हिंदी-बंग, भाई-भाई !

By: Apr 10th, 2017 12:02 am

इस तर्ज का मुहावरा हिंदोस्तान और चीन के संदर्भ में शुरू हुआ था-‘हिंदी-चीनी, भाई-भाई।’ लेकिन जिस तरह चीन ने भारत की पीठ में छुरा घोंपा और 1962 का युद्ध हुआ। उसके बाद इस मुहावरे की मौत हो गई। बहरहाल चीन का संदर्भ यहीं तक सीमित रखते हैं, लेकिन नेपाल, भूटान, ईरान और बांग्लादेश आदि देशों के साथ हमारे सांस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक और आर्थिक-कारोबारी संबंधों के मद्देनजर यह मुहावरा फिर याद आ जाता है। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना चार दिनों के भारत प्रवास पर हैं। पहले ही संवाद के बाद 22 द्विपक्षीय समझौतों पर दस्तखत किए गए हैं। 1971 के मुक्ति संग्राम में शहीद हुए भारतीय सेनानियों के परिजनों का भारत में सम्मान प्रधानमंत्री हसीना ने किया, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी अभिभूत हो गए। उन्होंने आज भी मुक्ति संग्राम के योद्धाओं को याद किया है और उनकी हरसंभव मदद करने में भारत की प्रतिबद्धता दोहराई है। सही मायनों में देखें, तो हिंदोस्तान ही एक राष्ट्र के तौर पर बांग्लादेश के अस्तित्व का सृजनकार है। शेख मुजीबुर्रहमान और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की लड़ाई भारत सरकार और भारतीय फौज ने ही लड़ी थी। नतीजतन बांग्लादेश आजाद हुआ और आज हिंदोस्तान के अच्छे पड़ोसी, दोस्ताना सहयोगी, एक उदार और प्रगतिशील देश के तौर पर सामने है। बांग्लादेश की हुकूमत भी हिंदोस्तान का सम्मान करती रही है। खुद शेख हसीना ने मुक्ति संग्राम का वह दौर देखा था और भारत में ही शरण ली थी। लिहाजा भारत के प्रति शेख हसीना का मोह, लगाव और सम्मान अपने ही ‘घर’ सरीखा रहा है। बांग्लादेश में शेख हसीना प्रधानमंत्री बनीं और फिलहाल एकतरफा जनादेश के साथ हुकूमत में हैं, लिहाजा दोनों देशों के दरमियान आतंकवाद, कट्टरपंथ, आपराधिक विरोध की जो काली-कंटीली अवधारणाएं बनती रही हैं, वे ध्वस्त और खंडित भी होती रही हैं। तानाशाही हुकूमत रही हो या पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया की सरकार हो, बांग्लादेश को भारत से दूर करने या बिलकुल ही अलग करने की साजिशें खेली जाती रही हैं, लेकिन वे भारत विरोधी ताकतें नाकाम रही हैं। नतीजतन पुराना मुहावरा, नए संदर्भों और नई भाषा के साथ, ताजा हो उठता है-‘हिंदी-बंग, भाई-भाई..!’ हालांकि मई, 2014 में जब मोदी ने भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी, तब पाकिस्तान और नेपाल समेत कई सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्ष और प्रधानमंत्री भी उस मौके के साक्ष्य बने थे। चूंकि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना उस समय जापान के आधिकारिक प्रवास पर थीं, लिहाजा वह दिल्ली नहीं आ सकी थीं। लेकिन मोदी-हसीना के नेतृत्व में भारत-बांग्लादेश के चौतरफा संबंध प्रगाढ़ होते रहे, संस्कृतियों का आदान-प्रदान हुआ, कारोबार में भी विस्तार आया और आज असैन्य परमाणु सहयोग, रक्षा संबंध, यातायात, संचार, साइबर सुरक्षा, ऊर्जा, स्वास्थ्य, जनसंप्रेषण और विज्ञान, परिवहन, न्यायिक सेवा आदि क्षेत्रों में 22 समझौतों का यथार्थ सामने है। भारत ने बांग्लादेश को 450 करोड़ डालर का कर्ज भी देना तय किया है। दोनों देशों के बीच रेल, बस के जरिए आवागमन आसान होगा। भारत ने बांग्लादेश के 1500 सरकारी अफसरों को विभिन्न तरह की टे्रनिंग दी है और अब 1500 न्यायिक अधिकारी भी अपने क्षेत्र का प्रशिक्षण हासिल करेंगे। सारांश में प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा है कि हमारे पड़ोसी भी सुख-समृद्धि से जिएं, क्योंकि पड़ोसी देशों के बिना भारत अधूरा है। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान को निशाना बनाना और उसे ‘आतंकवाद की मंडी’ करार देना नहीं भूले। लेकिन शेख हसीना के साथ संवाद के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने माना कि तीस्ता जल समझौता दोनों देशों के संबंधों की अहम कड़ी है। बेशक गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना के बाद तीस्ता भारत-बांग्लादेश से होकर बहने वाली चौथी सबसे बड़ी नदी है। बांग्लादेश का करीब 14 फीसदी हिस्सा सिंचाई के लिए तीस्ता के पानी पर निर्भर है। जल बंटवारे से जुड़े समझौते के प्रारूप में बांग्लादेश को 48 फीसदी पानी देने की बात कही गई है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को इस पर आपत्ति है। वह मानसून के दौरान बांग्लादेश को तीस्ता का 35-40 फीसदी पानी और सूखे के दौरान 30 फीसदी पानी देने पर सहमत हैं, लेकिन ढाका इसके लिए राजी नहीं है। नतीजतन यह मुद्दा लटकता आ रहा है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इस विवाद को निपटाने को लेकर आश्वस्त हैं। बहरहाल भारत-बांग्लादेश के बीच जो सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं, उन्हें लगातार नए आयाम मिलने चाहिएं। ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर्रहमान के नाम पर भारत में एक सड़क का नामकरण तो बस शुरुआत भर है।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App