मैं सदन हूं, सत्ता नहीं

By: Mar 20th, 2017 12:05 am

बहस से भीगी हिमाचल विधानसभा ने इस बार राजनीति को भी मुचलके पर रखा है। हालांकि फिसलने के लिए इस बार भी विषय कम नहीं थे, लेकिन विपक्ष और सत्ता ने अपने दायरे की जुबान को सदन के भीतर ही रखा। इसे हम सदन की तारीफ में देखें या लोकतांत्रिक आवश्यकता के अनुरूप महसूस करें, लेकिन सच यही है कि सत्ता और विपक्ष के बीच सियासत मात्र अखाड़ा नहीं, साहसिक विचार व विवाद का आदान- प्रदान है। यह दीगर है कि अंतिम बजट की शिद्दत में हिमाचली सत्ता जहां खड़ी है, वहां विपक्ष के पास संवाद नहीं विवाद ही रहेगा। इसलिए सदन में हर विपक्षी उतरा और खूब जोर से अपने हर घाव और अपने हर ताव का परिचय दिया। हिमाचल में नेताओं की यूं तो पहचान चुनावी रंग में होती है, लेकिन जब प्रतिनिधियों की अवधि का रंग उतर रहा हो, तो राजनेताओं का सही विश्लेषण होता है। इसलिए दोनों तरफ से जो बोला जा रहा है, उसमें न विषय हकला रहे हैं और न ही हड़बड़ी में कोई अपना वक्त गंवा रहा है। शायद वक्त और बजट की बचत होती भी तब है, जब चुनाव से पहले ऐसे  सत्र की फिराक में राजनीतिक गुलाल उड़ता है और किसी एक का भी रंग नहीं चढ़ता। इसलिए कांग्रेस सरकार के बजटीय रंग में भाजपा के विरोधी रंग को अलग करके नहीं देखा जा सकता और विषय वस्तु भी यही कि मुद्दों को भी खबर है कि राजनीति उन्हें सजाने और साधने आ रही है। सदन में भी जब आरोपों की आंखें खुलीं, तो सामने सत्ता के बजट का सुरमा असरदार ढंग से तैयार था, लिहाजा यह फैसला करना मुश्किल होगा कि कौन अंत में सवा सेर निकलेगा। विवादों और आरोपों को तकलीफ यही है कि अंतिम बजट की कलाकारी में कहीं इसकी आर्थिक त्वचा के बजाय स्पर्श को ही न महसूस कर लिया जाए। इसलिए जब विपक्ष ने मंत्रियों के प्रदर्शन में क्षेत्रवाद ढूंढा या सरकार  की काबिलीयत को शक के घेरे में लिया, तो सत्ता ने सदन के प्रति सदाशयता का परचम फहराने में कोई कसर न छोड़ी, हालांकि यह समझना कठिन है कि लगातार वित्तीय घाटों के बीच, आर्थिक खुशहाली का उपवन आम आदमी के नजदीक कैसे पहुंच जाता है । प्रदेश पर ऋण का बोझ एक आदत को पूरा कर रहा है या हम नागरिकों की तकदीर की पुडि़या ऐसी ही किसी किस्त से बंधी है। बजट की  तारीफ में दर्जनों अफसाने, लेकिन विकास के लिए किसका बजट अधिक बचेगा, इस बहस का कोई भी अंदाज दोनों पार्टियों को अलहदा नहीं देख सकता। हम तो वाकई शहंशाहों का राज्य बनाते हैं और हर बार बजट हमारी जी हुजूरी करता है, न कर चुकाते हैं और न ही नए कर लगाने की सत्ता को अनुमति देते हैं। प्रदेश का बजट कर्मचारी के नाम पर हर बार  नया शिलालेख लिखता है और पेंशनरों को भी तो  प्रसन्न रखने में हिमाचल कहीं आगे ही खड़ा होता है। देखें जब सातवां वेतन आयोग यहां भी मुस्कराएगा, तो राज्य कोष  के कलेजे पर कितना बड़ा पत्थर रखना पड़ता है।  मुख्यमंत्री ने सिलसिलेवार विपक्षी आरोपों को खारिज किया, लेकिन विपक्ष तो मीन मेख निकालेगा, सो बजट को न जाने कितने वाकआउट मिलेंगे और यही विरोध का दस्तूर भी है। बजट सत्र पर सबसे बड़ी कुंडली सत्ता या विपक्ष की रहेगी, यह तो वक्त या सदन के बाहर का अक्स बताएगा, लेकिन प्रदेश से जिस  दूसरी राजधानी की मुलाकात वीरभद्र सिंह सरकार ने कराई, उस पर विपक्ष की नीयत पर भी तो बात होगी। देखना यह भी होगा कि भाजपा सदन में कांग्रेस को कहां तक ले जाती है, वरना अब तो दौर यह भी है कि हर मंजिल चुनाव तक जाती है।


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