असतो मा सद्गमय यह सिर्फ मंत्र ही नहीं जीने का तरीका भी है

By: Apr 15th, 2017 12:10 am

शांतिपूर्वक बैठने के लिए सीख की जरूरत है। एक गधा हो या गाय, जब उसका पेट भर जाता है तो वे भी शांतिपूर्वक बैठ जाते हैं, लेकिन इनसान शांतिपूर्वक भी  नहीं बैठ पा रहा। लोग अपने लिए बेइंतहा दुख जुटा लेते हैं, वह भी बिना किसी बाहरी मदद के। अगर उनकी अनचाही चीजें घटित हों तो उन्हें दुख होता है। अगर लोगों के साथ मनचाही चीजें घटित न हों तो उन्हें और ज्यादा दुख होता है…

असतो मा सद्गमय यह सिर्फ मंत्र ही नहीं जीने का तरीका भी हैअसतो मा सद्गमय यह सिर्फ मंत्र ही नहीं जीने का तरीका भी हैआमतौर पर मेरा जोर इस बात पर रहता है कि ईशा में जब भी कोई बैठक या मीटिंग हो, लोग उसमें  ‘असतो मा सद्गमय’ का जाप करें। इस जाप का मकसद किसी संस्कृति को स्थापित करना नहीं है। ‘असतो मा सद्गमय’ एक आह्वान है जो याद दिलाता है कि आप जो कर रहे हैं, वह काम हरेक के कल्याण के लिए है या नहीं। यह हर उस चीज पर लागू होता है, जो हम रच रहे हैं, फिर चाहे वह हमारे भीतर पैदा होने वाले विचार हों या फिर बाहरी तौर पर पैसा कमाने के लिए किए गए काम हों, जैसे बिजनेस, नौकरी आदि। या फिर बड़े पैमाने की बात करें तो राजनीति, अर्थव्यव्स्था या युद्ध जैसी चीजें हों।  हालात चाहे जो भी हों, लेकिन सभी में यह बुनियादी सवाल आता है कि हम जो भी कर रहे हैं, वह हरेक के कल्याण के लिए काम कर रहा है या नहीं। या फिर कम से कम यह बड़ी आबादी के लिए काम कर रहा है या नहीं। अगर आप चाहते हैं कुछ इस तरह से चीजें की जाएं, जो कारगर हों, तो आपको अपनी भीतरी प्रकृति और अपने आसपास की दुनिया से जुड़े जीवन के उस पहलू से जुड़े सत्य को खोजना होगा।

शरीर और मन पर ध्यान न देने से दुखी होना तय है

योग का मतलब ही एक ऐसे जीवन की ओर आगे बढ़ना है, जहां हर चीज बेहतर तरीके से काम करती है। आपका शरीर, आपका मन, आपकी ऊर्जा, आपकी भावनाएं यहां तक कि आपके आसपास की स्थितियां भी। अगर आप सिलसिलेवार इस बात पर गौर करें कि कैसे शरीर काम करता है, फिर देखें कि वो क्या चीज है जो आपके मन को ठीक रखती है, क्या चीज आपकी भावनाओं को खुशहाल बनाती है, क्या आपकी ऊर्जाओं को बेहतर काम करने देती है। फिर यह पता करना मुश्किल नहीं होगा कि कौन सी चीज दुनिया को बेहतर बनाती है, लेकिन फिलहाल हमने ऐसी सामाजिक स्थिति बना रखी है, जहां आपको इस बात की परवाह नहीं है कि आपका शरीर और मन कैसे काम करता है। आप बस इतना चाहते हैं कि आपका बैंक अकाउंट ठीक से काम करे। ऐसे में आपका पीडि़त होना तय है। अगर आप अपने पांवों को मजबूत बनाए बिना चलेंगे तो जाहिर सी बात है कि आपके चेहरे धूल में सन रहे होंगे। सबसे पहले अपनी प्राथमिकताओं को तय करना सबसे जरूरी है।

