महिलाओं की स्थिति

By: Mar 8th, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

स्थिति नित्य बिगड़ रही, नहीं हुआ बदलाव,

पंक्ति पीडि़तों की बढ़ी, रिसते हैं नित घाव।

है समाज गतिशील अति, पर है पुरुष प्रधान,

शहर गांव हर मोड़ पर, देवी का अपमान।

यह विडंबना है बहुत, सख्त नियम कानून,

फिर भी प्रति पल हो रहा, इज्जत का खून।

कैसे इज्जत-आबरू, रहे सुरक्षित आज,

खाकी, शासन अंधता, है प्राचीन रिवाज।

पीडि़त क्या वर्णन करे, हरे कर रहे घाव,

खाकी रोज कुरेदते, परिजन खाते ताव।

चीख रहे हैं आंकड़े, बिगड़ रहे हालात,

सहती अत्याचार वो, सुबह-शाम, दिन-रात।

टोके मत, जो चाहतीं, पहनें वो परिधान,

बंद करे छींटाकशी, खुद पर भी दें ध्यान।

काफी फाइन भर चुकी, दें वांछित परिणाम,

जो वांछित है, उचित है, नहीं मिला स्थान।

निम्न वर्ग या उच्च सब, घुटन सह रही रोज,

रोज भटकती निर्भया, जीने की है खोज।

कन्या है घर में अगर, तब कल होगी भोर,

वरना घर श्मशान है, लाख लगा ले जोर।

 


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