यूपी में नई करवट
( राजीव रंजन तिवारी लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं)
देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सियासत ने जबरदस्त करवट ली है। निश्चित रूप से यहां के लोगों को अब धर्म और सियासत के कॉकटेल का स्वाद मिलेगा। गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के यूपी के मुख्यमंत्री बनते ही यहां एक नई तरह की सियासत की शुरुआत हो गई। इससे पूर्वांचल के इलाके समेत प्रदेश भर में जश्न का माहौल है। आपको बता दें कि सीएम मनोनीत होने के बाद योगी आदित्यनाथ ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे ‘सबका साथ, सबका विकास’ को आगे बढ़ाने की बात कहकर यह संकेत दिया कि उनके बारे में जो नकारात्मक बातें गढ़ी जाती रही हैं, वह वास्तव में वैसे नहीं हैं। इससे यह प्रतीत हो रहा है कि यूपी के नए सीएम योगी आदित्यनाथ प्रदेश के हर वर्ग, समुदाय को एक नजर से देखेंगे और सबके लिए काम करेंगे। यही लोगों की अपेक्षा भी है। इन अपेक्षाओं पर योगी खरे उतरेंगे, फिलहाल इस विश्वास की अपनी कई वजहें हैं। हालांकि राजनीति के ज्ञानी मानते हैं कि भाजपा ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अपने एजेंडे को आगे करने के लिए योगी आदित्यनाथ को चुना है। इतना ही नहीं, योगी के सीएम बनने में आरएसएस के बड़े नेताओं का भी प्रभाव माना जा रहा है। इसलिए यह कह सकते हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ ही यूपी में एक नई सियासत की शुरुआत हुई है। यूपी में भाजपा का लंबे अरसे का वनवास खत्म होने के साथ ही योगी आदित्यनाथ सूबे के 21वें मुख्यमंत्री बन गए हैं। उनके साथ ही केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा उप मुख्यमंत्री बने। 45 साल के योगी आदित्यनाथ की छवि एक कट्टर हिंदूवादी नेता के रूप में रही है।
साल 1998 से गोरखपुर के लगातार पांच बार सांसद रहे आदित्यनाथ हिंदू युवा वाहिनी के संरक्षक और गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं। बावजूद इसके भाजपा ने उत्तर प्रदेश सरीखे महत्त्वपूर्ण प्रदेश में सत्ता की बागडोर सौंपने के लिए योगी में विश्वास दिखाया है। दूसरी तरफ चुनावी घोषणा पत्रों में भी भाजपा ने हमेशा विकास, सुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफत की बात कही। राम मंदिर निर्माण पर भी पार्टी ने बहुत कुछ नहीं कहा। जानकार यह भी कह रहे हैं कि योगी आदित्यनाथ के चाहने वालों की इच्छा रही है कि अयोध्या में राम मंदिर बने। इसके मद्देनजर योगी कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। यूपी में योगी आदित्यनाथ को स्थापित करने से जहां एक बड़ा तपका जश्न में डूबा है, वहीं कुछ राजनीति के ज्ञाता इस फैसले में मीन-मेख निकालने में जुटे हुए हैं। कहते हैं कि भाजपा अपने पुराने एजेंडे से बाहर नहीं निकल सकी है। चुनाव जीतने के बाद जब 12 मार्च को पीएम मोदी ने भाजपा मुख्यालय में ओजस्वीपूर्ण और भावुक भाषण दिया तो ऐसा लगा कि भाजपा और खुद प्रधानमंत्री मोदी अब दोबारा हिंदुत्व के एजेंडे पर नहीं लौटेंगे, सिर्फ विकास और सुशासन की राह पर चलेंगे और अपने मुख्यमंत्रियों को भी इसी मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेंगे। लेकिन पांच-छह दिनों में ही भाजपा ने यू-टर्न ले लिया।
इसे योगी आदित्यनाथ की खास लोकप्रियता ही माना जाएगा कि पूर्वांचल का अमूमन हर तपका यह महसूस कर रहा है कि यूपी के सीएम योगी नहीं, वह ‘खुद’ है। कहा जा रहा है कि ऐसी परिस्थितियों में देश के सबसे बड़े राज्य में जहां से लोकसभा के 80 सदस्य चुने जाते हैं, वहां हिंदुत्व की हवा बनाए रखना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती थी। इस काम के लिए सबसे मुफीद योगी आदित्यनाथ ही नजर आए। भाजपा और संघ को भरोसा है कि योगी के नेतृत्व में 2019 की चुनावी बैतरणी पार करने में पार्टी सफल हो जाएगी।देश के एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने एक लेख में स्पष्ट किया है कि भाजपा ने विशाल बहुमत हासिल करने के बाद भी उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बनाया है तो इससे यही जाहिर होता है कि पार्टी की राजनीति में अगर लॉग इन ‘विकास’ है तो पासवर्ड ‘हिंदुत्व’ है। इसके साथ ये भी हकीकत है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश के बीजेपी काडर में योगी आदित्यनाथ सबसे लोकप्रिय नेता हैं। बताते हैं कि उत्तर प्रदेश की आबादी में 18 से 20 फीसदी मुसलमान हैं। इतने बड़े समुदाय की न तो उपेक्षा करना आसान है और न ही उनका भरोसा जीतना। कल तक जिस तरह से योगी आदित्यनाथ मुसलमानों के खिलाफ बोलते रहे हैं, लेकिन अब वह सबका, साथ सबका विकास कर खुद के उदार होने का संकेत भी दे रहे हैं। इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रदेश तेजी विकास की रफ्तार पकड़ेगा। यदि योगी आदित्यनाथ की सियासी शैली की बात करें, तो उनकी नजर में हिंदुत्व मिशन है और राजनीति सेवा का माध्यम। वह संतों की उस परंपरा से ताल्लुक रखते हैं, जो धर्म और राजनीति को एक सिक्के के दो पहलू मानती है। बहरहाल देखना है कि योगी आदित्यनाथ यूपी के विकास की रफ्तार को किस दिशा में ले जाते हैं।
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