जीवन जीने का तरीका

मेरी दिलचस्पी हर उस चीज में है, जो काम करे। आमतौर पर मशीनें काम करती हैं। इसीलिए कभी-कभी मैं कार के विज्ञापनों को पढ़ता हूं , लेकिन आमतौर पर मैं देखता हूं कि उनमें ज्यादातर एक्स्ट्रा चीजों का ही जिक्र रहता है। मसलन स्टीरियो, कार के खास तरह के पेंट या उसकी सीटों पर लगने वाले कवर आदि का। इसमें कार के इंजन, ट्रांसमिशन या ड्राइविंग डायनेमिक्स के बारे में कोई जिक्र नहीं होता। ये विज्ञापन लोगों के जीवन जीने के तरीके की ओर इशारा करते हैं। उन लोगों की दिलचस्पी बाहरी दिखावे और गजेट्स में होती है। चूंकि लोग इन दिनों सुरक्षा को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित होने लगे हैं, इसलिए इसमें दिए जाने वाले एयरबैग का भी जिक्र होता है। इसमें कार के इंजन, ट्रांसमिशन या ड्राइविंग डायनेमिक्स के बारे में कोई जिक्र नहीं होता। ये विज्ञापन लोगों के जीवन जीने के तरीके की ओर इशारा करते हैं। उन लोगों की दिलचस्पी बाहरी दिखावे और गजेट्स में होती है। लोगों के पास जीवन बीमा है, लेकिन उनके पास जीवन नहीं है। वे अपने दुखों को स्थायी बना रहे हैं। आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब अपनी प्राथमिकताओं को तय कर खुद से जुड़ी हर चीज को इस तरह अलाइन करना या सीध में लाना है कि हर चीज अच्छी तरह से काम करे। अगर आप अपनी प्राथमिकताओं को सही तरह से तय नहीं करेंगे, तो आप यह भी नहीं जान पाएंगे कि शांतिपूर्वक कैसे बैठा जाए। आज लगभग 90 फीसदी जनता को शांतिपूर्वक बैठने के लिए सीख की जरूरत है। एक गधा हो या गाय, जब उसका पेट भर जाता है तो वे भी शांतिपूर्वक बैठ जाते हैं, लेकिन इनसान शांतिपूर्वक भी नहीं बैठ पा रहा। लोग अपने लिए बेइंतहा दुख जुटा लेते हैं, वह भी बिना किसी बाहरी मदद के। अगर उनकी अनचाही चीजें घटित हों तो उन्हें दुख होता है। अगर लोगों के साथ मनचाही चीजें घटित न हों तो उन्हें और ज्यादा दुख होता है। आध्यात्मिक प्रक्रिया मतलब कहीं जाने या पहुंचने से नहीं है, इसका मतलब सारी चीजों को सही तरीके से देखने से है।

जड़ों को मजबूत करना होगा

अगर आप एक पेड़ उगाना चाहते हैं तो आप सहज रूप से दिखने वाले उसके हिस्सों , पत्तियों व शाखाओं या तने को पोषित करेंगे या आप दिखाई न देने वाले उसके हिस्से जड़ को पोषित करेंगे। अगर आप वो करेंगे, जो सृष्टि के बुनियादी नियमों से अलाइंड नहीं है या मेल नहीं खाता तो यह काम नहीं करेगा। यह जड़ों की ही ताकत है,जो फलों को पैदा करती है। आज से लगभग चालीस साल पहले की बात है, तब मेरे पास मैसूर में एक फारम हाउस था। एक दिन मेरे पास एक आदमी आया, जिसने मुझे एक ऐसी चीज बेचने की कोशिश की, जिसके बारे में उसका दावा था कि वह एक चमत्कारी घोल था। मेरे बगीचे में बहुत सारे आम के पेड़ थे और उसका दावा था कि अगर मैं वह घोल उन फलों पर छिड़क दूं तो फल बहुत बड़े हो जाएंगे। हालांकि तब मुझे आत्मज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई थी, लेकिन तब भी मुझमें पर्याप्त समझ थी। उनका नारा था ‘जड़ को नहीं’ फल को सींचो। वह विचार इतना हास्यास्पद था कि मजाक के तौर पर चल निकला। एक बार उनको जब इस बात का एहसास हो गया तो, उन्होंने वह प्रोजेक्ट ही छोड़ दिया। हालांकि सच्चाई इसके बिलकुल उल्टी है। अगर आप जड़ को सींचते हैं तो आपको फल की चिंता करने की जरूरत नहीं है। यह अपने आप आएगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App