सतलुज पर है एशिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना
सतलुज पर एशिया की सबसे बड़ी नाथपा-झाकड़ी विद्युत परियोजना का बांध बन जाने के कारण 29 सितंबर, 2009 के बाद यहां से आगे झाकड़ी, जो शिमला जिला की रामपुर तहसील में पड़ता है, तक 27 किलोमीटर सतलुज को अपना रास्ता छोड़कर सुरंग के रास्ते जाना पड़ता है…
हिमाचल की नदियां
सतलुज नदी – वंगर में अब पहले की तरह पानी नहीं रहा है, क्योंकि इसके अधिकांश पानी को संजय विद्युत परियोजना के लिए सुरंग के रास्ते वांगतु पुल से अढ़ाई किलोमीटर आगे सतलुज में गिराया गया है। वांगतु तक सतलुज को बरसात के मौसम में भी सूखे में ही आना पड़ता है। क्योंकि किन्नौर का यहां तक का क्षेत्र रेन जोन से बाहर का क्षेत्र है, इसलिए इस क्षेत्र में वर्षा ऋतु में भी वर्षा नहीं होती है, यदि होती भी है तो बहुत कम। वांगतु पुल के बाद सतलुज के दाएं तट पर निचार के ‘छोत कण्ढे से आने वाली’ ‘छोत खड्ड’ इसमें मिलती है। इस खड्ड से ही निचार की सीमा शुरू होती है। ‘नद्पा’ गांव के नीचे सतलुज के दाएं तट पर नद्पा-बोक-लीच नाम से ख्यात गर्म पानी का चश्मा इसमें मिलता है। इस चश्मे को नद्पा के ग्राम्य नागदेव के छोटे नाग देव भाई का निवास मानते हैं। इसके अतिरिक्त रारङ के नीचे स्थित ठोपोन, करछम, टापरी व इससे पहले सुलडिङ में भी गर्म पानी के चश्मे हैं। ठोपोन स्थित गर्म चश्मे को नक्षत्र विशेष में कई प्रकार की व्याधियों की औषधि माना जाता है। नद्पा के पास सतलुज पर एशिया की सबसे बड़ी नाथपा-झाकड़ी विद्युत परियोजना का बांध बन जाने के कारण 29 सितंबर, 2009 के बाद यहां से आगे झाकड़ी, जो शिमला जिला की रामपुर तहसील में पड़ता है, तक 27 किलोमीटर सतलुज को अपना रास्ता छोड़कर सुरंग के रास्ते जाना पड़ता है। इस बांध स्थल के बाद सतलुज के दोनों तटों पर पहले सतलुज में मिलने वाली खड्ड ही अब सतलुज के रास्ते झाखड़ी पहुंचकर सतलुज से मिलती है। किन्नौर की अंतिम सीमा चौरा तक सतलुज में दाएं तट पर ‘सोलरिङ शोरङ्’ तथा ‘रूपी खड्ड’ और बाएं तट पर सोलङड् छेनड़े तथा ‘कनडु खड्डें’ मिलती हैं। सतलुज किन्नौर की अंतिम सीमा चौरा से समुद्र तल से 1250 किलोमीटर की ऊंचाई पर से किन्नौर से बाहर शिमला की रामपुर तहसील के क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है। चौरा से नीचे का क्षेत्र किन्नौर वालों के लिए ‘कोचा’ मुल्क है। शिमला की अनेक पर्वत शृंखलाओं को पार करती हुई यह तत्तापानी नामक स्थान पर पहुंचती है, परंतु इससे पूर्व और इसके आसपास स्थानीय अनेक छोटी नदियां तथा नाले इसमें मिलते हैं। ‘चिखुर’ और ‘ठियोग’ नाले शिमला के साथ बहती हुई ‘नोटी खड्ड’ में मिलते हैं। यह नोटी खड्ड और कोटी खड्ड अंत में सतलुज में विलीन हो जाती हैं। आगे ‘दाड़गी खड्ड’ भी इसी में मिलती है।
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