सुग्रीव की श्रीराम प्रति भक्ति

By: Apr 1st, 2017 12:05 am

नेक कार्य और प्रसिद्धि इन दोनों की जड़ अत्यंत सशक्त होती है, हे विजेताओं के विजेता। इसलिए जो लोगों पर शासन करते हैं, उनकी सुरक्षा बनाए रखना बहुत जरूरी होता है। किसी भी राज्य का ऐसा शासक नहीं होना चाहिए जो कि निर्दयी हो व जिसको लोग न पसंद करते हों और जो बहुत शेखीखोरा हो, हे निशाचर, मंत्रीगण जो हिंसक तरीकों की वकालत करते हैं, उसके दुष्परिणाम भी साथ ही भुगतते हैं। उसी तरह से जिस तरह मंदबुद्धि रथ चालक ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर रथ चलाते हुए उसे नष्ट कर देता है। दयालु और नेक लोग जिन्होंनें इस दुनिया में सदैव नेक काम ही किए हैं, दूसरों के बुरे कार्यों की वजह से बर्बाद ही हुए हैं। हिंसक व क्रूर तरीके से शासन करने वाले शासक के आधीन लोग, हे रावण कभी भी खुशहाल नहीं रहते। सुग्रीव बहुत बहादुर वानर होने के साथ-साथ अपने नियमों के प्रति पूर्णतया प्रतिबद्ध था। शूरवीर होने के साथ-साथ उसका बौधिक ज्ञान भी बहुत उच्च स्तर का था। समय-समय पर उसने श्रीराम को न केवल उचित व सही परामर्श दिए, बल्कि हमेशा एक सच्चे दोस्त का फर्ज भी पूरी तरह से निभाया, विशेष कर उस समय जब श्रीराम सीता की याद में अनायस उदास हो जाया करते थे। श्रीराम के साथ प्रथम भेंट के दौरान ही सुग्रीव की उन संग बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी। जब दोनों की मुलाकात हुई, तो उन्होंने महसूस किया कि वे एक ही दुःख यानी पत्नी विछोह से ग्रस्त हैं। इसी कारण दोनों की दोस्ती जल्द ही प्रगाढ़ हो गई। सुग्रीव ने अत्यंत दार्शनिक तौर से श्रीराम के साथ अपनी पीड़ा, विचारों और भावनाओं को समय- समय पर सांझा किया, जिसे वाल्मीकि रामायण में इस तरह से दर्शाया गया है।

सुग्रीव की श्रीराम प्रति भक्ति        

किष्किंधा कांड सर्ग 7, श्लोक 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13

अपनी पत्नी से बिछुड़ जाने के उपरांत मैं भी आप ही की तरह अत्यंत पीड़ा से गुजर रहा हूं। लेकिन फिर भी मैं न तो इतना शोक में डूबा हुआ हूं और न ही मैंने अपना साहस खोया है, जिस तरह से आप दिख रहे हो। यद्यपि मैं एक साधारण बंदर हूं, लेकिन मैं अपनी पत्नी  के लिए इतना शोकग्रस्त नहीं हूं, तो ऐसे में आप को कैसा होना चाहिए। आप तो इतने सुसंस्कृत होने के साथ-साथ अत्यंत उदार, साहस से भरपूर और उच्च श्रेणी की आत्मा हो। धैर्य  व शांति का सहारा लेते हुए आप को अपने आंसुओं को काबू में करना चाहिए, जो कि साफ  दिखाई दे रहे हैं। आपको अपने चरित्र में विद्यमान अच्छे व्यवहार और स्वंय पर वश रखने की विशेषताओं को छोड़ना नहीं है। अपने विचारों को सम्मुख रखते हुए  कि कैसा आचरण करना चाहिए। विशेषकर ऐसी परिस्थितयों में जब कि अथाह दुखों ने घेर रखा हो (अपने प्रिया से जुदाई की वजह से) अथवा वित्तीय मुसीबतों में घिरने पर या ऐसी खतरे में घिर जाने पर जिसमें जान का खतरा हो, ऐसा मानव जो हमेशा शांत व धीर स्वभाव का हो, उसका दुःख व विषाद में घिर जाना उचित नहीं है। एक मूर्ख मानव जो कि बहुधा मानसिक दुर्बलता के कारण मजबूर हो कर शोकग्रस्त हो जाता है। उसकी अवस्था उस नाव के तरह हो जाती है, जो अधिक भार हो जाने पर पानी में डूब जाती है।


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