ईमानदारी के तमगे का अर्थ

By: May 2nd, 2017 12:05 am

एक चर्चित सर्वेक्षण ने भ्रष्टाचार मामले में राज्यों की तस्वीर जिस तरह पेश की है, उसमें बहस के सामाजिक पहलू भी अंगीकार होते हैं। कर्नाटक को सर्वेक्षण की बदनामी और हिमाचल को मिली शाबाशी के अपने-अपने आयाम हैं और इन्हें हम तुलनात्मक तरीके से ही देख सकते हैं। बेशक हिमाचल कम भ्रष्टाचारी पाया गया, लेकिन कितना ईमानदार है, इस पर बहस हो सकती है। भ्रष्टाचार के कई आवरण व तसदीक होने को कई अनुभव। आम आदमी के लिए राजस्व रिकार्ड से अपनी ही जमीन के दस्तावेज हासिल करना अगर आदतन रिश्वत की सामान्य दर बन जाए, तो यह सामाजिक चरित्र का एक पक्ष बनकर महसूस नहीं होगा। दूसरी ओर पारदर्शिता से अगर सरकारी मशीनरी काम करे, तो कार्यान्वयन की रफ्तार में ईमानदारी नजर आएगी। हिमाचल के स्वभाव में गरीबी यूं तो दिखाई नहीं देती, फिर भी कई बीपीएल परिवारों की शिनाख्त में ईमानदारी तो नजर नहीं आती। बेशक गरीब के मकान पर इस आशय की पट्टिका जरूरी है, लेकिन घर का चूल्हा बताता है कि अंदर क्या पक रहा है। भ्रष्टाचार और ईमानदारी के बीच गुणात्मक अंतर तो उस नजरिए का है, जो सही और बुरे में फर्क बताता है। इस दौरान जो होड़ हिमाचल में पैदा हुई है, उसमें राजनीतिक शरण इतनी बड़ी तो मानी जाएगी कि आम रूटीन का कार्य भी सियासी दलाल कराने लगे हैं, वरना फाइलों के ढेर में दबी ईमानदारी की सांसें गिनी जा सकती हैं। अतिक्रमण हमारी नीयत के भीतर घौंसला बनाकर बैठ रहा है, अतः नैतिकता के प्रश्न तो अब पूछे ही नहीं जाते। अदालती मामलों का अध्ययन बेहतर बताएगा कि कितने प्रतिशत मामलों की वृद्धि में हिमाचली चरित्र आशंका के दायरे में फंसा है। नीतियों, शक्तियों और विशेषाधिकार के जरिए कहीं न कहीं जो हिमाचल बंटा, उसकी रखवाली ईमानदारी से कैसे होगी। उदाहरण के लिए स्थानीय निकायों की जुगत में लगी राजनीति ने कितने हिस्से बांट लिए, इसका अनुमान लगाना भी असंभव हो चला है। मनरेगा को ही लें, तो राष्ट्रीय तौर-तरीकों से भिन्न हिमाचल कैसे चले और किस तरह पंचायत प्रधान को ठेकेदार बनने से रोके। इससे भी बुरी हालत में शहरों के शेयर में राजनीतिक तौर पर बंटी संपत्तियों के हवाले से देखा जा सकता है। कमोबेश हर पार्षद ने खुद या अपने समर्थकों को लाभ देने के लिए अतिक्रमण करने दिया या नगर निकाय की संपत्ति पर कब्जा जमा लिया। हिमाचल की वन भूमि से अवैध कब्जे हटाएं, तो कई शहर बस जाएंगे। कूहलों व नदी-नालों की मिलकीयत को लूटने में एक बड़ा समुदाय जुटा है, जबकि सियासी घोषणाओं की नरमी में एक ऐसा सौहार्द भी खड़ा है, जो तत्परता से अवैध करतूतों को कानूनी शरण देने की पैरवी बन जाता है। दरअसल राजनीतिक शरण में धीरे-धीरे एक माफिया खड़ा हो रहा है, तो इसके कामकाज के तरीके में ईमानदारी के सबूत लुप्त हो रहे हैं। एचआरटीसी के क्षेत्रीय प्रबंधक की सरकारी गाड़ी में नशे की तस्करी के सबूत इतना हाहाकार तो मचाएंगे कि ईमानदार तमगे के कान बहरे हो सकते हैं। सरकारी निर्माण या विकास के कुशल अंदाज के बीचोंबीच पनपे ठेकेदार साम्राज्य में भ्रष्टाचार की दरारें न देखे भी दिखाई देने लगें, तो हमारी ईमानदारी की बोली तो लगेगी ही। जाहिर तौर पर हिमाचल की सरकारी कार्य संस्कृति में कामचोरी के दाग अब बड़े होते जा रहे हैं और आश्चर्य यह कि यहां कर्मचारी राजनीति इन्हीं अदाओं की पहरेदारी कर रही है। बावजूद इसके हिमाचल की नैतिक परंपराओं में ईश्वरीय और सामाजिक प्रतिबिंब सुदृढ़ हैं। कुछ श्रेय यहां के मीडिया जगत को भी जाएगा, क्योंकि इसका आलोचनात्मक पक्ष हमेशा सराहा जाता है और छोटे राज्य की करवटों में सामाजिक जागरूकता बढ़ जाती है। देश के अन्य राज्यों के बनिस्पत हिमाचल में सियासी प्रतिस्पर्धा ने जिन आदर्शों की रक्षा की, उसके फलस्वरूप सामाजिक सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण अव्वल रहा। इसी कारण साक्षरता दर इस हद तक बढ़ी कि हर नागरिक अपने अधिकारों के प्रति ज्यादा सचेत हो गया। कमोबेश नागरिकों पर कर बोझ भी न के बराबर रहा और इसलिए जनता से विभागीय संपर्कों में ज्यादातर सामाजिक सुरक्षा के इनाम ही रहे। जनता के कल्याण में सरकारों की मेहनत देश के अन्य किसी भी राज्य से श्रेष्ठ रही और इसीलिए हिमाचल में आज भी सरकारी क्षेत्र आगे है। स्कूल, कालेज या अस्पताल के सरकारी फर्ज में इतनी ईमानदारी तो स्पष्ट है कि हर नागरिक इन पर गर्व करता है। प्रशासनिक विकेंद्रीकरण और केंद्रीय कार्यक्रमों में सबसे आगे रहने की सनक ने हिमाचल को फिलहाल पूर्ण भ्रष्टाचार की राहों से दूर रखा है, लेकिन सियासी आचरण में बढ़ती  सार्वजनिक लाभांश की भूख कहीं न कहीं चेतावनी दे रही है। जाहिर तौर पर सर्वेक्षण रपट ने अपनी व्याख्या से सत्ता और विपक्ष के बीच कहने और सुनने का एक नया दौर जरूर शुरू कर दिया है। देश के राज्यों में भ्रष्टाचार के निचले स्तर या ईमानदारी के ऊपरी स्तर पर होने का यह प्रमाण सरकार को राहत देता है। चुनावी दंगल के बाहर भाजपा ने हिमाचल सरकार के खिलाफ, जो भ्रष्टाचारी चित्रण के साथ पोस्टरबाजी की है उसे यह सर्वेक्षण कम से कम सही नहीं ठहरता। ऐसे में भ्रष्टाचार का मुद्दा खोखला साबित होगा या जिन इशारों से प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को भ्रष्टाचार की कैद में बताया, असरदार होंगे कहा नहीं जा सकता।

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