जाखू तक रोप-वे

By: Apr 11th, 2017 12:01 am

अंततः जाखू को छूने के प्रयास में निजी निवेश सफल हुआ और एक पूरे दशक की मेहनत ने रज्जु मार्ग स्वीकार कर लिया। शिमला के अपने शृंगार में रज्जु मार्ग का शुरू होना एक उपलब्धि के मानिंद है, लेकिन यह निजी निवेश की असहज चढ़ाई है जो जाखू मंदिर तक पहुंचने से भी अधिक कठिन साबित हुई। बेशक सरकार ने महत्त्वाकांक्षी परियोजना के सुपुर्द अपनी सहमति का बिगुल कर दिया, लेकिन निवेशक के हिसाब से यह कठिन एहसास जरूर रहा होगा। यह शिमला की अभिलाषा तो रही है कि पर्यटक फुर्र से जाखू चोटी छू ले, लेकिन हिमाचल में ऐसी परियोजना को मुकाम तक पहुंचाना अपने आप में एवरेस्ट पर चढ़ने सरीखा है। कहने को हम निवेश मित्र माहौल के सारथी हैं, लेकिन हकीकत उन बंद तालों में दिखाई देती है जो एक-एक करके खुलते हैं और निवेशक को सताने में कोर कसर नहीं छोड़ते। हिमाचल में निवेश की सबसे बड़ी आवश्यकता है भी पर्यटन अधोसंरचना में और इस लिहाज से एक व्यापक नीति का इंतजार अब टूटना चाहिए। प्रदेश को पर्यटन की निगाहों से देखें तो नागरिक सुविधाओं के अलावा शहरीकरण, सड़क निर्माण, मनोरंजन तथा पर्यावरण संरक्षण में सुधार तय है। हिमाचल के जल संसाधनों पर केंद्रित हर निवेश, पर्यटन सुविधाओं को सशक्त कर सकता है और अगर इस लिहाज से विद्युत परियोजनाएं भी इसके साथ नत्थी हों, तो कारवां बदल सकता है। एरियल ट्रांसपोर्ट का मानचित्र पूरे प्रदेश की छवि बदलने के अलावा पर्यावरण तथा पर्यटन की परिपाटी भी सशक्त करेगा। शिमला रज्जु मार्ग इस दिशा में आशा जगाता है, लेकिन इसके साथ सुरक्षा तथा तकनीकी ज्ञान पर प्रदेश सरकार को भी मेहनत करनी होगी। जाखू रोप-वे के साथ सुरक्षा की शर्तें इसलिए भी पैनी निगाह से देखती रहेंगी क्योंकि आरंभिक ट्रॉयल में खतरनाक खामियां रही हैं। ऐसे में कुछ अन्य परियोजनाओं के संदर्भ व स्तर की पुख्ता पड़ताल तभी संभव है, अगर राज्य का अपना एरियल ट्रांसपोर्ट आर एंड डी विभाग काम करे। प्रदेश के मेकेनिक विंग ने आरंभ में रुचि दिखाते हुए रज्जु मार्ग स्थापित भी किए, लेकिन इस प्रयास को व्यापक स्तर तक पहुंचाने में आज तक कुछ नहीं हुआ। शिमला व कुल्लू के सेब व सब्जी उत्पादन को देखते हुए, माल ढुलाई के लिए रोप-वे परियोजनाओं का खाका अवश्य जन्म लेता रहा है, लेकिन आज तक विभागीय तौर पर स्वतंत्र रूप से इस आशय का विंग स्थापित नहीं हुआ। कहने को आधा दर्जन रज्जु मार्गों के जरिए पर्यटन की मंजिलें तो खोजी जाती हैं, लेकिन यथार्थ के धरातल पर निवेशक मुंह क्यों मोड़ता है। इस पर भी तो गौर होना चाहिए। यह दीगर है कि एक अन्य परियोजना के तहत धर्मशाला-मकलोडगंज रज्जु मार्ग की स्थापना अब तमाम अड़चनों से बाहर आ गई है और इसमें टाटा की रुचि से इसके निर्माण को बल मिलता है। कहना न होगा कि हिमाचल में स्काई बस जैसी परियोजनाओं में कुछ विदेशी कंपनियों की रुचि से परिवहन के मायने बदल सकते हैं, लेकिन इससे पहले विकास में निजी क्षेत्र को अपनाने की सोहबत हिमाचल को सीखनी होगी। अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की महफिल में शरीक होने से पहले हिमाचल को अपनी अधोसंरचना के नित नए विकल्पों व तकनीक के इस्तेमाल पर विचार करना होगा। राज्य के पीडब्ल्यूडी तथा आईपीएच महकमों को अपनी परियोजनाओं की मिलकीयत में पर्यटन आकर्षण के बिंदु जोड़ने होंगे, ताकि विकास के साथ सैलानियों का ठहराव भी नित नए बहाने देख पाए। शिमला में रोप-वे का एहसास उमड़ते उत्साह को आसमान की ऊंचाइयां दिखा सकता है, लेकिन ऐसी परियोजनाओं के दायरे में एमर्जेंसी की स्थिति के लिए तैयारी भी जरूरी है। पर्यटन क्षेत्र में आ रहे साहसिक आयामों को न केवल सुरक्षित अधोसंरचना की जरूरत है, बल्कि किसी भी जोखिम की स्थिति से निपटने के सरकारी बचाव का पूर्ण बंदोबस्त भी अभिलषित है। पर्यटक बचाव दल या टास्क फोर्स के जरिए हिमाचल ऐसी तमाम गतिविधियों की कुशल निगरानी कर पाएगा। दूसरी ओर प्रदेश की अन्य प्रस्तावित रज्जु मार्ग परियोजनाओं को आरंभ करने के लक्ष्य तय करके प्रयास करेंगे, तो दर्जनों पर्यटक स्थल विकसित होंगे।


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