वसंत में आहार विहार

By: Mar 11th, 2017 12:05 am

वसंत ऋतु में आयुर्वेद ने खान-पान में संयम की बात कहकर व्यक्ति एवं समाज की निरोगता का ध्यान रखा है। वसंत ऋतु दरअसल शीत और ग्रीष्म का संधिकाल होती है। संधि का समय होने से वसंत ऋतु में थोड़ा-थोड़ा असर दोनों ऋतुओं का होता है। प्रकृति ने यह व्यवस्था इसलिए की है क्योंकि प्राणीजगत शीतकाल को छोड़ने और वसंत ऋतु में कफ  की समस्या अधिक रहती है। अतः इस मौसम में जौ, चना, ज्वार, गेहूं, चावल, मूंग,  अरहर, मसूर की दाल, बैंगन, मूली, बथुआ, परवल, करेला, तोरई, अदरक, सब्जियां, केला, खीरा, संतरा, शहतूत, हींग, मेथी, जीरा, हल्दी, आंवला आदि कफ नाशक पदार्थों का सेवन करें।  इसके अलावा मूंग बनाकर खाना भी उत्तम है। नागरमोथ अथवा सोंठ डालकर उबाला हुआ पानी पीने से कफ  का नाश होता है। मन को प्रसन्न करें एवं जो हृदय के लिए हितकारी हों ऐसे आसव अरिष्ट जैसे कि मध्वारिष्ट, द्राक्षारिष्ट, गन्ने का रस, सिरका आदि पीना लाभदायक है। इस ऋतु में कड़वे नीम में नई कोंपलें फूटती हैं। नीम की 15-20 कोंपलें, 2-3 काली मिर्च के साथ चबा-चबाकर खानी चाहिए। 15-20 दिन यह प्रयोग करने से वर्ष भर चर्म रोग, रक्त विकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है एवं आरोग्यता की रक्षा होती है। इसके अलावा कड़वे नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा के रोग एवं मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है। धार्मिक ग्रंथों के वर्णनानुसार चैत्र मास के दौरान अलौने व्रत बिना नमक के व्रत करने से रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है एवं त्वचा के रोग, हृदय के रोग, उच्च रक्तचाप, हाई बीपी, गुर्दा, किडनी आदि के रोग नहीं होते। वसंत ऋतु में दही का सेवन न करें क्योंकि वसंत ऋतु में कफ का स्वाभाविक प्रकोप होता है एवं दही  कफ  को बढ़ाता है।  शीत एवं वसंत ऋतु में श्वास, जुकाम, खांसी आदि जैसे कफजन्य रोग उत्पन्न होते हैं। उन रोगों में हल्दी का प्रयोग उत्तम होता है। हल्दी शरीर की व्याधि रोधक क्षमता को बढ़ाती है, जिससे शरीर रोगों से लड़ने में सक्षम होता है। मौसम के अनुसार भोजन हमारे  शरीर और मन दोनों के लिए हितकारी होता है। मौसम के अनुसार भोजन में परिवर्तन करके आहार लेने वाले लोग सर्वथा स्वस्थ और प्रसन्नचित रहते हैं। उन्हें बीमार होने का भय नहीं रहता।


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