श्री विश्वकर्मा पुराण

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

उसने शंकर जी के पेट में अपना सिर मारा, इस अचानक हुए हमले से शंकरजी के हाथ से त्रिशूल गिर गया। यह देखकर अंधक ने भी अपने हाथ में लिए खड़ग को जमीन पर फेंक दिया। इसके बाद ये दोनों योद्धा द्वंद्व युद्ध करने लगे…

शंकर जी बोले हे पापी अपनी जीभ को काबू में रख चाहे जैसी बोलने वाली ये तेरी जीभ पलभर में मुंह से बाहर निकल जाएगी। मेरा गुस्सा काबू में से बाहर हो, उससे पहले ही जो तुझे जीने की इच्छा हो, तो मेरे सामने से दूर हो जा। नहीं तो तू फिर अपने परिवार के दर्शन भी न करने पाएगा। जो अपने स्वजनों के साथ नहीं रह सका ऐसा जाति भ्रष्ट तू मेरे सामने न टिक सकेगा। शंकर जी के ऐसे मार्मिक वचन सुनकर अंधक बोला, अरे पतिव्रता ऐसी जगतजननी पार्वती को घर में टपटपाती छोड़ कर एक पागल की तरह भीलनी के पीछे भटकने वाले, तेरे जैसे व्यभिचारी को भी ये स्वजन परिजन की व्याख्या कब आई। बोलने में तो तू बड़ा शूर है, ये तो हमने जाना परंतु अब लड़ने की इच्छा हो, तो वो भी बता दें नहीं तो घर जाकर चूड़ी पहन ले। तेरे इस लवारपन से कुछ भी बिगड़ने का नहीं, शूर वीरता बोलने से नहीं कुछ कर दिखाने से होगी। अधंक जैसे ही अति मार्मिक बचन बोला कि शिवजी का क्रोध एकाएक भड़क उठा और अंधक को मारने के लिए दौड़े। अंधक मदमस्त हाथी के समान शंकर जी को मारने के लिए दौड़ा। उसने शंकरजी के पेट में अपना सिर मारा, इस अचानक हुए हमले से शंकर के हाथ से त्रिशूल गिर गया। यह देखकर अंधक ने भी अपने हाथ में लिए खड़ग को जमीन पर फेंक दिया। इसके बाद ये दोनों योद्धा द्वंद्व युद्ध करने लगे। उन दोनों के बीच बहुत लंबे समय तक युद्ध चला। सभी दैत्य तथा देवता विचार करते थे कि इस युद्ध का अंत कब आएगा। इतने में एक कौतुक खड़ा हुआ, बहुत समय से लड़ते शिव और अंधक पसीने से तर-ब-तर हो गए। उनके शरीर से पसीना टपक कर जमीन के ऊपर गिर रहा था। उन दोनों के पसीने की एक बूंद से एक पुरुष उत्पन्न हुआ और देखते-देखते वह बढ़कर एक पहाड़ के समान बन गया। उसको देख कर सभी देव- दानव आश्चर्य में डूब गए। शिव तथा अंधक भी इस तरह अपने बीच में उत्पन्न हुए इस पुरुष को देखकर विचार में पड़ गए। दोनों जने कुछ विचार करें, उससे पहले ही वह पुरुष उन दोनों को मारने को तैयार हुआ। उसी समय आकाश मार्ग से हंस के ऊपर विराजमान प्रभु विश्वकर्मा वहां पधारे, सबने मिलकर विश्वकर्मा को प्रणाम किया। इसके बाद विश्वकर्मा प्रभु ने सबके आश्चर्य को दूर करने के लिए कहा, देवताओं! तथा दानवो, शिव तथा अंधक इन दोनों के पसीने से उत्पन्न हुआ यह पुरुष वास्तुदेव के नाम से प्रसिद्ध होगा। मैं आज उसको अपने पुत्र की भांति स्थापन करता हूं। पृथ्वी स्वर्ग तथा पाताल में कोई भी नए आवास की, तीर्थ की, देवालय की, जलाशय की, रचना होगी, तब  सबसे पहले यह पूजा जाएगा।


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