लड़का भाग्य, तो विधाता है कन्या

By: Mar 17th, 2017 12:02 am

( तिलक सिंह सूर्यवंशी लेखक, सिंहुता, चंबा से हैं )

लड़का भाग्य है तो लड़की विधाता और लड़का अंश है तो लड़की वंश है। जैसे गाड़ी चलाने के लिए दोनों पहियों की समान जरूरत होती है, उसी प्रकार वंश चलाने के लिए नर-नारी का होना बराबर ही जरूरी है। नारी को कानूनी संरक्षण देकर उनकी दशा सुधारने में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए…

किसी भी समाज की स्थिति का अनुभव वहां की स्त्रियों की दशा को देखकर लगाया जा सकता है। आजादी के 69 वर्षों के बाद भी नारी उत्पीड़न, उसके यौन शोषण, कन्या भ्रूण हत्याओं में बढ़ोतरी, दहेज कुप्रथा जैसे जघन्य अपराध के समाचार आए दिन समाचार-पत्रों में पढ़ने को मिलते हैं। भारत का इतिहास साक्षी है कि नारियों को हर युग में पग-पग कठिन परीक्षाओं और चुनौतियों से भरा जीवन जीना पड़ा है। महाभारत काल में द्रोपदी जैसी नारी को वस्तु समझकर दांव पर लगाया गया। सती प्रथा काल में नारी को अपने पति की मृत्यु पर साथ में जिंदा जला दिया जाता था। राजा-महाराजाओं ने नारी को अपनी दासी बनाया और उनका खूब शोषण किया। यद्यपि भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति होने का दर्जा मिला है, लेकिन आज के इस भौतिकवादी व आधुनिक परिप्रेक्ष्य में नारियों के मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न की घिनौनी हकरतों से कई प्रश्न पैदा हुए हैं। हिमाचल भी नारी के समाज के विपरीत बहने वाली इन धाराओं से अछूता नहीं रह सका है। समाज में कुछ संर्कीण विचारधारा वाले लोगों की मानसिकता में जंग लग चुका है, जो महिलाओं के साथ शर्मनाक अनहोनी घटनाओं को अंजाम देते हैं। ऐसे में लोगों को अपने मानसिक पटल पर याद रखना होगा कि विधाता ने इस सृष्टि में वंश को चलाने की कुंजी सिर्फ नारी के पास दी है, जो हमारी मां, बेटी और बहन भी हो सकती है।

आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी विचारधारा में परिवर्तन लाकर नारियों के प्रति मान-सम्मान की भावना पैदा करें। उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का बराबर हक दें। यदि महिलाएं शिक्षित होंगी, तो समाज व परिवार स्वयं शिक्षित होगा। एक लोकप्रिय कहावत इस हकीकत को बयां करती है- नारी पढ़ी तो सब घर पढ़ा, पुरुष पढ़ा तो एक, नारी शिक्षा जानिए, जन शिक्षा की टेक। अर्थात एक नारी पूरे परिवार को शिक्षित करती है। मां, पत्नी, बहु, भाभी का फर्ज अदा करती है और अपनी खुशियां त्यागकर परिवार के सभी सदस्यों के प्रति अपना दायित्वों को निभाते हुए उन्हें प्रसन्न रखने की कोशिश करती है, जिससे परिवार खुशहाल बनता है। संस्कारहीन मनुष्य सदैव राक्षस प्रवृत्ति जैसी सोच रख सकता है। परिवार में अच्छे संस्कार, देने के साथ-साथ लड़कियों को संपूर्ण शिक्षित करना आज की परम आवश्यकता है। इन्हीं गुणों से हम अपने परिवार, समाज, प्रदेश और देश के उज्ज्वल भविष्य के विकास की कामना कर सकते हैं। लड़कियों के होने का महत्त्व हम विशेष रूप से नवरात्र में पहचानते हैं। नवरात्र के अष्टमी व नवमी के दिन कंजकों अर्थात कन्याओं को लाल चुनरी, शृंगार सामग्री से अंलकृत करने के साथ चरणों को पखारने सहित कन्याओं के समक्ष शीश नवाया जाता है। ऐसे समय में कन्या चाहे किसी भी धर्म जाति से हो, उसे देवी के रूप में पूजते हैं, फिर उन्हीं कन्याओं को लोग सृष्टि में लाने की चेष्टा क्यों नहीं रखते? हमीरपुर जैसे शिक्षित जिला के लिंगानुपात में अंतर हमारे सामने है। कन्याओं की लगातार घट रही संख्या का नतीजा यह होगा कि कुंवारों की फौज के लिए रिश्ते ढूंढने मुश्किल हो जाएंगे। मां, बहू और बेटी जैसे शब्द सिमटकर रह जाएंगे।

मां के गर्भ से निकला बच्चा यदि लड़का है तो पूरे परिवार में खुशी का माहौल होता है और यदि लड़की हो तो पूरा परिवार मातम में शरीक हो जाता है। यदि लड़का भाग्य है तो लड़की विधाता और यदि लड़का अंश है तो लड़की वंश है। जिस प्रकार गाड़ी को चलाने के लिए दोनों पहियों की साथ-साथ जरूरत होती है, उसी प्रकार वंश को चलाने के लिए दोनों पहिए अर्थात नर-नारी का होना बराबर ही जरूरी है। महिलाओं के उत्थान उनके शोषणवस्था से लेकर नारी होने तक सरकार ने कई अच्छी योजनाओं बनाकर उन्हें समाज में आगे आने के लिए प्रेरित भी किया है। उन्हें कानूनी संरक्षण देकर नारियों की दशा सुधारने में प्रोत्साहित किया जा रहा है। महिलाएं न केवल राजनीति, नौकरशाही व अन्य क्षेत्रों में आगे निकल रही हैं, बल्कि अब राज्य में करीब 21 फीसदी से अधिक परिवारों का नेतृत्व भी कर रही हैं। अगर बात हम सोशल मीडिया की करें तो आज का पढ़ा-लिखा नौजवान व्हाट्सऐप व फेसबुक का गलत इस्तेमाल कर नारी जाति को मानसिक रूप से प्रताडि़त करने वाले व्यंग्य या चुटकुले फैला रहे हैं, जबकि कुछ महिलाएं भी ऐसी गतिविधियों को अंजाम देकर अपना मनोरंजन करती हैं। इन सब बातों का समाज पर क्या असर पड़ रहा है, सब अनभिज्ञ हैं। ऐसी विचारधाराओं से कम से कम समाज में पढ़े-लिखे लोगों को गुरेज करना होगा। सोशल मीडिया का ठीक प्रयोग हो। जघन्य अपराध करने वाले अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए। महिला संरक्षण कानूनों को व्यावहारिक रूप से लागू कर जनचेतना को जगाने का अभियान पूरे प्रदेश में लागू किया जाए और उनके कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए पंचायत स्तर पर कमेटियां गठित की जाएं। ऐसा तभी संभव हो सकता है, यदि सरकार व समाज के शिक्षित लोग नारियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं और उचित अनुभव लेकर नारी के भविष्य को उज्ज्वल बनाने का भरसक प्रयास करें।


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