चुनावी पहर में बजट

By: Mar 1st, 2017 12:05 am

हिमाचली बजट में जनता की खुशी को ठूंसने का अंतिम अवसर सरकार के पास और सत्ता की खुशियां छीनने का सफर विपक्ष के पास। हालांकि वीरभद्र सिंह सरकार ने पिछले एक साल में घोषणा के हर मंच को बखूबी सजाने, संवारने, संपूर्ण और समवेत बनाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन विपक्ष का हिसाब इसके विपरीत अंक गणित करेगा। बजट की तासीर के फलदायी होने से कहीं अधिक कठिन सवाल विपक्ष के रहेंगे और इसीलिए सत्र में प्रश्नों का अंबार एक रिकार्ड की तरह है। विपक्ष द्वारा मांगी गई चर्चाएं और चार्जशीट की उपस्थिति से माहौल की गर्मी बाहर से कहीं अधिक होगी। सरकार की कथनी और करनी के बीच अंतर के सारे तकाजे उद्वेलित होंगे, तो विपक्ष की धार से कटने का खौफ भी मंडराता रहेगा। केंद्रीय बजट की आंख ने प्रदेश को जिस अंदाज में देखा, उससे कहीं अलग राज्य के बजट को आजमाने की कसरत सत्ता करेगी, लेकिन इससे पूर्व बेरोजगारी भत्ते की आहट में कांग्रेस के भीतर भी एक खेल का मैदान दिखाई दे रहा है। कांग्रेस की अपनी जनवेदना तड़प रही है, तो मुहाने पर सुर्ख हो रहा बेरोजगारी भत्ता अपनी ही सरकार की किरकिरी को काफी होगा। कांग्रेस के जो नेता वीरभद्र को झुकाना चाहते हैं, वे विपक्ष का धर्म भी निभा रहे हैं। ऐसे में सरकार को गर्म तवे पर चढ़ाने के लिए पार्टी अग्नि की किसकी अग्निपरीक्षा से प्रतिस्पर्धा है, यह भी बजट सत्र की गरमाहट बताएगी। यह स्पष्ट है कि चुनावी साल में पार्टी बनाम सत्ता के खेल में आंच है, तो टूटने को छवि का कांच भी है। तब चकनाचूर होने की गुंजाइश में किसके अरमानों की होली जलेगी। इसका फैसला यकीनन सत्र के बाहर होगा, लेकिन भीतर विरोध की सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री को ही मिलेगी। बहरहाल कांग्रेस व सत्तारूढ़ दल के परिवहन मंत्री ने बजट सत्र को मुखर बनाने में अवश्य ही योगदान किया है। संघर्ष के अपने बारूद से बचने की कोशिश में, सरकार को शीशे में उतरना पड़ेगा। सत्र की नाजुक पंखुडि़यों पर मुद्दों का आक्रमण और चुनावी सीरत में आगे बढ़ने का सबब बनकर खड़ा विधानसभा सदन। विपक्षी मेहनत से सराबोर चार्जशीट के सामने हालांकि कोई पतली गली नहीं, फिर भी बहस के आशियाने में बस जाना नामुमकिन, इसलिए कितने आक्रोश और कितने वाकआउट, यह कयास लगाना कठिन होगा। सरकार या यूं कहें मुख्यमंत्री अपनी हैसियत का जमा-घटाव, बजट में सिद्ध करेंगे, लिहाजा विपक्ष के पास भी विरोध की कंजूसी नहीं होगी। बजट के खूबसूरत अंदाज पर प्रदेश के आर्थिक हालात का मुआयना कितना टिक सकता है, यह अभ्यास भाजपा ने पूरी शिद्दत से किया है। सरकार की दुखती रग पर पार्टी का हमलावर रुख और युवाओं के पैरोकार बनने की तमन्ना में परिवहन मंत्री के राजनीतिक समीकरण उलझ गए, तो विपक्षी अखाड़ा लंबा होता जाएगा। राजनीतिक युद्ध क्षेत्र से हट कर बजट के माध्यम से उम्मीदों का संबोधन किस हद तक होता है, इस पर सरकार के मंत्रियों को भी अपना प्रदर्शन साबित करना होगा। भाजपा के आक्रामक रुख की धार पर चलते हुए यह सत्र कितना लहूलुहान होता है, यह आम आदमी की आशाओं का अतिक्रमण ही बताएगा?


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