एफसीए से कैसे पार पाएगी सरकार
अवैध को वैध करने की नीति में फोरेस्ट कंजरवेशन एक्ट सबसे बड़ा पेंच
शिमला – प्रदेश में छोटे और मध्यम दर्जे के किसानों व बागबानों के अवैध कब्जों को वैध करने की नीति तो सरकार ने बना दी है, लेकिन इसमें सबसे बड़ा पेंच फोरेस्ट कंजरवेशन एक्ट (एफसीए) का है। इस पेंच से पार पाने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। सूत्र बताते हैं कि जिलाधीशों के माध्यम से मंजूरी के लिए जो मामले आएंगे, उनमें वन भूमि के कब्जों पर अधिकार देने के लिए एफसीए की मंजूरी जरूरी है। एफसीए के लिए सरकार आवेदन करेगी, लेकिन वह मंजूरी मिलेगी यह तय नहीं है। ऐसे में अवैध कब्जों को किस तरह से वैध किया जाएगा, यह सोचनीय है। हाल ही में सरकार ने हाई कोर्ट के पास अपनी नीति दी, जिसे हाई कोर्ट ने भी मंजूरी प्रदान कर दी है। इस नीति के तहत किसानों व बागबानों को उनके पुराने कब्जों को नियमित कर दिया जाएगा। इसमें सरकार ने कुछ राशि भी रखी है, वहीं कहा है कि पांच बीघा तक के कब्जे को नियमित किया जा सकता है, परंतु इसके लिए एफसीए की मंजूरी भी तो लेनी होगी, जो कि राज्य को आसानी से नहीं मिल पा रही है। यहां भूमिहीनों को जमीन देने के मामले भी एफसीए के पेंच में फंसे हैं, तो ऐसे में अवैध कब्जों को कैसे नियमित किया जा सकेगा। जानकारी के अनुसार खुद राजस्व विभाग से जुड़े अधिकारी इस संबंध में परेशान हैं, जिनका मानना है कि एफसीए की मंजूरी के लिए जो मामले भेजे जा रहे हैं, उनमें मंजूरी नहीं मिल रही। भूमिहीनों के मामले में चार हजार आवेदन हैं, जिनमें से 300 से 400 मामले अभी तीन साल में मंजूर हो सके हैं और शेष लटके हुए हैं। ऐसे हालात में जब जिलाधीशों के माध्यम से हजारों की संख्या में नियमितीकरण के मामले सामने आएंगे, तो क्या होगा।
ये हैं बड़े सवाल
यहां अवैध रूप से कब्जा किए गए जंगलों पर बागीचे बना दिए गए हैं, जिन पर कुल्हाड़ी भी चली है। बड़ी संख्या में लोगों के ऐसे नाजायज कब्जों को समाप्त किया गया है, लेकिन अभी भी ऐसे अनगिनत मामले सामने हैं। अब सरकार की पालिसी का किसानों व बागबानों को कैसे फायदा होगा, कितना फायदा और कब तक फायदा मिलेगा, ये सब बड़े सवाल हैं। वैसे लोगों ने तहसीलदारों के स्तर पर जिलाधीशों को आवेदन करने शुरू कर दिए हैं। देखना होगा कि लोगों को कब तक राहत मिलेगी।
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