वैदिक संस्कृति में शिव का स्वरूप

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

स्वामी रामस्वरूप

प्रामाणिक वाल्मीकि रामायण में शिवजी महाराज का वर्णन है कि जब विश्वामित्र जी श्रीराम एवं लक्ष्मण को जंगल में राक्षसों का वध करने ले गए थे। तब उन्होंने गंगा और सरयू नदी का संगम देखा। उस संगम स्थल पर अनेक वर्षों से घोर तप में लगे हुए पवित्रात्मा ऋषियों का एक आश्रय था…

मंत्र का भाव है कि मनुष्य  सर्व मंगल प्रदान करने वाले परमेश्वर की ही उपासना करे। अतः शिव का अर्थ सबका कल्याण करने वाला परमेश्वर है। शिव के इस अनादि, अविनाशी और कभी न बदलने वाले अर्थ को विद्वानों से वेद का ज्ञान सुने बिना कोई नहीं जानता। अतः पहले दो-ढाई हजार वर्षों में मनुष्यों ने पूजा-पाठ के नए-नए मार्ग स्वयं बनाए। उसमें शिवजी महाराज जो पृथ्वी पर जन्म लेकर आए और संभवतः हिमाचल क्षेत्र में ही निवास किया, उनको भी ईश्वर का पद देकर उनकी पूजा आरंभ हो गई। परंतु वैदिक एवं यौगिक परंपरा में उनका स्थान वेदज्ञ, योगेश्वर एवं मानव कल्याण के विकास में अत्यंत श्रद्धा, प्रेम एवं आदर के साथ लिया जाता है।

प्रामाणिक वाल्मीकि रामायण में शिवजी महाराज का वर्णन है कि जब विश्वामित्रजी श्रीराम एवं लक्ष्मण को जंगल में राक्षसों का वध करने ले गए थे। तब उन्होंने गंगा और सरयू नदी का संगम देखा। उस संगम स्थल पर अनेक वर्षों से घोर तप में लगे हुए पवित्रात्मा ऋषियों का एक आश्रय था। श्रीराम एवं लक्ष्मण ने विश्वामित्रजी से पूछा, हे भगवन! यह पवित्र आश्रय किसका है? उत्तर में विश्वामित्रजी ने मुस्करा कर कहा, हे राम ! सुनो यह पुण्याश्रम शिवजी का है और आज की रात्रि हम यहीं व्यतीत करेंगे।

शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में याज्ञवल्क्य ऋषि ने ‘‘सत्यमेव देवा अनृतं मनुष्या’’ अर्थात  जो मनुष्य सत्य बोलते हैं, सत्य के आचरण रूप व्रत को करते हैं, वे देव कहलाते हैं और जो असत्य का आचरण करते हैं, वह मनुष्य कहलाते हैं। भाव यही है कि ऋषि-मुनि सदा सत्य बोलते हैं और मनुष्य झूठ बोलते हैं। अतः श्रीराम वाल्मीकि जी ने जो वर्णन शिवजी महाराज जी के विषय में कहा है, वही सत्य है।

इस प्रकार शिवजी महाराज का प्रकाश त्रेता युग में हुआ था। आदि कहते हैं, जब से यह सृष्टि की रचना हुई। अनादि कहते हैं कि इस सृष्टि से पहले भी सृष्टि अनंत बार बनी है और प्रलयावस्था को प्राप्त हुई है अर्थात ईश्वर द्वारा सृष्टि रचना, पालना एवं संहार, यह क्रम स्वाभाविक है तथा अनादि एवं अविनाशी है। इनसे पहले पृथ्वी के अनादिकाल में अर्थात सृष्टि रचना के समय में भी चार ऋषि, योगी हुए हैं जिनका वर्णन 10/ 181 / 1, 2 में भी है।

शिवजी महाराज एक योगी ,सत्य को धारण करने वाले, ब्रह्मलीन एवं मनुष्यों के लिए कल्याणकारी, पूजनीय विभूति हुए हैं,लेकिन परमेश्वर तो एक ही है जिसका वर्णन किया गया है। युजर्वेद मंत्र 32/3 में कहा ‘‘न तस्य प्रतिमा अस्ति’’ अर्थात ईश्वर की कोई मूर्ति नहीं होती, वह निराकार है। आज ऋषि-मुनियों, योगियों की भारतभूमि पर मूर्तियां बनाने का प्रचलन हो गया है।

यह अपने-अपने विचारों के अनुसार उचित कहा जा सकता है। परंतु ईश्वर की कोई मूर्ति नहीं होती। यह ईश्वर स्वयं वेदों में उपदेश दे रहा है। हम शिवजी महाराज जी के जन्मदिवस शिवरात्रि के पवित्र दिन पर उन्हें शीश नवाते हैं और श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं।


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