सड़क का प्रधानमंत्री !
वाराणसी में तीन रोड शो…दिल्ली में कुछ दूर पैदल चलकर, एक रोड शो की शक्ल में, भाजपा मुख्यालय 11, अशोक रोड तक जाने वाले प्रधानमंत्री…अब पहले ओडिशा और बाद में गुजरात के सूरत शहर में 11 किलोमीटर लंबा, ऐतिहासिक रोड शो…! सवाल किए जा रहे हैं कि आखिर प्रधानमंत्री मोदी को लगातार रोड शो की जरूरत क्या है? वह दिल्ली में प्रशासन, विकास और रोजगार के काम कब देखते हैं? आखिर प्रधानमंत्री हर समय चुनाव की मुद्रा में क्यों रहते हैं? इनके पलट सवाल हो सकते हैं कि आखिर सड़कों पर घंटों तक इतनी भीड़ प्रधानमंत्री के साथ क्यों रहती है? भीड़ ‘मोदी, मोदी..’ के नारे क्यों लगाती रहती है? कोई उन्हें ‘देश का भगवान’ मानता है, तो कोई इस ‘सदी का महानायक’ करार दे रहा है। यदि जनता प्रधानमंत्री मोदी से नाराज होती, तो ये विशेषण दिए जा सकते थे? आखिर विपक्ष के किसी नेता या कांग्रेस के ही राहुल गांधी के लिए ऐसे विशेषणों का उपयोग क्यों नहीं किया जाता? कहां है विपक्ष और कांग्रेस…? या उनका महागठबंधन…! दरअसल प्रधानमंत्री मोदी ‘सड़क के प्रधानमंत्री’ हैं। वह दिल्ली के प्रधानमंत्री आवास की आलीशान और भव्य, सुरक्षित दीवारों में सिमट कर रहने वाले प्रधानमंत्री नहीं हैं। वह सिर्फ सत्ता के दरबार के प्रधानमंत्री नहीं हैं। वह समूचे देश और उसकी जनता के प्रधानमंत्री हैं। वह उनकी संवेदनाएं जानना और पहचानना चाहते हैं। वह अपने लोगों से सीधा संवाद चाहते हैं। वह जनता की तकलीफें और खुशियां भी साझा करना चाहते हैं। वह लोगों की नब्ज जानने को उनके बीच जाते रहना चाहते हैं, लिहाजा प्रधानमंत्री मोदी ‘सड़किया नेता’ हैं। इस संदर्भ में मोदी देश के ऐसे प्रथम प्रधानमंत्री हैं। हमने किसी भी प्रधानमंत्री को इस तरह ‘सड़क के दरबार’ में नहीं देखा। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, बेशक, अति लोकप्रिय प्रधानमंत्री थे, लेकिन वह देश की आजादी की लड़ाई की पैदाइश थे। देश की भावनाएं और संवेदनाएं नेहरू जी और कांग्रेस से जुड़ी थीं। नतीजतन नेहरू जी तो चुनाव प्रचार करने तक अपने क्षेत्र में नहीं जाते थे। नेहरू अतुलनीय हैं। उन्हें इतिहास-पुरुष मानकर एक तरफ रख देना चाहिए। उनके बाद जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं या प्रधानमंत्री की सुरक्षा में एसपीजी की तैनाती के बाद क्या कोई प्रधानमंत्री इतनी दूरी तक और इतने घंटों तक सड़क पर रहा है क्या? मोदी इतिहास-पुरुष नहीं हैं, लेकिन इतिहास को नएपन से लिख रहे हैं, नए प्रयोग कर रहे हैं, नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं और प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी जान हथेली पर लेकर चलने का एक उदाहरण स्थापित कर रहे हैं। क्या राहुल गांधी, अखिलेश यादव, मायावती और नीतीश कुमार या ममता बनर्जी में इतना धैर्य और माद्दा है? गुजरात में इसी साल अक्तूबर से पहले विधानसभा चुनाव हैं। लिहाजा हीरों के खूबसूरत शहर सूरत में इस रोड शो को महज चुनावी नहीं कहा जा सकता। गुजरात में बीते 25 सालों से भाजपा का वर्चस्व और शासन है। 2012 के चुनावों को याद कीजिए, जब आरएसएस, बजरंग दल के एक तबके समेत भाजपा में केशुभाई पटेल सरीखे कद्दावर नेता ने मुख्यमंत्री मोदी का विरोध किया था, लेकिन नतीजा क्या रहा? लिहाजा आज कोई कांग्रेस या विपक्ष अथवा पाटीदार आंदोलन भाजपा को अस्थिर कर देगा और मोदी की शिकस्त होगी, यह कल्पना भी नहीं करनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के स्वागत में महिलाएं भी तैनात थीं, 1008 मीटर का एक बैनर बनाया गया था, जिस पर गुजरात वालों ने हस्ताक्षर किए थे। सबसे गौरतलब यह है कि गुजरात वालों ने अपना पैसा इकट्ठा करके प्रधानमंत्री मोदी की स्वागत-यात्रा में सूरत शहर को रोशन किया था, लिहाजा कांग्रेस का करोड़ों रुपए फूंकने का आरोप भी खंडित हो जाता है। कांग्रेस और उसके नेता राहुल गांधी के मोदी-विरोध के ढेरों जुमले तो देश सुनता आया है, लेकिन फिर भी जनादेश भाजपा के पक्ष में और हाशिए पर कांग्रेस पड़ी रही है। क्या मोदी-विरोध से ही कांग्रेस का पुनरोत्थान हो सकता है? देश अपेक्षा करता है कि राहुल गांधी अपनी नीतियां पेश करें, देश के विकास के नए कार्यक्रम घोषित करें और प्रधानमंत्री मोदी के समानांतर कोई ‘बड़ी लकीर’ खींच कर दिखाएं, तो वे स्थितियां मोदी को चुनौती दे सकती हैं। अलबत्ता प्रधानमंत्री मोदी का फिलहाल कोई विकल्प नहीं है। भाजपा अपने परंपरागत गढ़ों के अलावा नए प्रभाव क्षेत्र स्थापित करना चाहती है, तो इसमें गुनाह क्या है? प्रधानमंत्री मोदी ने भुवनेश्वर में रोड शो करके और करीब 1000 साल पुराने शिव मंदिर में जाकर पूजा-पाठ कर ओडिशा की जनता को सोचने पर विवश किया है। ओडिशा में तो भाजपा का जनाधार ‘शून्य’ रहा है, लेकिन अब प्रधानमंत्री के रोड शो के बाद सत्ता और जनता का एक संबंध बन रहा है, ओडिशा के पुराने नेता प्रधानमंत्री से मिले हैं, 2019 में विधानसभा की चुनौती अभी से सामने दिखाई दे रही है, तो उसमें प्रधानमंत्री अपनी भूमिका क्यों न निभाएं? चुनावी और घोषणा पत्री वादों से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हमें लगता है कि प्रधानमंत्री और आम आदमी के बीच एक निरंतर और सार्थक संवाद मौजूद रहना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी बार-बार सड़क पर उतर कर ऐसा प्रयास कर रहे हैं, तो उनका राष्ट्रीय स्वागत और उन्हें साधुवाद…!!!
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