सुखी रहने का सफल मंत्र

By: Mar 18th, 2017 12:05 am

ओशो

दुख पर ध्यान दोगे तो हमेशा दुखी रहोगे, सुख पर ध्यान देना शुरू करो। दरअसल, तुम जिस पर ध्यान देते हो वह चीज सक्रिय हो जाती है। ध्यान सबसे बड़ी कुंजी है। दुख को त्यागो। लगता है कि तुम दुख में मजा लेने वाले हो, तुम्हें कष्ट से प्रेम है। दुख से लगाव होना एक रोग है, यह विकृत प्रवृत्ति है, यह विक्षिप्तता है। यह प्राकृतिक नहीं है, यह बदसूरत है। पर मुश्किल यह है कि सिखाया यही गया है। एक बात याद रखो कि मानवता पर रोग हावी रहा है, निरोग्य नहीं और इसका भी एक कारण है। असल में स्वस्थ व्यक्ति जिंदगी का मजा लेने में इतना व्यस्त रहता है कि वह दूसरों पर हावी होने की फिक्र ही नहीं करता। अस्वस्थ व्यक्ति मजा ले ही नहीं सकता इसलिए वह अपनी सारी ऊर्जा वर्चस्व कायम करने में लगा देता है। जो गीत गा सकता है, जो नाच सकता है, वह नाचेगा और गाएगा, वह सितारों भरे आसमान के नीचे उत्सव मनाएगा, लेकिन जो नाच नहीं सकता, जो विकलांग है, जिसे लकवा मार गया है, वह कोने में पड़ा रहेगा और योजनाएं बनाएगा कि दूसरों पर कैसे हावी हुआ जाए। वह कुटिल बन जाएगा। जो रचनाशील है, वह रचेगा। जो नहीं रच सकता, वह नष्ट करेगा क्योंकि उसे भी तो दुनिया को दिखाना है कि वह भी है। जरा इसके पीछे का कारण देखो। अगर वह खुद जिंदगी का मजा नहीं ले सकता तो वह कम से कम तुम्हारे मजे में जहर तो घोल ही सकता है। जब तुम प्रेम करते हो तो नफरत भी कर सकते हो। जो व्यक्ति नपुंसक है और प्रेम नहीं कर सकता, वह हमेशा नकारात्मक पर ही जोर देगा। वह हमेशा नकारात्मक को ही बढ़ा-चढ़ाकर पेश करेगा। वह हमेशा तुमसे कहेगा, अगर तुम प्रेम में पड़े तो दुख उठाओगे। तुम जाल में फंस जाओगे, तुम्हें तकलीफें भोगनी होंगी और स्वाभाविक रूप से जब भी घृणा के क्षण आएंगे और तुम दुख का सामना करोगे तो तुम्हें वह व्यक्ति याद आएगा कि वह सही कहता था। जब तुम प्रेम में होते हो और खुश होते हो तो भूल जाते हो, लेकिन जब संघर्ष, नफरत और गुस्सा होता है तो तुम उसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने लगते हो। ऊपर से वे नैतिकतावादी, वे पुरोहित, वे राजनेता मिलकर चिल्लाते हैं एक स्वर से कि देखो, हमने तुमसे पहले ही कहा था और तुमने हमारी नहीं सुनी। प्रेम को त्यागो, प्रेम दुख बनाता है। इन बातों को अगर बार-बार दोहराया जाता रहता है तो उनका असर होने लगता है। लोग उनके सम्मोहन में फंस जाते हैं। तुम कहते हो कि तुम उपवास करते रहे हो, तुमने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया है। उपवास का भला बुद्धत्व से क्या ताल्लुक हो सकता है। ब्रह्मचर्य का बुद्धत्व से कोई संबंध नहीं हो सकता। बेतुकी बात है। जो भी तुम करते हो जैसे कि तुम कहते हो कि मैं बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए रात-रात भर जागता रहता हूं। दिन में बुद्धत्व प्राप्त करने की कोशिश क्यों नहीं करते। रात भर जागने की क्या जरूरत है। ये कुदरत के विरोध में तुम क्यों खड़े हुए हो। बुद्धत्व प्रकृति के खिलाफ  नहीं होता।


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