदेमंद होंगे, यह आने वाला वक्त ही बताएगा।

 


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