रौरिक की आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया

By: Apr 20th, 2017 12:05 am

पतलीकूहल —  निकोलाई रौरिक की कर्मस्थली नग्गर में वर्ष 1993 में अंतरराष्ट्रीय रौरिक मेमोरियल ट्रस्ट की नींव रखी गई और  उसके बाद इस ट्रस्ट में कलात्मक, साहित्यक गतिविधियों व कला धरोहरों को संरक्षित करने वाला केंद्र बन गया। तक रीबन 150 बीघे में फैले इस ट्रस्ट में रौरिक आर्ट गैलरी, हिमायन फोल्क आर्ट म्युजियम, देविका रानी एवं स्वेतो स्लाव मेमोरियल म्युजियम उरूस्वाति संग्रहालय को स्थापित किया गया।  हालांकि  इस ट्रस्ट में 30 के करीब कर्मचारी अपनी सेवाएं दे रहे हैं, जिनकी सालाना पगार 36 लाख रुपए होती है, लेकिन ट्रस्ट को देखने आने वाले पर्यटकों के प्रवेश शुल्क से ही इन कर्मचारियों की पगार दी जाती है, जब कि सालाना मात्र 25 से 26 लाख रुपए की आमदनी रहती है। कई बार यदि टूरिस्ट कम रहते हैं तो यह आय और कम हो जाती है। यही नहीं, आईआरएमटी में कार्यरत कर्मचारी न्यूनतम दिहाड़ी यानी के 200 रुपए पति दिन के हिसाब से प्राप्त कर रहे हैं। भारत व रूस की मैत्री का प्रतीक माने जाने वाले इस ट्रस्ट की आर्थिक स्थिति यह है कि यहां पर कार्यरत कर्मचारी किस्तों में अपनी पगार को पाने के लिए मजबूर हैं। विश्व पर्यटक स्थल होने के बावजूद ट्रस्ट के लिए रूस, भारत व हिमाचल प्रदेश की सरकार के पास कर्मचारियों की पगार के लिए कोई भी बजट उपलब्ध नहीं है। ट्रस्ट में धनाभाव होने के कारण इस क्षेत्र को हैरिटेज का दर्जा तो प्राप्त है, लेकिन यहां आने वाला पर्यटक कई सुविधाओं से वचिंत रहता है। ट्रस्ट  चार संग्रहालयों को देखने लिए पधारने वाले पर्यटकों के प्रवेश शुल्क से होने वाली आय पर उसकी आर्थिकी स्थिति निर्भर रहती है। लोगों का मानना है कि यदि हिमाचल सरकार इस ट्रस्ट कोे अपने क्षेत्राधिकार में लेती है तो यहां पर विकास की संभावनाएं उजागर होंगी, जिससे यहां काम करने वाले कर्मचारियों को समय पर व न्यूनतम दिहाड़ी से नाता टूटेगा। इस ट्रस्ट में 150 बीघा भूमि है, जिसमें कृषि व बागबानी जैसी गतिविधियों का सृजन कर ट्रस्ट बड़े आराम से कर्मचारियों के वेतन का भुगतान कर शेष राशि से विकासात्मक कार्य में वहन कर सकता है। यदि इस ट्रस्ट में निरंतर आर्थिक सहायता बजट के माध्यम से मिलेगी तो राष्ट्रीय गौरव की प्रतीक धरोहर को सुरक्षा प्रदान होगी। क्षेत्र के  लोगों का कहना है कि विडंबना यह है कि रूस  सरकार हो या फिर भारत सरकार या फिर हिमाचल सरकार किसी भी सरकार ने ट्रस्ट के सुचारू संचालन व कर्मचारियों के वेतन भते के लिए कोई भी बजट उपलब्ध नहीं कराया जाता है। लोगों का मानना है कि यदि प्रदेश सरकार की इनायत इस धरोहर पर रहती है तो इस राष्ट्रीय गौरव की प्रतीक रौरिक की कर्म स्थली की आर्थिकी स्थिति बेहतर हो सकती है।


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