शाप ताप को शांत करती है मां शीतला

By: Mar 18th, 2017 12:08 am

मां शीतला संक्रामक रोगों के शमन के लिए पूजी जाती हैं। उनका पूजन ऐसे समय होता है, जब संक्रामक रोगों को फैलने की संभावना अधिक होती है। इसी तरह नीम के वृक्ष में उनका वास माना जाता है। हम सभी जानते हैं कि संक्रामक रोगों में नीम का वृक्ष कितना उपयोगी होता है…

शाप ताप को शांत करती है मां शीतलामां शीतला विविध रोगों से उपजे ताप का शमन करने वाली देवी हैं। यह जीवन और समाज में स्वच्छता के महत्त्व को प्रतिष्ठित करने वाली देवी हैं। अष्टमी तिथि को इनके पूजन की परंपरा रही हैं। वैसे कहीं-कहीं पर माघ शुक्ल पक्ष की षष्ठी को और कहीं पर वैशाख कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भी इनका पूजन किया जाता है, लेकिन पूजन की सर्वाधिक मान्य तिथि चैत्र के कृष्ण पक्ष की सप्तमी या अष्टमी ही है।  शीतला माता हर तरह के तापों का नाश करती हैं और अपने भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं।  वैसे तो शीतला पूजन भिन्न-भिन्न जगहों पर अलग-अलग तिथियों पर किया जाता है, किंतु विशेष कर चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को शीतला सप्तमी-अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को ‘बसोरा’ (बसौड़ा) भी कहते हैं। ‘बसोरा’ का अर्थ है- ‘बासी भोजन’। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख देते हैं, फिर दूसरे दिन प्रातःकाल महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन करने के बाद घर के सब व्यक्ति बासी भोजन को खाते हैं। जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो, उसे यह व्रत नहीं करना चाहिए। हिंदू व्रतों में केवल ‘शीतलाष्टमी’ का व्रत ही ऐसा है, जिसमें बासी भोजन किया जाता है। इसका विस्तृत उल्लेख पुराणों में मिलता है। शीतला माता का मंदिर वट वृक्ष के समीप ही होता है। शीतला माता के पूजन के बाद वट का पूजन भी किया जाता है। प्राचीन मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उस परिवार को शीतला देवी धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं।

कथाः एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो मां को गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन प्रसाद स्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोप दृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। केवल एक बुढि़या का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढि़या से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढि़या ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया, जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया। बुढि़या की बात सुनकर गांव वालों ने मां से क्षमा मांगी और ‘रंग पंचमी’ के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।

सनातन परंपरा के अनुसार महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए रंग पंचमी से अष्टमी तक मां शीतला को बसौड़ा बनाकर पूजती हैं। बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलवा, रबड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात्रि में बनाकर रख लिए जाते हैं। तत्पश्चात सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं। पूजा करने के बाद घर की महिलाओं ने बसौड़ा का प्रसाद अपने परिवारों में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इस व्रत में मिठाई, पूआ, पूरी, दाल-भात आदि एक दिन पहले से ही बनाए जाते हैं अर्थात व्रत के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता। व्रती रसोईघर की दीवार पर 5 अंगुली घी में डुबोकर छापा लगाता है। इस पर रोली, चावल, आदि चढ़ाकर मां के गीत गाए जाते हैं। इस दिन शीतला स्रोत तथा शीतला माता की कथा भी सुननी चाहिए। रात्रि में दीपक जलाकर एक थाली में भात, रोटी, दही, चीनी, जल, रोली, चावल, मूंग, हल्दी, मोठ, बाजरा आदि डालकर मंदिर में चढ़ाना चाहिए। इसके साथ ही चौराहे पर जल चढ़ाकर पूजा करते हैं। इसके बाद मोठ, बाजरा का बयाना निकाल कर उस पर रुपया रखकर अपनी सास के चरण स्पर्श कर उन्हें देना चाहिए। उसके पश्चात किसी वृद्धा को भोजन कराकर दक्षिणा देनी चाहिए। शीतला अष्टमी स्वयं में स्वास्थ्य और स्वच्छता के कई संदेश समेटे हुए है। मां शीतला के  हाथों में झाड़ू का होना और नीम को उनका निवास स्थान मानना, यह बतलाता है कि जीवन में स्वच्छता का कितना महत्त्व है और संक्रामक रोगों में क्या उपयोगिता है?

शीतला माता की आरती

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,

आदि ज्योति महारानी, सब फल की दाता।। जय।।

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता।

ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता।। जय।।

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।

वेद पुराण बरणत, पार नहीं पाता।। जय।।

इंद्र मृदंग बजावत, चंद्र वीणा हाथा।

सूरज ताल बजाते, नारद मुनि गाता ।। जय।।

घंटा शंख शहनाई, बाजै मन भाता।

करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता।। जय।।

ब्रह्म रूप वरदानी, तुही तीन काल ज्ञाता।

भक्तन को सुख देनौ, मातु पिता भ्राता ।। जय।।

जो भी ध्यान लगावैं,प्रेम भक्ति लाता।

सकल मनोरथ पावे,भवनिधि तर जाता।। जय।।

रोगन से जो पीडि़त, कोई शरण तेरी आता।

कोढ़ी पावे निर्मल काया,अंध नेत्र पाता ।। जय।।

बांझ पुत्र को पावे, दारिद कट जाता।

ताको भजै जो नाहीं, सिर धुनि पछिताता।। जय।।

शीतल करती जननी, तुही है जग त्राता।

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता ।। जय।।

दास विचित्र कर, जोड़े सुन मेरी माता।

भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता।। जय।।

शीतला माता मंत्र

वंदेहं शीतलां देवी रासभस्थां दिगम्बराम्।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालङ्कृतमस्तकाम।।

(दिगंबरा, गर्दभ वाहन पर विराजित, सूप, झाड़ू और नीम के पत्तों से सजी-संवरी और हाथों में जल कलश धारण करने वाली माता को प्रणाम है।)


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