नगरोटा रैली का सुरमा

By: Apr 13th, 2017 12:05 am

बेरोजगारी भत्ते का सुरमा पहने नगरोटा बगवां की रैली वास्तव में सूरमा बनाना किसे चाहती है, यह स्पष्ट होकर भी अस्पष्ट सा प्रतीत होता है। मानना पड़ेगा कि रैली हुई और यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि रैली उस वक्त हुई, जब सरकार के मुखिया आफत में हैं। बेशक युवाओं के पक्ष में हुई रैली की शुमारी में नारी संख्या का सैलाब सबसे अधिक रहा, फिर भी मंच के विषय और विश्लेषण तो परिवहन मंत्री जीएस बाली को ही शाबाशी देते रहे। खास तौर पर प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू के प्रमाणित वक्तव्य में तो यही पढ़ा जाएगा कि नगरोटा का मंच किसी राजनीतिक राज्याभिषेक से कम नहीं। हालांकि कांगे्रस का असली मर्ज तो भोरंज उपचुनाव के नतीजों से पता चलेगा और यह भी कि जो प्रदेश पार्टी अध्यक्ष कांगड़ा में आकर बाली को बलवान बना सकता है, असल में हमीरपुर में उसकी अपनी सियासत के पत्ते हैं कितने। बहरहाल हम यह तो मान सकते हैं कि कांगे्रस की ऐसी रैलियों में सत्ता के बजाय सताने का मूड हावी रहता है। सुखविंदर सिंह सुक्खू ने तो एक तरह का ऐलान करते हुए बाली साम्राज्य की बुनियाद ही रख दी है और इसके मायने अवश्य ही असहज व कठिन हैं। न तो एक रैली से राजनीति का कद मापा जा सकता और न ही ऊंचे मंच की तासीर से जमीन की प्रवृत्ति बदल सकती है। लिहाजा पार्टी अध्यक्ष अपनी प्रासंगिकता में नेताओं के विकल्प पर मुहर लगा रहे हैैं। तीन विधायकों की हाजिरी में सरकार का पक्ष या पार्टी का मत हासिल नहीं होगा, इसलिए संबोधनों के फैलाव के बीच संकेतों का खेत सूना रहा। जिस युवा के लिए रैली का मंच सजा, उसने आखिर कहा क्या और क्या युवाओं की पीड़ा समझने से पहले नेताओं की दिशा समझनी जरूरी है। युवाओं के नाम पर सियासत की जंग और उसके सरदार का फैसला अवश्य ही सुक्खू करते दिखे, लेकिन जिन फासलों का नाम कांगे्रस बन गई है, उसका विश्लेषण कौन करेगा। राजनीतिक रूप से बेरोजगारी भत्ता किसी नेता की सफलता की पुडि़या तो हो नहीं सकता और न ही यह बेरोजगारों की कतार को खत्म करेगा। हिमाचली युवा अगर जेब में बेरोजगारी भत्ता डाल ले, तो भी वह शुक्रिया तो शायद इतने खुले दिल से नहीं करेगा, जिस अंदाज में कांगे्रसाध्यक्ष बाली का करते दिखाई दे रहे हैं। नाराजगियां स्पष्ट हैं और कांग्रेस के भीतर की महत्त्वाकांक्षा भी। ऐसे समय में जब कांगे्रस सरकार के मुखिया अपने सियासी जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं और आशंकाएं पल-पल को गिन रही हों, तो नेताओं की महत्त्वाकांक्षा स्वाभाविक तौर पर बढ़ेगी। नगरोटा बगवां में जो नारेबाजी हुई, उसके सबब में जीएस बाली का कद अब नए परिप्रेक्ष्य में देखा जाएगा। या यूं कहें कि नगरोटा रैली ने अगर यही मकसद तय किया था, तो सुक्खू इसे रेखांकित कर पाए हैं। जाहिर तौर पर नेताओं के कारण हिमाचल बदला और बदलाव की इसी आशा में भाजपा के भीतर भी नए दीये जलाने की कोशिश शुरू हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के आगमन में कांगड़ा, बिलासपुर व सोलन में गूंजे नारे अगर परिवर्तन की थाप हैं, तो नगरोटा बगवां का मंच भी अपनी बात कहता है। देखना यह है कि तीन मौजूदा विधायकों व कुछ अन्य नेताओं के साथ परिवहन मंत्री जीएस बाली कितने कदम आगे निकलते हैं, लेकिन यह उनकी ही सरकार के लिए असहज मंच तो साबित हो ही गया।


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