रिज की रौनक में भाजपा

By: Apr 28th, 2017 12:01 am

सीधे देश के प्रधानमंत्री से मुलाकात करते शिमला ने नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय तेवर तो देखे, लेकिन हिमाचली अधिकारों की बैसाखियों को जुड़ते नहीं देखा। नरेंद्र मोदी अपनी याद की गलियों में एक सियासी चित्रकार के मानिंद घूमे और शिमला की दीवारों को चुनावी रंग में रंग भी गए, लेकिन केंद्र के परिदृश्य में हिमाचल के हिस्से केवल राष्ट्रीय जज्बात ही आए। जिक्र तो हिमाचली नमक तक का हुआ और बीस साल पहले की अटल रैली की याद आ गई, लेकिन ये वे कदम नहीं थे, जिन्होंने कभी वाजपेयी सरकार के दौरान हमें औद्योगिक पैकेज के मार्फत चलना सिखाया। बेशक अपने पुराने संबंधों की बिसात पर मोदी ने सियासत के कुछ मोहरे अलंकृत किए, लेकिन अपने साथ जो आकाश वह रिज पर लाए, उस पर कम लिखा-बहुत कुछ छोड़ दिया। रिज की रौनक हुलिया बदल कर भाजपा के उद्घोष में शरीक हो गई और इस दौरान शिमला के दिल की धड़कनें भी बदलीं। चुनावी यथार्थ को चिन्हित करते इरादों का समुद्र इसी रिज पर बहा, तो हुजूम की तालियों  ने भाजपा की छाती और चौड़ी कर दी। बहरहाल सीना कितने इंच चौड़ा होगा, यह चुनावी फीते पर टिका कयास है। प्रधानमंत्री के संबोधन में संस्थान और संसाधन तो टपके, लेकिन समय की पाबंदी में न पूरा सुनाया गया और न ही ठीक से पूरा सुना गया। अलबत्ता जो बोले उसमें हिमाचल था और जो सुना उसमें भी हिमाचल था, फिर भी उल्लेख नाखून ही छीलता रहा और रैली हो गई। ऐसे में हिमाचली आशाएं तो आकर फिर उसी इंडियन कॉफी हाउस में बैठ गईं, जिसकी कॉफी आज भी उबल कर प्रदेश के हितों के बारे में सोचती है। नरेंद्र मोदी यहां पल में प्रधानमंत्री और पल में नेता स्वरूप दिखे और उनकी यायावर प्रवृत्ति से निकले प्रदेश के दर्शन तथा ऐसे दर्शन शास्त्र की बुनियाद पर हिमाचल को भीतर तक झांकना है। शायद रिज भी सोच रहा होगा कि इस बार भाजपा के पांव कहीं ज्यादा वजन के साथ उसके ऊपर टिके, तो इस रैली से पूछा यह भी जाएगा कि अगली बार कौन। अब तो भाजपा की खोज फड़नवीस और खट्टरों से आगे योगियों पर टिकी है, तो शिमला रैली में आए तमाम नेताओं की नई पहचान भी शुरू हुई और जब प्रधानमंत्री हिमाचल भाजपा अध्यक्ष को जवान सतपाल कह गए, तो पार्टी के बदलते उच्चारण को भी समझना होगा। तो क्या हिमाचल में भी कोई छुपेरुस्तम है या योगी सरीखे, गैर परिवारवाद से निकले हुए नेता की तलाश होगी। भाजपा को ज्यादा मशक्कत करनी नहीं पड़ेगी, क्योंकि हिमाचल में भी कुछ उभरते हुए नेता केवल संघ को ही परिवार मान कर चल रहे हैं। वैसे रिज रैली का समय भाजपा की अनुकूलता जैसा ही रहा और इसीलिए ‘उड़ान’ पर आए प्रधानमंत्री से हिमाचली हवा और पानी के उचित प्रबंधन की अभिलाषा में प्रदेश खुद को मापने लगा था। प्रधानमंत्री जरूर शिमला आकर हिमाचल के साथ हो लिए और उनकी भावुकता भी दर्ज हुई, लेकिन हिमाचली मर्ज का यही इलाज तो नहीं। यह दीगर है कि जब भीड़ थी और तालियां भी, तो जनता के समुद्र में मुद्दों का मंथन गौण हो गया, लेकिन इसी रिज पर फिर बंदर लौटकर पर्यटकों को डराएगा, क्योंकि उसकी पहुंच से हिमाचल परेशान है। केंद्र की कई उज्ज्वल योजनाओं का जिक्र करके जिस भारत की तस्वीर प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, वह यकीनन हिमाचल में भी बनेगी, लेकिन आज भी केंद्रीय कानून हमारे रास्ते रोक रहे हैं। वन संरक्षण अधिनियम की पाबंदी, जलाधिकारों  की तालाबंदी और पर्यावरण संरक्षण में आर्थिक मंदी से हिमाचल कैसे उबरे। बिलासपुर हाइड्रो इंजीनियरिंग कालेज की शुरुआत के साथ पानी पर हिमाचली आत्मनिर्भरता के सवाल का हल भी तो चाहिए। रिज पर फूटीं तमाम राजनीतिक किरणों ने भाजपा की आकांक्षा और संभावना को पढ़ा, लेकिन हिमाचल के लिए प्रधानमंत्री का रुतबा क्यों खामोश रहा। रिज ने आजतक न जाने कितने सूर्याेदय और अस्त देखे हैं, अंतर केवल दिशा का रहा। यहां भाजपा के दक्षिण ने पूर्व को देखा है, इसलिए रिज पर न दबाव था और न ही कोई दरार नजर आई, फिर भी विकास के पर्वतीय विमर्श पर छाई खामोशी से, हिमाचल अटल सरीखे अपनत्व की राह पर मोदी को चलाने में कहीं न कहीं वंचित रहा।


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