सभी को सींचता है परिवार

By: Apr 8th, 2017 12:05 am

पारिवारिक जीवन को मधुर बनाने वाला प्रमुख गुण निःस्वार्थ प्रेम है। यदि प्रेम की पवित्र रज्जु से परिवार के समस्त अवयव सुसंगठित रहें, एक-दूसरे की मंगल कामना करते रहें, एक-दूसरे को परस्पर सहयोग प्रदान करते रहें, तो संपूर्ण सम्मिलित कुटुंब सुघड़ता से चलता रहेगा। परिवार एक पाठशाला है, एक शिक्षा संस्था है, जहां हम प्रेम का पाठ पढ़ते हैं। अपने पारिवारिक सुख की वृद्धि के लिए यह स्वर्ण सूत्र स्मरण रखिए कि आप अपने स्वार्थों को पूरे परिवार के हित के लिए अर्पित करने को प्रस्तुत रहें। हम अपने सुख की इतनी परवाह न करें, जितनी दूसरों की। हमारे व्यवहार में सर्वत्र शिष्टता रहे। यहां तक कि परिवार के साधारण सदस्यों के प्रति भी हमारे व्यवहार शिष्ट रहें। छोटों की प्रतिष्ठा करने वाले, उनका आत्मसम्मान बढ़ाने वाले, उन्हें परिवार में अच्छा स्थान देकर समाज में प्रविष्ट कराने वाले भी हमी हैं। छोटे-बड़े, भाई-बहन, घर के नौकर, पशु-पक्षी सभी से आप उदार रहें। प्रेम से अपना हृदय परिपूर्ण रखें। सबके प्रति स्नेहसिक्त, प्रसन्न रहें। आपको प्रसन्न देखकर घर भर प्रसन्नता से खिल उठेगा। प्रफुल्लता वह गुण है जो थके-हारे सदस्यों तक में नवोत्साह भर देता है। जरा इस चित्र को मन के पर्दे पर अंकित कीजिए- मैं प्रायः कालेज से थका-हारा लौटता हूं। घर आता हूं तो हृदय प्रफुल्लित हो उठता है। बैठक में पत्नी,भाई, जमा हैं। टेबल के ऊपर दूध, मिष्ठान, मेवा जमा हैं। बाबूजी आ गए! की मधुर ध्वनि मुझे आह्लादित कर देती है। मैं जेब में से चाक का एक टुकड़ा निकाल कर नन्ही मृदुला को देता हूं। वह उसी में तन्मय हो जाती है। मेरी पुस्तकें ले लेती है और हैट सिर पर पहन लेती है। सब उसका अभिनय देखकर हंस देते हैं। मैं खिलखिला कर हंस देता हूं। एक नई प्रेरणा दिल और दिगाम को तरोताजा कर देती है। यह सम्मिलित लघु भोजन हम में नवजीवन संचार कर देता है। आप अपने परिवार में खूब हंसिए, खेलिए, क्रीड़ा कीजिए। परिवार में ऐसे रम जाइए कि आपको बाहरीपन मालूम न हो। आत्मा तृप्त हो उठे। मैंने चुन-चुनकर अपने परिवार में मनोरंजन के भी नवीन ढंग अपनाए हैं। इनका उल्लेख अन्यत्र किया जा रहा है। लेकिन इन सब के मूल में जो वृत्ति है वह हंसी-विनोद और विश्राम की है। धर्म प्रवर्तक लूथर ने कहा है विचारपूर्ण विनोद और मर्यादापूर्ण साहस वृद्ध और युवक के लिए उदासी की अच्छा दवा है। सरसता का अद्भुत प्रभाव-जिनका स्वभाव रूखा, दार्शनिक, चिंता भरा है,उन्हें तुरंत प्रसन्न रहने का उद्योग एवं अभ्यास करना चाहिए। रूखापन जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है। कई आदमियों का स्वभाव बड़ा शुष्क, कठोर और अनुदार होता है। उनकी आत्मीयता का दायरा बड़ा संकुचित होता है। उस दायरे के बाहर के व्यक्तियों तथा पदार्थों में उन्हें कोई दिलचस्पी नहीं। किसी के हानि-लाभ, उन्नति-अवनति, खुशी-रंज, अच्छाई-बुराई, तरक्की-तनज्जुली से उन्हें कोई मतलब नहीं होता। ऐसे व्यक्ति प्रसन्नता में भी कंजूस ही रहते हैं। अपने रूखेपन के प्रत्युत्तर में दुनियां उन्हें बड़ी रूखी, नीरस, कर्कश, खुदगर्ज, कठोर और कुरूप प्रतीत होती है। रूखापन परिवार के लिए रेत की तरह बेमजा है। तनिक विचार कीजिए, रूखी रोटी में क्या मजा है, रूखे बाल कैसे अस्निग्ध प्रतीत होते हैं, रूखी मशीन कैसे खड़खड़ चलती है, रूखे रेगिस्तान में कौन रहना पसंद करेगा? प्राणी मात्र सरसता के लिए तरस रहा है। वह आपका प्रेम, सहानुभूति, दया, करुणा, प्रशंसा, उत्साह, आह्लाद चाहता है। पारिवारिक सौभाग्य के लिए सरसता और स्निग्धता की आवश्यकता है। मनुष्य का अंतःकरण रसिक है। स्त्रियां स्वभाव से ही कवि हैं, भावुक हैं, सौंदर्य उपासक हैं, कलाप्रिय हैं, प्रेममय हैं। मानव-हृदय का ही गुण है, जो उसे पशु जगत से ऊंचा उठाता है। सहृदय बनिए। सहृदयता का अभिप्राय कोमलता, मधुरता, आर्द्रता है। सहृदय व्यक्ति सबके दुख में हिस्सा बंटाता है। प्रेम तथा उत्साह देकर नीरस हृदय सींचता है।


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