नई सरकार से इनसाफ की आस

By: Mar 24th, 2017 12:02 am

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के सिट की कार्यप्रणाली पर सवाल

चंडीगढ़— पंजाब की नई सरकार को पंजाब के उन 600000 लोगों की आवाज को सुनना चाहिए, जिन्होंने 1984 के सिख नरसंहार के लिए इनसाफ  प्राप्त करने के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के साथ हाथ मिलाया है। ये बात चंडीगढ़ प्रेस क्लब में हुए एक विचार-विमर्श के दौरान एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कही।  फरवरी 2015 में केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने एक विशेष जांच दल  गठित किया, ताकि नरसंहार से संबंधित मामलों की फिर से जांच की जा सके, लेकिन ये जांच काफी धीमी चल रही है। फरवरी में इस जांच को फिर से तीसरा विस्तार दिया गया। अब इस जांच को अगस्त 2017 तक पूरा किए जाने का समय दिया गया है। सिट ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि उसने दोबारा से जांच के लिए 59 मामलों की पहचान की है, जिनको दिल्ली पुलिस द्वारा नरसंहार के बाद बंद कर दिए गए 267 मामलों में से चुना गया है। इनमें से 38 मामलों को बंद कर दिया गया है और चार मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट गुरलाड सिंह काहलों द्वारा सिट की कार्यप्रणाली को लेकर दायर की गई जनहित याचिका की भी सुनवाई कर रहा है। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने इस अभियान सिट की कार्यप्रणाली और नरसंहार के पीडि़तों और पीडि़त परिवारों के बचे हुए लोगों को इनसाफ  प्रदान करने के लिए परिचर्चा का आयोजन किया।  इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार हरमिंदर कौर ने कहा कि इस समय सरकार को एक नया कानून बनाना चाहिए, ताकि किसी भी प्रकार की सांप्रदायिक हिंसा के दौरान अपने कर्तव्य का पालन न कर पाने वाले राजनेताओं, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को ड्यूटी में कोताही के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके। सनम सुतिरथ वजीर एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया ने कहा कि सिट ने सालों से इनसाफ  के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को निराश किया है। इसने बीते दो सालों में सिर्फ चार आरोपपत्र ही दाखिल किए हैं। सिट की कार्यप्रणाली भी पारदर्शी नहीं है। सिट ने सुप्रीम कोर्ट में जिन रिपोर्ट्स को जमा करवाया है उनमें ये तक नहीं बताया गया है कि आखिर जिन मामलों को दोबार जांच के लिए पहचाना गया था, उनको आखिर  क्यों बंद कर दिया गया। नवंबर 2014 में इस नरसंहार की 30वीं बरसी पर एक सार्वजनिक अभियान की शुरुआत की गई, ताकि नरसंहार के पीडि़तों को इनसाफ  मिल सके।


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