कठघरे में सफाई

By: May 8th, 2017 12:05 am

अपना रिपोर्टकार्ड तैयार करते शिमला के लिए स्वच्छता सर्वेक्षण की रैंकिंग, कुछ नए कठघरे खड़े करने सरीखी है। यह इसलिए भी क्योंकि सफाई का स्तर पिछले एक साल में बीस पायदान लुढ़ककर शिमला की रौनक और दर्जे को फीका करता है। हम चाहें तो सारा दोष नगर निगम पर मढ़ दें और गंभीरता से देखें तो राज्य की नीतियों में राजधानी का महत्त्व समझ लें। शिमला अपनी आबोहवा से विपरीत व्यवहार क्यों कर रहा है और क्यों पारंपरिक प्रवृत्ति से विमुख होकर गंदगी के ढेर पर बैठ गया है। यही शिमला कभी सफाई की मिसाल बनकर चौकस रहता था, तो आज राष्ट्रीय सदर्भों में जीवन की राह क्यों बदल गई। ऐसे में राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल जिस तरह शिमला की क्षमता का आकलन कर रही है, वहां सफाई जैसे विषय भी दूत बनकर खड़े हैं। यानी शिमला अपनी आदतों और काबिलीयत के हिसाब से किस दिशा व किस दशा तक बढ़े। दूसरी ओर राजधानी के वजूद में तरक्की के मानदंड, नागरिक सुविधाओं से जो कुछ छीन रहे हैं, उसकी भरपाई नहीं होती। आश्चर्य यह कि कुदरती तौर पर जल निकासी की व्यवस्था को बचाने के बजाय, इस पर भी अतिक्रमण हो गया। कितने नाले सिकुड़ गए या इनके ऊपर इमारतों की मंजिलें चढ़ गईं, इस हिसाब से चिंता ही नहीं हुई। नगर नियोजन की बैसाखियों पर शिमला चलना चाहे, तो भी सियासत चलने नहीं देती और हरियाली के दामन में छेद न हों, यह  भी नहीं करने देती। शिमला जैसे शहर को फिर से बसाना कठिन है, लेकिन इसे जीने का एहसास कराना ही होगा, वरना माल रोड पर उमड़ती भीड़, पर्यटन की शुमारी में जो कुछ रौंद जाती है, उसमें कराहते शहर की ख्वाहिशें भी तो होंगी। बेशक भौगोलिक परिस्थितियों ,राजधानी का आकार, पर्यटकों का भार, अधोसरंचना निर्माण की लागत, माकूल जलापूर्ति, घर-घर की सफाई और बदलते आर्थिक परिवेश में शिमला को शिमला बनाए रखने की चुनौती अगर नहीं समझी, तो स्वच्छता सर्वेक्षण को समझ लेना होगा। शायद मूल शिमला अपने तक सफाई परंपरा का निर्वहन कर ले, लेकिन शहर में हो रहे गदें विस्तार पर चाबुक चलना चाहिए। न्यू शिमला की बाहों में पसर गईं कमियां शायद ही सफाई का तिलक फैला दंे या भागती जिंदगी के नासूर में पल रहे ग्रामीण शिमला की सोहबत में गंदी घुसपैठ को कैसे रोकें। सड़कों पर बिखरे वाहनों के कारण, परिदृश्य से कमजोर होती सफाई का आलम यह कि बिगड़ी तासीर में यही गाडि़यां घातक अंजाम को चिन्हित कर लेती हैं। शिमला की सांसों को घेरते वाहन और इनकी मरम्मत के साजो सामान में गंदगी का रिसाव उन्हीं नालियों से होता है, जहां जिंदगी ठहर गई है। टनों के हिसाब से निकलते कचरे को निपटाने का सामर्थ्य बार-बार हांफता है और ऐसी ही कयामत में पेयजल के प्राकृतिक  स्रोत जब खूंखार होते हैं, तो पीलिया घर तक पहुंच जाता है। सफाई की शर्तों में हिमाचल की दुरुहता को समझना होगा और नागरिक आचरण में आए खोट को भी पहचानना होगा। सफाई में इंदौर शहर अगर अव्वल हो गया, तो डस्टबिन के अलावा टायलट भी मशहूर हुआ। हिमाचल के शहरी डस्टबिन में अपनी खुराक ढंूढते बंदर, कुत्ते या आवारा पशुओं ने गंदगी को भी आश्रय बना लिया, इसलिए शिमला में सफाई प्रबंधन के दोषियों की सूची लंबी है। शिमला के साथ नागरिक अपनत्व की सांस्कृतिक कमी के कारण भी रैंकिंग में निराशा पैदा हुई है। ऐसे में लक्ष्य अगर सफाई में दिखेगा, तो योजनाओं की परिपाटी में यह शहर अपनी प्राकृतिक निर्मलता को वजूद में धारण करेगा। जलापूर्ति के वर्तमान ढांचे में हुए सुराखों को बंद करके नए संकल्प को परिमार्जित और शहरी विकास के मानदंडों में शिमला का शपथपत्र भी तैयार करना होगा। वाटर हार्वेस्टिंग को नायाब तोहफे के रूप में शिमला के अस्तित्व से जोड़ें, तो अतिरिक्त जल से शहर के दाग धुल सकते हैं। नगर निगम चुनाव में हर वार्ड की व्यथा का एक मुआयना अगर सफाई प्रबंधन से जुड़े, तो अगले चरण की तस्वीर में शिमला का यह पहलू भी नत्थी होगा। देखें सफाई के वर्तमान परिदृश्य में आम मतदाता किसकी सफाई करता है और किसे सफाई से चुनकर यह सुनिश्चित करता है कि शिमला अपने गौरव को किसके सहारे बरकरार रखे।

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