सुग्रीव का श्रीराम को परामर्श

By: Apr 8th, 2017 12:04 am

हे रघु के वंशज, आप  कोई भी कदम पूर्ण सोच-विचार कर ही उठाते हो, आप ज्ञान से भरपूर हो और अत्यंत बुद्धिमान और सुलझे हुए हो। इसलिए आप ने अपने मन को काबू किया हुआ है, आप इस साधारण सूझबूझ का त्याग करें, जो आप को अपने लक्ष्य से हटा रही है…

आपके समक्ष दोनों हाथ जोड़ कर आपसे अत्यंत प्यार व स्नेह से प्रार्थना करता हूं कि आप पुरुशोत्व के द्योतक हो, आप को अपने मन में शोक की एक भी लहर को भीतर नहीं आने देना है। ऐसे लोग जो शोक को अपने उपर आने देते हैं, उन के अंदर खुशी  कभी भी नहीं आती। इसलिए आपको शोक नहीं करना चाहिए। ऐसा शख्स जो शोक में डूबा रहता है, उसके प्राणों को गंभीर खतरा उत्पन्न हो जाता है। इसलिए हे राजाओं के राजा, आप शोक को तुरंत त्याग दें और शांत चित्त में रहें सुग्रीव का वाली प्रति प्रेम जब वाली का श्रीराम के हाथों वध हो गया, तो सुग्रीव अत्यंत शोकग्रस्त हो गया और स्वयं को कोसना शुरू कर दिया। ऐसे में एक भाई के प्रति उसकी भावनाएं दिल से उभर कर बाहर आईं, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से दर्शाया गया है।

किशिकंधा कांड सर्ग 24, श्लोक 9,10, 11

हे शूरवीर श्रीराम, एक भाई प्रभुसत्ता को केंद्रित कर, जिसे उसने अपने भाई का वध कर हासिल की हो और शोकग्रस्त हो कर, उसकी मृत्य होने पर अपनी लालसा को आगे कर के कैसे प्रसन्न रह सकता है। जिसने अपने उस भाई का नाश कर दिया हो, जो कि  असीम शक्तियों का स्वामी था। मेरा अपने ही भाई का सर्वनाश कर देना, मैंने कभी ऐसा विचार अपने मन में लाया ही नहीं था। अपने भाई की महानता को भुलाते हुए, अपनी अक्ल पर मिट्टी डाल कर, मैंने ऐसा अपराध कर दिया जो कि मेरे लिए भी घातक है। एक वृक्ष की टहनी से मुझे जखमी  कर देने के उपरांत और मुझे डांटने के बाद उसने मुझे ऐसा कह कर दिलासा दिया था कि मुझे ऐसी गलती दोहरानी नहीं चाहिए।

सुग्रीव का श्रीराम को मित्रता भरा परामर्श

हनुमान जब लंका से वापस आ गए तो एक बार फिर से श्रीराम शोकग्रस्त हो जाते हैं, ऐसे में सुग्रीव उनके पास आ कर बहुत ही स्नेह के साथ एक सच्चे दोस्त की भांति उन को परामर्श देते हैं, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह दर्शाया गया है।

युद्ध कांड सर्ग 2, श्लोक 2, 3, 4, 6, 8, 9, 14, 15

हे वीर, आप एक साधारण मानव की भांति शोकग्रस्त क्यों होते हो? आप को ऐसा नहीं करना चाहिए। आप इस शोक के बोझ को अपने ऊपर से तुरंत उतार कर इस तरह से फेंक दीजिए। जिस तरह एक मानव  अपनी सभी अच्छाइयों को हवाओं के हवाले कर देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि मैं आप की निराशा का कोई भी कारण उचित नहीं समझता हूं, हे रघु के वंशज सीता की सूचना प्राप्त हो चुकी है और शत्रु के ठिकाने के बारे में भी पता चल चुका है।  हे रघु के वंशज, आप  कोई भी कदम पूर्ण सोच-विचार कर ही उठाते हो, आप ज्ञान से भरपूर हो और अत्यंत बुद्धिमान और सुलझे हुए हो। इसलिए आपने अपने मन को काबू किया हुआ है, आप इस साधारण सूझबूझ का त्याग करें, जो आप को अपने लक्ष्य से हटा रही है। ऐसा मानव जिसमें जोश की कमी हो, जो दुखी रहता हो और जिसका मन शोक ग्रस्त होने कारण चकरा गया हो, वो कुछ भी हासिल नहीं कर सकता और उसे निराशा व हार मिलती है।


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