कसौली क्रांति के शहीदों को नमन

By: Apr 21st, 2017 12:08 am

newsकसौली —  देश के इतिहास के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की याद में गुरुवार को कसौली में श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया, जिसमें सरगम कला मंच नौणी के कलाकारों ने प्रसिद्ध लोकगायक जिया लाल ठाकुर की अगवाई में कसौली से शुरू की गई क्रांति के सेनानियों को गीत संगीत के माध्यम से श्रद्धांजलि दी। कला मंच के कलाकारों ने देशभक्ति के गीत गाकर उपस्थित लोगों को देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत कर दिया। साथ ही कला मंच के मुखिया जिया लाल ठाकुर ने लोगों से ऐसे कार्यक्रमों के जरिए शहीदों को याद करते रहने की अपील की। इस अवसर पर प्रदेश के जाने-माने शिक्षाविद व शोधकर्ता ओपी शर्मा ने बतौर विशेष अथिति शिरकत करते हुए अपने विचार रखे। उन्होंने 1857 की कसौली में हुई क्रांति के बारे में विस्तार से बताया व सभी से अपील की कि हम लोग अपने इतिहास को न भूलें कि किस तरह से स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद करवाने के लिए प्रयत्न किए व अपनी जान पर खेलकर देश को आजाद करवाया। इस अवसर पर कसौली थाना प्रभारी कल्याण सिंह ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की व प्रथम क्रांति के शहीदों को नमन किया। इसके इलावा कसौली छावनी उपाध्यक्ष जसप्रीत सिंह वार्ड सदस्य देवेंद्र गुप्ता, वरिष्ठ नागरिक कृष्णमूर्ति, राजीव भारती व वरिष्ठ भाजपा नेता राजकुमार सिंगला, ओमप्रकाश व कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे। आज के ही दिन कसौली पुलिस थाना को छह भारतीय सैनिकों ने फूं क डाला था। आज से 160 वर्ष पहले यानी 20 अप्रैल 1857 को अंग्रेजों के सुरक्षित गढ़ कही जाने वाली कसौली छावनी से अंग्रेजों के अत्याचारों से भारत को आजाद कराने वाली पहली क्रांति शुरू हुई थी। भारत को अंग्रेजी शासन की जंजीरों से आजाद कराने के लिए हिमाचली जवानों ने भी इसमें अपने जीवन का बलिदान दिया था।  20 अप्रैल, 1857 को को अंबाला राइफल डिपो के छह भारतीय सैनिकों ने कसौली थाने को जलाकर राख कर दिया था। उस समय अंग्रेजों के शक्तिशाली गढ़ कहे जाने वाले कसौली छावनी में भारतीय सैनिकों द्वारा सेंध लगाए जाने से ब्रिटिश अधिकारी बौखला गए थे। परिणामस्वरूप उन्होंने कई क्रांतिवीरों को पकड़कर जेलों में ठूंस दिया और कइयों को फ ांसी पर चढ़ा दिया था। हिमाचल में पहली क्रांति की चिंगारी कसौली से भड़की थी। कसौली में क्रांति की ज्वाला से भड़की चिंगारी ने पूरे हिमाचल को अपने आगोश में लेकर लोगों के मनों में अपने को आजाद कराने की अलख जगा दी थी।

अंग्रेजों के खिलाफ  उठाए हथियार

क्रांति की जो चिंगारी कसौली से शुरू हुई थी, उससे डगशाई, सुबाथू, कालका, और जतोग छावनियों समेत पूरे हिमाचल में विद्रोह की लहर फैल गई थी। अंग्रेजों ने मेरठ, दिल्ली और अंबाला में भी विद्रोह की सूचना मिलते ही कसौली छावनी के सैनिकों को अंबाला कूच करने केआदेश दिए, जिसे भारतीय सैनिकों ने नहीं माना और खुले तौर पर विद्रोह करके बंदूकें उठा ली। कसौली की नसीरी बटालियन (गोरखा रेजिमेंट) ने भी ब्रिटिश अधिकारियों के अंबाला कूच करने के निर्देश नहीं माने। उस समय कसौली में नसीरी बटालियन हुआ करती थी, इसके सूबेदार भीम सिंह बहादुर थे।

कसौली ट्रेजरी को भी लूटा

13 मई, 1857 को सैनिकों ने अंग्रेजों के ऊपर हमला कर उन्हें धूल चटा दी थी, और कसौली ट्रेजरी में रखे चालीस हज़ार की राशि लूट ली थी। अंग्रेजों के तत्कालीन कमीश्नर पी मैक्सवैल ने अपनी डायरी में लिखा था कि यह हैरत की बात है कि मट्ठीभर क्रांतिकारियों ने अपने से चार गुना अधिक अंगे्रजी सेना को हरा दिया था। गौरतलब है कि सिर्फ  45 क्रांतिकारियों ने 200 अंग्रेजों को धूल चटा दी थी। कोष लूटने के बाद नसीरी सेना जतोग कूच कर गई, उसके बाद विद्रोह की डोर स्थानीय पुलिस ने अपने हाथों में ले ली। तत्कालीन दरोगा बुध सिंह ने अंग्रेजों को काफी आतंकित किया, लेकिन वे पकड़े गए। उन्होंने गौरों के हाथों मरने से भला स्वयं को गोली मारकर शहीद कर लिया। पूरे देश में क्रांति के संचालन के लिए एक गुप्त संगठन बनाया गया था, पहाड़ों में इसके नेता पंडित राम प्रसाद वैरागी थे जो सुबाथू के मंदिर में पुजारी थे। संगठन पूरे देश में पत्रों के माध्यम से क्रांति का संचालन किए हुए था। 12 जून, 1857 को इस संगठन के कुछ पत्र अंबाला के कमीश्नर जीसी बार्नस के हाथ लगे, जिसमें दो पत्र रामप्रसाद वैरागी के भी थे, जिससे संगठन का भेद खुल गया और वैरागी को पकड़ कर अंबाला जेल में फ ांसी पर चढ़ा दिया। हालांकि क्रांतिकारियों को सहयोग न मिलने के कारण अंग्रेजों ने दो माह में ही 1857 के विद्रोह को कुचल दिया था, लेकिन जो अलख उस समय क्रांतिवीरों ने जगाई, उसके फलस्वरूप 90 वर्ष बाद देश गुलामी से मुक्त हुआ था।


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