ऋषि दुर्वासा और कल्पवृक्ष की कथा

By: Apr 8th, 2017 12:05 am

यह पत्र देवताओं को सुनाकर इंद्रदेव तत्क्षण उठ पड़े और कल्पवृक्ष तथा पारिजात को साथ ले देवताओं सहित विमान में बैठकर अयोध्या में आ पहुंचे। लक्ष्मण जी ने इंद्र का स्वागत किया। इंद्र ने राम के पास पहुंच पारिजात और कल्पवृक्ष को राम को अर्पण किया। इतने ही में सरयू तट से दुर्वासा ने अपने एक शिष्य को राम के पास भेजा कि तुम जाकर देखो कि राम इस समय क्या कर रहे हैं? मैंने जो आज्ञा दी है उसके अनुसार कुछ अन्न अब तक बना है कि नहीं? अब तक वैसे ही चिंतामग्न हैं या कुछ कर रहे हैं। यदि मेरी आज्ञानुसार पकवान प्रस्तुत कर रहे हैं, तो अब तक कितनी सामग्री तैयार हुई है। यह सब तुम चुपके से देखकर मेरे पास आओ। तब जो आज्ञा, ऐसा कहकर वह शिष्य राम के भवन में आया। देखा तो कल्पवृक्ष और पारिजात से युक्त देवताओं की मंडली में राम विराजमान हैं । यह देखकर उस शिष्य ने शीघ्र ही दुर्वासा के पास जाकर वह समाचार कह सुनाया। शिष्य की यह बात सुनकर दुर्वासा को आश्चर्य हुआ। स्नान कर शिष्यों को साथ ले दुर्वासा ऋषि रामचंद्र जी के सुंदर भवन में आ पहुंचे। दुर्वासा जी को आया देख देवताओं सहित राम ने उठकर उन्हें तथा उनके सब शिष्यों को बड़े आदर के साथ प्रणाम किया और उत्तम आसन पर बिठाकर सीता तथा लक्ष्मण आदि के साथ उनकी पूजा की, फिर जिन पुष्पों को मनुष्यों ने अब तक नहीं देखा था, शिव पूजन के हेतु पारिजात के उन पुष्पों को राम ने दुर्वासा के समक्ष प्रस्तुत किया। उन पुष्पों को देख मुनि दुर्वासा ने एक बार तो आश्चर्य किया किंतु मौन भाव से उन्हें ग्रहण कर शिव जी तथा अन्य देवताओं की उन पुष्पों से पूजा की। फिर उसी क्षण श्री रामचंद्र जी ने लक्ष्मण तथा सीता आदि को सब भोजन परोसने की आज्ञा दी। तब दिव्य अलंकारों से विभूषित सीता ने कल्पवृक्ष और पारिजात की पूजा कर अनेक पात्रों को लाकर उनके नीचे रख दिया और वह प्रार्थना करती हुई इस प्रकार बोली कि हे क्षीरसागर से उत्पन्न होने तथा देवताओं के मनोरथों को पूर्ण करने वाले कल्पवृक्ष !  आज शिष्यों सहित हमारे यहां आए हुए दुर्वासा को तुम संतुष्ट कर दो। तब सीता के इस प्रकार कहते ही कल्पवृक्ष ने पलमात्र में वहां रखे हुए करोड़ों पात्रों को अनेक प्रकार की खाद्य सामग्रियों से पूर्ण कर दिया । फिर तो उन सब अन्नों को उर्मिला सहित सीता ने सुवर्ण के पात्रों में रख कर दुर्वासा के समक्ष परोस दिया। फिर तो रामचंद्र से निवेदित दुर्वासा ने अपने शिष्यों के साथ बड़े प्रेम से वह सब भोजन किया। फिर हाथ मुंह धो ताम्बूल तथा दक्षिणा ली। वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिंदू मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है।  इसके अलावा कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिजात के वृक्ष को ही कल्पवृक्ष कहा जाता है।

 


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