जीवन की वास्तविकता

By: Apr 1st, 2017 12:05 am

बाबा हरदेव

इनसान की अज्ञानता ने इसको कहां-कहां गिराया है, इसको कहां-कहां पटका है, लेकिन हूड़मति इनसान उससे भी बाज नहीं आता है। उसी रास्ते पर चलता चला जाता है, वही संकीर्ण सोच रखकर चलता जाता है। फिर वो जिधर से गुजरता है विनाश और मातम फैलाता चला जाता है। इस प्रकर से धरती पर जीने वाले इनसान नजर आते हैं। वास्तविकता में ऐसा जीवन कहलाने लायक नहीं होता है। जीवन वही है, जो प्यार से जिया जाता है। जो जीवन विपरीत भाव से युक्त होकर जिया जाता है, वास्तविकता में उसको तो जीवन भी नहीं कहा जाता, वह तो चलती-फिरती लाश हुआ करती है, जिसमें प्राण ही नहीं हैं। प्राण जो प्यार वाले हैं, जो केवल धड़कन वाले प्राण हैं, वो प्राण, प्राण नहीं हैं, वो तो एक ऐसा खोखलापन है, केवल एक ढांचा है। महापुरुष कहते हैं कि हम जीवंत हो जाएं, हमारे जीवन को जीवन मिल जाए। हमारी दिल की धड़कनों को सच्ची धड़कनें मिल जाएं। जो प्यार के तहत धड़क रही हैं, ऐसी धड़कनें हर दिल को मिल जाएं । इसी कारण ही दिल मंदिर बन पाएगा, वरना यह दिल मंदिर नहीं बनता है। यह मंदिर तभी बनता है जब हृदय में प्रभु को बसाते हैं। इस हृदय में प्रेम को बसाते हैं, इस हृदय को प्यार से सजाते, संवारते हैं। जब करुणा भाव को स्थान देते हैं, वास्तविकता में यह मन मंदिर तभी बनता है। इसको मंदिर बनाना होता है, वरना जो राक्षस प्रवृत्ति वाले हैं, जो जुल्म-ओ-सितम कर रहे हैं, उनके दिलों को भी क्या मन मंदिर कह देंगे। यह मन तभी मंदिर बनता है जब मन में प्रभु को बसाते हैं। फिर तमाम उत्तम भावनाएं इस मन में ही उपजती चली जाती हैं और उसी के अंतर्गत दूसरों से हम व्यवहार करते चले जाते हैं। इस प्रकार से जीवन को जीवन मिले। वास्तविकता यह है कि  यह मनुष्य जो जीवन जी रहे हैं, केवल अपना बोझ नहीं ढो रहे हैं। ऐसा जीवन हर किसी के हिस्से में आए यही शुभकामना की जा रही है। दातार ऐसी कृपा करे, ऐसा हो पाए। ये केवल प्रार्थनाएं ही नहीं हैं। ये उस ज्ञान के साथ जोड़ते हैं जिसके द्वारा सारे मसले हल हो जाते हैं, जो पेचीदगियां हैं वो सुलझ जाती हैं। वे गांठें खुल जाती हैं, उनसे हमें निजात मिल जाती है।  यदि कोई इस तरफ  बढ़ता ही नहीं है, वो इसको भी उसी नकारात्मक दृष्टि से देखता है तो उसकी गांठें खुलेंगी कैसे? वो खुलने ही नहीं पाएंगी। यदि उजाला चाहिए तो क्या दीपक जलाने से गुरेज होगा, उस तरफ  बढ़ेंगे ही नहीं तो ठोकरों से कहां बचाव होगा। इसलिए इनसान तू भी कुछ कर, तू भी उस तरफ  अपने कदम बढ़ा और जिन्होंने बढ़ाए आज उन्हीं के नगमें गाए जा रहे हैं। आज उनके प्रति सत्कार का भाव रखा जाता है। वो ही आज रोशन मीनार बने हुए हैं, जो अंधकार मे आशा की किरण के रूप में हैं। जैसी आपकी सोच है, जैसी आपकी भावना है, उसी तरह से आप भी इस उजाले में जीवन जी रहे हैं और सही मायनों में यही जीवन, जीवन कहलाता है। जीवन में सही मुकाम पाने के लिए महापुरुषों के बताए मार्ग का अनुसरण करना जरूरी है। अपनी सोच में बदलाव लाकर ही इनसान अपना और दूसरों का भला कर सकता है। जीवन की वास्तविकता तो हमें यही सिखाती है।


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