पर्यटक की जेब बरसाती है पैसा, पर नहीं मिलता सुकून

By: Apr 30th, 2017 12:08 am

पर्यटन व्यवसाय से एथिक्स गायब होते ही खो गया शिमला का प्राचीन गौरव

NEWSशिमला— शिमला में कभी पर्यटक मैदानी इलाकों की जिंदगी के कोलाहल से भागकर सुकून के दो पल तलाशने के लिए पहुंचते थे, मगर अब पैसे की भूख ने शिमला को भी उन्हीं इलाकों की फेहरिस्त में ला खड़ा किया है, जहां आदमी की इज्जत नहीं। शिष्टाचार व अपनापन होता ही नहीं। यह वही पहाड़ी प्रदेश की राजधानी है, जहां कभी अतिथि देवो भवः की गूंज सुनाई देती थी। अब हर पर्यटक सीजन में सैलानियों से मारपीट की घटनाएं आम होती है। ऐसा नहीं है कि कानून व्यवस्था का दिवाला पिट गया हो, पुलिस हाथ पे हाथ धर के बैठी हो। हर सीजन में व्यवस्था बनाने के लिए सरकारी तंत्र मुस्तैद रहता है, मगर पैसे की भूख ने व्यवसायियों को इनसानियत का तकाजा भूला दिया है। पर्यटक सीजन के दौरान लूट-खसूट आम होती है। तय रेट से हटकर सामान बिकता है। यूं कह लें कि शहर व इसके साथ लगती सैरगाहों में मुंह देखकर पर्यटकों को थप्पड़ मारे जाते हैं। पर्यटन विभाग औचक निरीक्षण तो करता है, मगर ये इतने पर्याप्त नहीं है, जितना शिमला जैसे नामी पर्यटन क्षेत्र में होना चाहिए। शिमला में प्रवेश करते ही पर्यटकों को लूभाने के लिए दलाल पीछे लग जाते हैं। उन गेस्ट हाउसेज व होटलों तक ले जाते हैं, जहां उन्हें मोटी रकम कमीशन में मिलती है। हालांकि पंजीकृत गाइड अच्छा कार्य भी कर रहे हैं, मगर हर सीजन में ऐसे नए दलाल पैदा हो रहे हैं, जो अतिथि देवो भवः की संस्कृति को मानते ही नहीं। इन्हीं की वजह से शिमला बदनाम हो रहा है। पहले इस शहर में अपनेपन का एहसास था। पर्यटक लूट-खसूट की शिकायतें नहीं करते थे, मगर अब जब से बाहरी प्रदेशों के लोग यहां अस्थायी फास्ट फूड आइटम्स बेचने के लिए आए हैं, तभी से शिकायतें भी आ रही हैं। होटल व रेस्तरां व्यवसायी इन सबसे बचते हैं। पर्यटकों को बेहतरीन सुविधाएं जुटाने के लिए प्रयासरत रहते हैं, मगर दलाल शिमला को बदनाम कर रहे हैं। यहां तक कि पर्यटकों को टैक्सियों के नाम पर निजी वाहनों में ढोने वाले भी उनके साथ गाली-गलोज करते अब आम मिल जाते हैं। हर सीजन में सैलानियों की शिकायत रहती है कि जहां उन्हें घूमाने के लिए कहा गया था, वहां तक नहीं ले जाया गया या फिर तय रेट से हटकर रकम वसूली गई। बहरहाल, शिमला आधुनिकता के साथ कदमताल कर रहा है। शहर में पर्यटकों के लिए बेहतरीन सुविधाएं जुटाई जा रही हैं। हाल ही में जाखू रोप-वे का शुभारंभ हुआ है। एचआरटीसी की सस्ती टैक्सियां विभिन्न गंतव्यों तक 20 से 30 रुपए के टिकट में ले जा रही हैं।

लोग अपने घरों में ठहराते थे सैलानियों को

शिमला आने वाले पर्यटकों को पहले स्थानीय लोग अपने घरों में निःशुल्क ठहराने में भी हिचकिचाते नहीं थे, मगर जब से महानगरों में कानून व्यवस्था बिगड़ने की खबरें सुनने को मिलती है, तब से स्थानीय लोग भी ऐसा जोखिम नहीं उठाते। खास मौकों पर जब होटल फुल हो जाते थे, तो लोग सैलानियों को अपने यहां जगह देते थे।

हरित पट्टी लगभग खत्म

राजधानी शिमला में पहले घनी हरित पट्टी थी। देवदार की बड़ी-बड़ी पंक्तियां लोगों का स्वागत करती थीं। अब कंकरीट के जंगल में इन्हें सुखाया जा रहा है। प्रयोगशाला की रिपोर्ट्स भी ये स्पष्ट कर चुकी हैं, मगर कार्रवाई नहीं हो पाती। अब घने जंगल या तो जाखू या फिर कुफरी की तरफ ही शेष बचे हैं।

सामान की गुणवत्ता से समझौता

शिमला व इसके आसपास की सैरगाहों में खुले में बिकने वाले सामान पर प्रतिबंध की आवश्यकता है। एक तो ये सेहत से समझौता करते हैं, दूसरे इसकी गुणवत्ता नहीं होती। यही नहीं पर्यटकों की शिकायत रहती है कि ऊंची कीमतों में उन्हें ऐसा सामान बेचा जाता है।


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