शहीदों को फिर नमन

By: Apr 28th, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

नित-नित करते कत्ल वे, नित-नित होती पीड़,

वीर यहां दस-बीस थे, चली निगलने भीड़।

निंदा हल्की या कड़ी, क्या कुछ होगा फर्क,

घिसे-पिटे हथियार से, होता बेड़ा गर्क।

निंदा हम करते रहें, वे सिर काटें रोज,

कहां गई वह आधुनिक हथियारों को खोज।

भाषणबाजी अब नहीं, कस कर करें प्रहार,

गाजर-मूली कट रही, मान गए क्या हार?

कहां मिसाइलें मर गईं, उड़ी ड्रोन की बात,

रोज-रोज वे बांटते, कफनों की सौगात।

खुफिया तंत्र कहां लुटा या फिर है परतंत्र?

या सिक्कों की खनक ने, फेर दिया कुछ मंत्र।

अतंरिक्ष में उड़ रहे, बजते गाल विचित्र,

शोकाकुल हैं कुल कई, पास-पड़ौसी मित्र।

लो फिर से कुचले गए, फिर से हुए शहीद,

इससे ऊपर क्या करें, मंत्री से उम्मीद।

शत्रु का सिर काटकर, शांत करें आक्रोश,

गली-गली हर मोड़ पर, भरा हुआ है रोष।

यही हाल कश्मीर में, सरकारें हैं फेल,

गलत कहा ‘सत्येंद्र’ ने, तो डालो उसको जेल।

 


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