संन्यासी को सिंहासन

By: Mar 20th, 2017 12:05 am

आश्चर्य है कि भाजपा को योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनना पड़ा! योगी लगातार पांचवीं बार लोकसभा सांसद हैं, बेहद लोकप्रिय चेहरा हैं, पूर्वांचल की राजनीति के सूत्रधार हैं, चुनाव में भाजपा के स्टार प्रचारक भी रहे हैं, घोर और कट्टरपंथी हिंदूवादी हैं और सबसे बढ़कर उत्तर प्रदेश का मौजूदा जनादेश योगी का मोहताज भी नहीं है। फिर योगी को उत्तर प्रदेश का ‘राजयोगी’ बनाने की क्या मजबूरी थी? योगी लव जेहाद, घर-वापसी, एक हिंदू लड़की के बदले 100 मुस्लिम लड़कियों का धर्मांतरण सरीखे अभियानों के संस्थापक सूत्रधार रहे हैं। निश्चित तौर पर वह सांप्रदायिक सोच के अभियान थे। तो क्या उत्तर प्रदेश में अब हिंदू-मुसलमान के नाम पर गहरा विभाजन सामने आएगा? क्या उत्तर प्रदेश का जनादेश सांप्रदायिक धु्रवीकरण की ही देन है? क्या भाजपा का संदेश है कि वह ‘हिंदू पद पादशाही’ के सिद्धांत को ही बढ़ावा देगी? गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में आधे से ज्यादा जनपद सांप्रदायिक तौर पर घोर संवेदनशील माने जाते रहे हैं। योगी कैराना को ‘कश्मीर’ के तौर पर आंकते हैं। आजमगढ़ की ‘आतंक फैक्टरी’ भी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा है। योगी भगवान राम के बिना राष्ट्र को अधूरा मानते हैं। उनके उद्देश्यों में राम का भव्य मंदिर निर्माण भी शामिल है। क्या भाजपा और संघ का मानना है कि उत्तर प्रदेश में जातिवाद को तोड़ने के मद्देनजर हिंदुत्व का एजेंडा आगे बढ़ाना जरूरी है? दरअसल इन तमाम सवालों के जवाब तो वक्त देगा, लेकिन एक कट्टरवादी शख्स उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने योग्य था? हालांकि भाजपा में अभी तक योगी आदित्यनाथ को इसीलिए हाशिए पर रखा जाता रहा था, क्योंकि वह कट्टर हिंदूवादी हैं। यहां तक कि संघ और भाजपा में ब्राह्मणों का एक तबका ऐसा है, जो योगी के सख्त और सांप्रदायिक रवैए को नापसंद करता रहा है। उत्तर प्रदेश ने प्रधानमंत्री मोदी के विकासवाद को जनादेश दिया है। प्रधानमंत्री से ही उम्मीदें और अपेक्षाएं हैं। हालांकि विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद योगी ने भी विकास के जरिए सुशासन की स्थापना की बात कही है। फिलहाल उन्होंने प्रधानमंत्री वाला नारा ही दोहराया है-सबका साथ, सबका विकास। वोट देने वालों में मुसलमान, ओबीसी, दलित आदि विभिन्न समुदाय भी हैं। भाजपा को वोट देने वाले सभी ‘योगीवादी’ नहीं रहे हैं। तो क्या मुख्यमंत्री संन्यासी अपनी शख्सियत और सोच को बदलेगा? बेशक उत्तर प्रदेश के चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी के बाद योगी की ही मांग थी। उन्होंने पूर्वांचल से लेकर गाजियाबाद तक चुनाव प्रचार किया। भाजपा ने दो सर्वे कराए थे, जिनमें योगी को मुख्यमंत्री के तौर पर ‘सर्वप्रथम’ पाया गया, लेकिन अब भी योगी के समर्थक नारे लगा रहे हैं-जो भी मुसलमान वंदेमातरम्, भारत माता की जय बोलेंगे, योगी उनके प्रति उदार रहेंगे। यह कैसी शर्त है? क्या कोई मुख्यमंत्री इन शर्तों के आधार पर शासन चला सकता है? योगी पूर्वांचल से आते हैं। वहां विधानसभा की 175 में से 154 सीटें भाजपा ने जीती हैं। 34 में से 33 लोकसभा सीटों पर भी कब्जा है। पूर्वांचल में करीब 42 फीसदी ओबीसी हैं। इनमें करीब 32 फीसदी गैर यादव ओबीसी हैं। इसी के दम पर भाजपा ने इस बार सपा को पटखनी दी है। भाजपा का आकलन है कि योगी को मुख्यमंत्री बनाने से गैर यादव और सवर्ण दोनों ही पास-पास आएंगे। नतीजतन भाजपा को चुनावी लाभ होगा। इन्हीं तथ्यों के आधार पर भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव का गणित तय करना चाहती होगी। योगी के आने से ध्रुवीकरण भी तेज होगा, लेकिन भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में करीब 20 फीसदी आबादी मुसलमानों की भी है। 2019 के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने गरीब, दलित, ओबीसी का समीकरण तय किया है। यदि मुख्यमंत्री योगी ने अपनी सांप्रदायिक छवि और सोच नहीं बदली, तो यह तमाम पैंतरे नाकाम भी हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश की जनता का मानस 2019 तक बदल भी सकता है। बहरहाल भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उत्तर प्रदेश में यह रणनीति खेलना चाहते थे। उसमें उन्हें संघ की स्वीकृति भी मिली, लिहाजा अब योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उनके साथ दो उप मुख्यमंत्री भी बनाए गए हैं-केशवप्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा। जातीय समीकरण साफ हैं। अब भाजपा ने यह प्रयोग किया है, तो हमारी भी शुभकामनाएं…। लेकिन हम योगी को एक सार्थक मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं। मुख्यमंत्री योगी और उप मुख्यमंत्री केशवप्रसाद मौर्य के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले भी अदालतों में विचाराधीन हैं। योगी पर हत्या करने की कोशिश का भी गंभीर आरोप है। यदि सत्ता के दौरान कुछ अनहोनी हो गई, तो भाजपा का पूरा गणित बिगड़ सकता है। बहरहाल हम एक जनवादी, लोकप्रिय सरकार की उम्मीद कर रहे हैं।


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