विष्णु पुराण

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

हे मुनिवर! सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग इन चारों युगों के एक हजार बार बीत जाने अर्थात चार हजार युगों का जितना समय होता है, उसे ब्रह्मा का एक दिन कहा जाता है।

ब्रह्माणो दिवसे ब्रह्मन्मनवस्तु चतुर्दशः।

भविति परिमाणं च तेषां कालकृतं शृणु।

सत्पर्षयः सुरा शक्रो मनुस्तत्सूनवो नृपाः।

एकाकाले हि सुज्यंते सहृियंते च पूर्ववत्।

चतुर्युगाणां संख्याया साधिक ह्येकसष्यतिः।

मन्वतर मनो काल, सुरादीनां च सतत।

दिपाञ्चाशातथान्यानि सहस्राण्यधिंकानि तु।

त्रिंशकोट्यस्तु सम्पूर्णाः संख्याताः संख्या द्विज।

सष्नषष्टिन्तस्तथान्यानि नियुतानि महामुने।

विशतिस्नु सहस्राणि कालोऽयमधिकं विना।

मन्वंतरस्य सखय यं मानुषैर्वत्सरेद्विज।

चतुर्दशगुणो ह्येष कालो ब्राह्मतहः स्मृतम्।

ब्राह्मो नैमित्तिको नाम तव्यान्ते प्रतिसञ्चरः।

तदा हि द ह्यते सर्व त्रैलोक्य भूर्भुवादिकम्।

जन प्रयान्ति तापार्ता महार्लोकनिवासिनः।

ब्रह्मा के दिन में चौदह मनु होते हैं। उनका भी काल विभाग श्रवण कर लो। सप्तर्षि, देवता, इंद्र, मुनि और उनके पुत्र समस्त राजा आदि सब प्रत्येक मन्वंतर के पृथक होते हैं, वे उसी काल में उत्पन्न होते हैं और उसी में समाप्त होते हैं। हे मुनि। इस प्रकार 285 के कुछ अधिक समय  तक एक मुनि और देवता आदि का समय होता है, इसी का मन्वंतर है। दिव्य संख्या में परिणाम से मन्वंतर का परिणाम आठ लाख दो सौ पचास वर्ष होता है। मनुष्यों की गिनती के अनुसार यह समय तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्ष होता है। वहीं ब्रह्मा का एक दिन कहा जाता है और उसके पश्चात ब्रह्मा की रात्रि (निद्रा का समय) आ जाता है और ब्रह्म प्रलय हो जाता है। उस समय भुः भुव आदि तीनों दग्ध हो जाते हैं और महलोक के निवासी ताप से व्यथित होकर जनलोक में चले जाते हैं।

एकार्णवे तु त्रैलोक्ये ब्रह्मा नारायणात्मकः।

भोगिशय्यां गतः शेते त्रैलोक्याग्राहबृहितः।

जनस्थैर्योगिर्देवश्चिन्त्वमामनोऽब्जसम्भवः।

तप्तमाणा हि तां रात्रि तदंते सुजते पुनः।

एव ब्राह्मणो वर्षमेव परमायुर्महात्मनः।।

एकमस्य व्यतीतं तु पदार्द्ध ब्रह्मणोऽनघ।

तायांतेऽभून्महाकल्पः पाद्म इत्मभिविश्र तः।

द्वितीयस्य परार्द्धस्य वर्तमानस्य वै द्विज।

वाराह इति कल्पोऽयं पृथमं परिकीर्तितः

उसके पश्चात तीनों का एक रूप हो जाता है। हे, नारायण स्वरूप ब्रह्मा तीनों को ग्रसित कर शेष शैय्या शन करने लग जाते हैं। सब जन लोग निदास योगियों द्वारा चिन्ममान ब्रह्माजी ब्रह्मादिन के बराबर वर्षों तक ही रात व्यतीत करते हैं। इसके पश्चात फिर सृष्टि होती है।  इसी दिन-रात्रि के परिमाण से पक्ष मास सृष्टि होती है। इसी दिन-रात्रि के परिमाण से पक्ष मास आदि भी गिनती से ब्रह्मा का एक वर्ष होता है। ऐसे सौ वर्षों की ब्रह्मा की परमायु होती है। हे निष्पापद्विज! इस समय तक ब्रह्मा का एक परार्द्ध व्यतीत हो चुका है उसके अंत में पद्म नाम महाकल्प पूर्ण हो चुका है। द्वितीय परार्द्ध का यह प्रथम कल्प वराह के नाम से कहा जाता है।

 


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